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जहां कुछ लोग अपने बच्चों के लिए बेहद सफाई का खयाल रखते हैं वहीं कुछ लोग इस पर […]
जहां कुछ लोग अपने बच्चों के लिए बेहद सफाई का खयाल रखते हैं वहीं कुछ लोग इस पर […]
यह उत्पीड़न का प्रचलित माध्यम बन गया है क्योंकि सोशल मीडिया और अन्य तकनीकी उपकरणों जैसे मोबाइल फोन और लैपटॉप आदि के ज़रिये कई बार सूचनाओं पर नियंत्रण और नज़र रख पाना संभव नहीं होता।
एक नये लेख में यह सवाल उठाया गया है कि क्या स्कूलों में धूप मिलने से बच्चों को मायोपिया जैसे रोगों से निजात मिल सकती है।
रोज़मर्रा की कई ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें हम गंभीरता से नहीं लेते और जो हमारे बच्चों के जीवन में बहुत मदद करती हैं।
पॅट की देखभाल करने से बच्चों में ज़िम्मेदारी और समझ विकसित होती है। बच्चे सीखते हैं कि जीव की देखभाल करने के लिए योजनाएं बनायी जाती हैं, ध्यान रखा जाता है और कभी-कभी त्याग किये जाते हैं।
धन का प्रबंधन ज़िंदगी का अहम सबक है जो बचत करना, बजट बनाना आदि सिखाकर एक बेहतर जीवन जीना सिखाने में मदद करता है। आप बच्चों को बढ़ती उम्र से ही यह सिखाना शुरू कर सकते हैं।
अपने बच्चों को किताबों से जोड़ने के लिए आपका किताबों से जुड़ना महत्वपूर्ण है। रुचिकर, सूचनादायक और मज़ेदार किताबों का चयन करने से बच्चों का रुझान बढ़ता है। अभिभावकों का बच्चों के लिए किताबें ज़ोर से पढ़ना बहुत छोटी उम्र से पढ़ने की आदत डाल सकता है।
13 प्रकार के फैक्टरों पर नज़र रखी गयी लेकिन अपवर्तन संबंधी एरर से ही मायोपिया का अनुमान बखूबी हुआ। इस सीधे परीक्षण में शोधकर्ताओं ने पाया कि शुरुआत में जिन बच्चों की नज़र सामान्य थी, 6 से 7 वर्ष की उम्र में उनमें दूरदृष्टि दोष के मामूली लक्षण दिखे।
सरकार द्वारा हर साल 650 मिलियन कॉंडोम जारी किये जाते हैं लेकिन बिना किसी चित्र की अनाकर्षक पैकिंग के कारण यह लोगों को लुभा नहीं पाता। पैकिंग के कारण कई उपभोक्ताओं को लगता है कि इसकी क्वालिटि ठीक नहीं है इसलिए वे दूसरे ब्रांड्स की तरफ आकर्षित होते हैं।
स्वास्थ्य और प्रदूषण के संबंध को जानने के लिए अनेक शोध हो रहे हैं जो प्रदूषण के प्रभाव के कारण ऑटिज़्म, सीज़ोफ्रेनिया जैसे रोग होना बता रहे हैं। पशुओं पर किये जा रहे अध्ययनों में भी यही नतीजे मिल रहे हैं कि वायु प्रदूषण मस्तिष्क विकास को बाधित करता है।
देश भर में की गई एक ताज़ा रिसर्च के अनुसार प्रारंभिक स्कूलों में हर पांच में से एक शिक्षक पर्याप्त क्वालिफाइड नहीं है और छोटे राज्यों में स्थिति ज़्यादा खराब है।
क्या आपका बच्चा भी, कई दूसरों की तरह, रोज़ नहाने के समय कतराता फिरता है? आप समझदार अभिभावकों […]
स्वलीनता या ऑटिज़्म के शिकार बच्चों के अभिभावकों के लिए अच्छी खबर है। मुंबई स्थित बहु-पद्धति थैरेपी केंद्र, […]
भारत में 40 फीसदी बच्चे 14 से 18 वर्ष की उम्र के हैं इसलिए उनकी समस्याओं का निदान तुरंत होना चाहिए। जबकि ऐसे बच्चे खुद अपनी समस्याओं को लेकर मुखर हो चुके हैं तो नये कानून भी बनने चाहिए।
आप नहीं चाहते कि जब आपके बच्चे अपने जीवन में आ रहे बड़े बदलावों से दो चार हो रहे हैं तो आप उन्हें अकेला छोड़ दें। ऐसे समय में यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि अगर वे आपके मतों के खिलाफ जा रहे हैं तब भी उन्हें आपके सहयोग और ध्यान की ज़रूरत होती है।
बच्चों के पेट, अमाशय अथवा उदर के आस पास दर्द होना बेहद आम बात है, इसे अजीर्णता आ भी कहा जाता है ।
पूरे विश्व में तपेदिक (टीबी) बेहद घातक संक्रामक बीमारी है । भारत में तपेदिक के संबंध में पांच प्रमुख तथ्यों की जांनकारी प्राप्त करने के लिए इसे पढ़ें ।
भारत में प्रतेयक वर्ष लगभग 1.5 लाख लोगों को तपेदिक (TB) की समस्या होती है और लगभग सभी लोगों को इसका खतरा बना रहता है । तपेदिक (TB) के बारे में आधारभूत तथ्य जानने के लिए क्लिक करें ।
विषाणु से होने वाला डिपथीरिया टीका-निरोध्य बिमारी है । भारत में आज भी कुछ हजार मामले पाए गए हैं । इस रोग से अपने बच्चों को कैसे बचाया जाए इसकी और जानकारी प्राप्त करें ।
रोटावायरस के कारण भारत मे हर साल लगभग 80,000 बच्चों की मृत्यु हो जाती है । कम कीमत के एक नए टीके से शायद इस संख्या को कम किया जा सकता है । इस बीच कृप्या रोटावायरस के बारे में जाने कि इसका उपचार कैसे किया जाए ।
"जैविक" टैगलाइन नाम के बहुत से ब्रांड्स बाजार में उपलब्ध हैं, परंतु प्रमाणित उत्पाद ही उपभोगताओं में विश्वास पैदा करते हैं । और अधिक जानकारी के लिए जैविक आहार पर हमारा लेख पढने के लिए यहां कल्कि करें