भारत में तपेदिक के बारे में 5 तथ्य


अमिताभ बच्‍चन द्वारा  टीचएड्स Teachaids को अपनी सेवाएं प्रदान की गई । इस अभिनेता ने दिसम्‍बर, 2014 में यह खुलासा किया कि वर्ष 2000 में उन्‍हें तपेदिक हुई थी और उसका उपचार भी हुआ । Photo: TeachAIDS (TeachAIDS.org)

अमिताभ बच्‍चन द्वारा टीचएड्स Teachaids को अपनी सेवाएं प्रदान की गई । इस अभिनेता ने दिसम्‍बर, 2014 में यह खुलासा किया कि वर्ष 2000 में उन्‍हें तपेदिक हुई थी और उसका उपचार भी हुआ । Photo: TeachAIDS (TeachAIDS.org)

विश्‍व में तपेदिक (टीबी) बेहद घातक संक्रामक बीमारी है, और भारत में इसके कारण होने वाली मृत्‍यु और रोगियों तथा परिवारों पर होने वाला प्रभाव, दोनों ही, विशेषकर मुख्य विषय हैं । भारत में तपेदि‍क के बारे में समझने के लिए पांच प्रमुख तथ्‍य प्रस्‍तुत हैं । यह समझने के लिए कि तपेदिक क्‍या है और यह किस प्रकार फैलती है कृपया न्‍यूजपाई की गाईड पढें

  1. प्रसार
  2. भारत में तपेदिक की बीमारी से पीडि़त लोगों की कुल संख्‍या पूरे विश्‍व में सबसे अधिक है । इसका कारण जनसंख्‍या का बड़ा आकार भी है परन्‍तु भारत प्रति व्‍यक्ति के आधार पर भी बोझ से दबा हुआ है । विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (डब्‍ल्‍यू एच ओ) ) द्वारा वर्ष 2013 में तपेदिक के संबंध में प्रकाशित विश्‍वभर के नवीनतम आंकड़ों में विश्‍व की कुल जनसंख्‍या में से भारत में अनुमानत: 17.5% मामले थे जबकि विश्‍व में मोजूद तपेदिक मामले 23.6% तथा 23.3% नए मामलों है ।

    सांख्यिकीय स्रोत: WHO Global Tuberculosis Report 2014

  3. कोई भी व्यक्ति तपेदिक का शिकार हो सकता है
  4. भारत के किसी भी भू भाग अथवा आवास क्षेत्र में, किसी भी सामाजिक – आर्थिक स्थिति में तथा किसी भी पुरूष अथवा किसी भी महिला को तपेदिक रोग हो सकता है । तथापि, पुरूषों, गरीब तबके, पूर्वोत्‍तर तथा मध्‍यवर्ती राज्‍यों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों में यह अधिक तेजी से फैलती है । वयस्‍क पुरूषों (15-59 वर्ष के आयु वर्ग) तथा महिलाओं (15-49 वर्ष आयु वर्ग) से तपेदिक के संबंध में उनके अनुभव ज्ञात करने के लिए उनसे सम्‍पर्क करके काफी बड़े पैमाने पर एक अनुसंधान अध्‍ययन करवाया गया था । इस अध्‍ययन के कुछ परिणाम नीचे चार्ट में दर्शाए गए हैं । यह ध्‍यान रहे कि सर्वेक्षण के आंकड़े स्‍वयं किए गए सर्वे से एकत्रित आंकडे हैं न कि किसी सरकारी स्रोत से एकत्रित आंकडे हैं । प्रस्‍तुतिकरण को सरल बनाने के लिए इसमें केवल औसत आंकड़े ही दर्शाए गए हैं ।

    100,000 प्रति जनसंख्‍या की प्रसार संख्या । सांख्यिकीय स्रोत: BMC Infectious Diseases

  5. भारत में तपेदिक को एक सामाजिक धब्बा माना जाता है
  6. भारत में तपेदिक को एक धब्बा माना जाता है, इसके प्रति प्रबल एवं प्रलेखबद्ध विचारधारा है तथा इस बीमारी से पीडि़त अनेक लोग अपने संबंधियों, मित्रों अथवा सहयोगियों से इस बीमारी की जानकारी इस भय से छिपाकर रखते हैं कि वे कहीं उनसे कन्‍नी न काटने लगें अथवा उनका बहिष्‍कार करना शुरू न कर दें । विशेषकर, महिलाओं को इसके बहुत से परिणाम झेलने पड़ते हैं । पति तपेदिक ग्रस्‍त अपनी पत्नियों का परित्याग करने में नहीं झिझकते, तलाक देने अथवा परित्‍याग करने की बहुत सी घटनाएं घटित होती हैं । महिलाओं में व्‍याप्‍त इस भय से उनकी बीमारी का निदान अथवा उपचार देर से होता हैं जिससे उनके स्‍वस्‍थ होने के अवसर कम होते चले जाते हैं । ऊपर उल्लिखित सर्वेक्षण के दौरान 15.6% द्वारा यह जानकारी दी गई कि यदि उनके परिवार में किसी को तपेदिक हुई तो वे अपने पड़ोसियों तक से इसकी जानकारी छिपा कर रखना चाहेगें । इसे लांछन मान लिए जाने का कारण इसके संबंध में व्‍याप्‍त भ्रांतियां भी हैं । मात्र 55.5% को यह जानकारी थी कि तपेदिक का संक्रमण तपेदिक रोगी द्वारा खांसने अथवा छींकने पर हवा के माध्‍यम से होता है । अनेकों द्वारा संक्रमण अन्‍य (गलत) माध्‍यमों अर्थात ‘’भोजन द्वारा’’(32.4%), ‘’बर्तन साझे करने’’ (18.2%) तथा ‘’तपेदिक रोगी को छूने’’ (12.3%) से होने जैसे आधार दिए गए ।

    A published rumour that Ashwarya Bachchan was being treated for stomach TB drew a furious response and denials from the entire Bachchan family.

    एक फिल्‍म के उद्घाटन के समय ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन । Photo: Wikimedia Commons/Mark B.

    ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन के बारे में फरवरी 2010 में मुम्‍बई मिरर में छपी खबर से यह अफवाह फैल गई थी कि उन्‍हें पेट से संबंधित तपेदिक रोग है । परंतु उनके श्‍वसुर अमिताभ बच्‍चन , उनके पति अभिषेक बच्‍चन और उनकी सास जया बच्‍चन ने इसका तीव्र प्रतिकार किया था । अमिताभ बच्‍चन ने अपने ब्‍लॉग में लिखा था कि ‘‘मैं इस समाचार से अत्‍यंत कुपित एवं क्रोधित हुआ हूं’’ , ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन ने लिखा कि ‘’ इस लेख ने मुझे काफी भयभीत व भौचक्‍का कर दिया है और मैं अपना आपा खो बैठी हूं और इसे मैं सिरे से नकारती हूं ‘’ । जया बच्‍चन ने इस रिपोर्ट को ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन की प्रतिष्ठा को धूमिल करने की मंशा से जारी किया गया कथन बताया ।

    मुम्‍बई मिरर ने कुछ और भी दावे किए थे जिन पर बच्‍चन परिवार ने आपत्ती उठाई थी तथा इस मुद्दे को लेकर बच्‍चन परिवार के पुरूष सदस्‍यों ने महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए क्रोध व्‍यक्‍त किया था । इस पर भी काफी तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी । इसकी प्रतिक्रिया अभी भी काफी प्रबल है । यह अलग बात है और ध्‍यान देने योग्‍य भी है कि बाद में, दिसम्‍बर, 2014 में, अमिताभ बच्‍चन ने सार्वजनिक रूप यह पुष्टि की कि उन्‍होंने चौदह वर्ष पहले वर्ष 2000 में तपेदिक का उपचार करवाया था । यह पुष्टि भी उन्‍होंने बृहनमुम्‍बई महा‍नगर निगम के तपेदिक उन्‍मूलन कार्यक्रम के ब्रांड एम्‍बेस्‍डर बनने की सहमति देने के 8 माह पश्चात की ।

  7. उपचार के परिणाम बेहतर होते जा रहे हैं
  8. एक अच्‍छी खबर यह है कि भारत तपेदिक की मृत्‍यु दर में कमी लाने में सफल हुआ है और अब भारत शताब्‍दी के उस विकास लक्ष्‍य की प्राप्ति की ओर अग्रसर है जिसके अनुसार वर्ष 1990 की तपेदिक की मृत्‍यु दर में कमी लाकर वर्ष 2015 में आधा किया जाना है । वर्ष 1993 में जब इस लक्ष्‍य को स्‍थापित किया गया था तो कुछ वर्षों तक मृत्‍यु दर में कोई घटत बढ़त नहीं हुई थी जबकि ऐसा प्रतीत नहीं होता था कि यह संभव भी हो पाएगा । तथापि, वर्ष 1993 में ही, भारत सरकार द्वारा संशोधित राष्‍ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) जारी किया गया जो सरकार के अनुसार देश में चल रहे तपेदिक के विद्यमान कार्यक्रमों में से अपर्याप्‍त निधियन, एक्‍स-रे पर अधिक निर्भरता, गैर-मानक उपचार व्‍यवस्‍था, उपचार पूरा होने की निम्‍न दर तथा उपचार के परिणामों की व्‍यवस्थित सूचनाओं की अनुपलब्धि से संबंधित खामियों को दूर करने के लिए एक प्रमुख कार्यक्रम था । कार्यक्रम की समीक्षा से यह ज्ञात हुआ कि केवल 30% रोगियों का ही निदान हो पा रहा था तथा उनमें से भी केवल 30% का ही उपचार सफल हुआ । शुरू में एक सीमित क्षेत्र में व्‍याप्‍त यह परियोजना भौगोलिक विचार तथा वर्ष 1998 तथा वर्ष 2005 के मध्‍य की जनसंख्‍या के आधार पर पूरे देश के लिए तैयार की गई थी । नीचे प्रस्‍तुत चार्ट से यह ज्ञात होता है कि तपेदिक की प्रबलता (प्रति 100,000 जनसंख्‍या में तपेदिक के सक्रिय मामले) तथा मृत्‍यु दर (प्रति 100,000 जनसंख्‍या में से तपेदिक से हुई मृत्‍यु) में आया बदलाव काफी कारगर हुआ । वर्ष 1995 तथा वर्ष 2005 के बीच की अवधि के दौरान उपचार की सफलता दर 30% से बढ़कर 85% से भी अधिक हुई तथा वर्ष 2012 में यह सफलता दर 88% हुई जो वैश्विक औसत से उच्‍च होने के साथ साथ 85% के शताब्‍दी विकास लक्ष्‍य से बेहतर था ।

    सांख्यिकीय स्रोत: Government of India TB Control Annual Report 2012

  9. औषधी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ रही है
  10. अब से 10 वर्ष पूर्व तक यह संभव था कि तपेदिक के रोग से ग्रसित किसी व्‍यक्ति का यदि समय पर निदान हो जाए और उपचार योजना के अनुसार पूरा उपचार प्राप्‍त किया जाए तो वह पूरी तरह से स्‍वस्‍थ हो सकता था । अनेक लोग अभी भी मृत्‍यु को प्राप्‍त हो रहे हैं परन्‍तु दवाएं अपना कार्य कर रही हैं । तथापि, अब बहु औषध प्रतिरोधी – तपेदिक (एमडीआर – टीबी) तथा गहन औषध प्रतिरोधी –तपेदिक (एक्‍सडीआर-टीबी) से ग्रसित व्‍यक्तियों की संख्‍या में निरंतर वृद्धि हो रही है । एमडीआर –तपेदिक की परिभाषा के अनुसार यह ऐसी तपेदिक है जो प्रथम लाईन उपचार के लिए ज्ञात इ‍सोनियाजिड तथा रिफाम्पिसिन दवाओं की प्रतिरोधक है । यदि बीमारी दूसरी लाईन की फ्लूरोकिनोलोन ग्रुप की उपचार दवाओं तथा इंजेक्‍शन योग्‍य अन्‍य दवाओं की प्रतिरोधक है तो उसे एक्‍सडीआर – तपेदिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है ।

    प्रतिरोधक तपेदिक की बढ़ती हुई विकास दर तपेदिक नियंत्रक समुदाय के लिए एक चिन्‍ता का विषय है । वर्ष 2005 तथा वर्ष 2006 में भारत में एमडीआर – तपेदिक के क्रमश: 34 तथा 33 ज्ञात पॉजिटिव मामले थे । वर्ष 2013 में विस्‍फोटक रूप से यह संख्‍या बढ़कर 25,244 हो गई । इसकी बढ़ती दर संभवत: बेहतर ट्रैकिंग तथा सूचना प्रक्रिया का परिणाम भी हो सकती है परन्‍तु अनुमान यह लगाया गया है कि एमडीआर – तपेदिक के लगभग 55% मामले तो पकड़ में नहीं आ पा रहे हैं । फिलहाल तपेदिक के नए मामलों में से एमडीआर – तपेदिक के मामले 2.2% ही पाए जाते हैं परन्‍तु संबंधित महामारी विशेषज्ञों को चिन्‍ता यह है कि यदि एमडीआर – तपेदिक को नियंत्रित नहीं किया गया तो यह नियंत्रण से बाहर होकर एक्‍सडीआर – तपेदिक का रूप धारण कर सकती है ।

    तिरछी डैश रेखा से एमडीआर – टीबी के रिकार्ड किए गए मामलों की वृद्धि दर का अनुमान लगाया जा सकता है और साथ ही यह भी पता चलता है कि यदि वृद्धि दर यही रही तो वर्ष 2018 तक एक मिलियन नए मामले रिकार्ड किए जा सकेंगे ।

    सांख्यिकीय स्रोत: WHO TB Data

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