डिपथेरिया (Diptheria) के बारे में आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए


नाक व गले में होने वाले जीवाणुओं के संक्रमण को डिपथेरिया रोग कहते हैं जो कि निहायत तेजी से फैलने वाला छूत का रोग है और विशेषकर पांच वर्ष से कम उमर वाले बच्चों के लिए बेहद खतरनाक होता है । जिन ब्च्चों को सही समय पर टीका न लगाया गया हो, या कुपोषित हों, या जो ज्यादा भीड भाड वाले या गंदगी से भरे /अस्वास्थ्यकर इलाके में रहते हैं उन्हें विशेषकर डिपथेरिया रोग होने का खतरा अधिक होता है ।

लक्षण

डिपथीरिया होने पर प्रारंभ में विशेषकर गले में बूरी तरह दर्द होने लगता है जिसके साथ अक्सर बुखार हो जाता है या गले की ग्रंथि में सूजन आ जाती है । जैसे ही रोग अधिक बढने लगता है, धुंधला, गहरे रंग और झिल्ली में लिपटा (कोटिंंग) जीवाणु संक्रमण के रूप में श्वास नलिका में फैलने लगता है । ऐसी परत से रोगी को सांस लेने और निगलने में तकलीफ होती है । संक्रमण अधिक बढने पर रोगी में पीलापन, चमडी ठंडी, धडकन तेज, और ठंडे पसीने सहित द्वि-दृष्टि, वाणी में अस्पष्टता और गम्भीर मामलों में सदमा होने जैसे संकेत दिखाई देने लगते हैं ।

अगर उपचार न किया जाए तो डिपथीरिया का विष रक्तप्रवाह के माध्यम से फैलने लगता है और मुख्य अंगों में बहुत अधिक परेशानी पैदा हो जाती है । यह दिल और गुर्दे को नष्ट कर सकता है और आखिर में स्नायु तंत्र को इस कदर नुकसान पहुंचा सकता है कि इससे रोगी को लकवा मार सकता है । उपचार न होने पर लगभग 50% डिपथीरिया रोगी जान गँवा बैठते हैं । डिपथीरिया निहायत ही छूत का रोग है जो एक दूसरे के संपर्क में आने से छींकने और खांसने से आसानी से फैल जाता है । कुछ लोग सक्रमित हो चुके होते हैं परंतु उनमें रोग के लक्षण दिखाई नहीं देते जबकि हो सकता है कि वे चार हफ्ते पहले से ही सक्रमित हों ।

रोकथाम

डिपथीरिया की रोकथाम उसके टीकाकरण पर निर्भर करती है । डिपथीरिया/टेटनस /परटुसिस (DTP) का टीका सभी बच्चों और गैर-प्रतिरक्षित बालिगों को लगाया जाना चाहिए । किशोर व बालिगों को हर दस वर्षों बाद वर्धक टीका लगाया जाना चाहिए । क्योंकि अधिकतर मामले उन्हीं लोगों के होते हैं जिन्हें आरंभ में कोई टीका न लगाया गया हो । गभर्वती महिलाओं को भी गर्भ के दूसरे आधे में यह टीका लगाया जाना चाहिए, भले ही उन्हें इससे पहले टीका या बर्धक टीका लगाया जा चुका हो । अधिकांश लोगो को इस टीके से कोई नुकसान नही होता यद्यपि किसी किसी को दवा के प्रभाव से कभी-कभार टीके के स्थान में हल्क सा उभार या लाली या हल्का बुखार हो सकता है ।

उपचार

डिपथीरिया रोगी को तत्काल अलग करें और उपचार के लिए अस्पताल ले जाएं । जिन लोगों का टीकाकरण न हुआ हो और जो पांच वर्ष से कम या 60 वर्ष से अधिक आयु के हों उन सभी को रोगी से दूर रखा जाए ।

एक बार जब डॉक्टर गले में संक्रमण होने की पुष्टि कर दे, तो रोगी को नस या टीके के माध्यम से एंटी-टॉक्सिन दिए जाते हैं । इस दवा से रक्तप्रवाह में पहले से मौजूद किसी प्रकार के डिपथीरिया टॉक्सिन के असर को निष्प्रभावित किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त डिपथीरिया जीवाणुओं का उन्मूलन करने के लिए रोगी को उपचार के लिए एंटीबॉयटिक दिए जाते हैं । यदि रोग बढ जाए तो श्वास प्रक्रिया को सुचारु बनाए रखने के लिए रोगी को वायुयंत्र (ventilator) पर रखा जाता है । जिन मामलों में गुर्दे, दिल या स्नायु-तंत्र जैसे मुख्य अंग प्रंभावित हो जाएं तो उन्हें अतिरिक्त दवाएं, IV पेय पदार्थ व ऑक्सीजन देने की जरूरत होती है ।

घर में रहने वाले सभी सदस्य जो डिपथीरिया रोगी के संपर्क में आए हों उनका उपचार वर्धक टीका लगा कर किया जाए और यह निर्धारित करने के लिए कि इन लोगों को सक्रमण हुआ है या नहीं उनके प्रतिरक्षा स्तर व कंठनाली में संवर्धन का अनुमान लगाया जाए । रोगनिरोधी एंटीबॉयटिक भी दिए जाने चाहिए ।

यदि संक्रमण के बारे में जल्द पता लग जाए और रोगी को तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाए तो संपूर्ण स्वास्थ्यलाभ की सम्भावना अधिक होती है । जब एंटीबॉयटिक और एंटी-टॉक्सिन दवाएं काम कर रही हों तब रोगी को संपूर्ण स्वास्थ्यलाभ के लिए लगभग चार से छ: हफ्ते का आराम करना चाहिए । डिपथीरिया से मायोकार्डिटिस, या गुर्दे की खराबी जैसी समस्याएं होने पर संपूर्ण स्वास्थ्यलाभ के लिए रोगी का और अधिक उपचार करने की आवश्यकता होती है ।

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