तपेदिक (TB) के बारे में आपके लिए सब कुछ जानना जरुरी है


भारत में बच्चे की जांच डॉक्टर करता है. FLICKR/Clinton Foundation

भारत में बच्चे की जांच डॉक्टर करता है. FLICKR/Clinton Foundation

तपेदिक (TB) छूत का रोग है जो जीवाणुओं के कारण फैलता है, आमतौर पर जो फेफडों को प्रभावित करता है , परंतु कभी-कभी शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर देता है जैसे रीढ,गर्दे या मस्तिष्क आदि । हालांकि कुछ वर्ष पहले तक ऐसी दवाएं थीं जो तपेदिक (TB) के इलाज में बहुत अच्छी तरह काम करती थीं परंतु तपेदिक (TB) जीवाणुओं के ऐसे कई प्रकार हैं जो दवाओं को प्रभावशून्य कर देते हैं । यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि शायद इस कारण तपेदिक (TB) का इलाज कर पाना संभव न हो ।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार तपेदिक (TB) से 2 लाख लोग संक्रमित होते हैं, जिसका अभिप्राय है कि उनके शरीर में जीवाणु होते हैं, परंतु केवल कुछ ही लोग वास्तव मे बिमार होते हैं और उनमें रोग के लक्षण पैदा होने लगते हैं । अधिकांश लोग जो तपेदिक (TB) से संक्रमित होते हैं परंतु वे बिमार नही होते उन्हें अप्रत्यक्ष तपेदिक (TB) होती है और वे संक्रामक भी नही होते । जिन लोगो में लक्षण दिखाई नहीं देते उनको सक्रिय तपेदिक (TB) या टी बी रोग होता है, और वह दूसरे लोगों में यह रोग फैला सकते हैं ।

2008 से 2013 के बीच प्रत्येक वर्ष भारत में लगभग 1.4 से 1.5 लाख लोगों को सक्रिय तपेदिक (TB) हो जाती है । यद्यपि ऐसे मामलों की संख्या कुछ कम हो रही है, परंतु तपेदिक (TB) रोग वाले कुछ लोग जो पूरी तरह स्वस्थ नही हो पाए और बिमारी के कारण जिनकी मृत्यु हो गई या उनकी मृत्यु दर धीरे -धीरे बढ रही है । ऐसा होने का कारण यह हो सकता है कि प्रभावशून्य करने वाली तपेदिक (TB) की दवाओं में वृद्धि हो गई है ।

लक्षण

अधिकांश लोग जिन्हें तपेदिक (TB) रोग हो जाता है उनके फेफडों में संक्रमण हो जाता है और उनमें निम्नलिखित लक्षण दिखाई देने लगते हैं :

  • बहुत ही बुरी तरह खांसी जो तीन या अधिक समय तक रहती है ।
  • छाती में दर्द
  • खून या बलगम (लार और लसदार मिली बलगम ) वाली खांसी
  • रात को पसीने से भीग जाना
  • कमजोरी या थकान
  • अकारण वजन गिरना
  • भूख न लगना
  • अत्याधिक ठण्ड लगना या बुखार आना

यदि संक्रमण शरीर के अन्य अंगों में हो जाए, तो लक्षण भिन्न प्रकार के होते हैं जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर का कौन सा अंग संक्रमित है । पेशाब में खून आना गुर्दे में संक्रमण होने के संकेत है । भारत में फेफडों के अलावा शरीर के अन्य अंगों में तपेदिक (TB) वाले मामले अधिक सामने आ रहे हैं ॥

यदि किसी व्यक्ति में यह लक्षण पाए जाएं तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाया जाए , जो यह निर्धारित करेगा कि क्या इन्हीं कारणों से ऐसे परिणाम सामने आ रहे हैं । तपेदिक (TB) रोग की जांच करने के लिए डॉक्टर बहुत से टेस्ट कर सकता है । डॉक्टर यदि आवश्यक समझे तो तपेदिक (TB) संक्रमण की पुष्टि करने के लिए चमडी के टेस्ट, छाती के एक्स-रे, सीटी स्कैन या खून या थूक के लैब टेस्ट कराने की सिफारिश कर सकता है ।

रोकथाम

तपेदिक (TB) रोग सक्रिय टीबी वाले व्यक्ति से उसके आस-पास रहने वाले व्यक्तियों में हवा के माध्यम से फैलने लगता है । जब फेफडों या गले में तपेदिक (TB) से संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता, हंसता, थूकता, बोलता या गाना गाता है तब वह व्यक्ति हवा में तपेदिक (TB) के कीटाणू फैला देता है । उस समय आस-पास रहने वाला कोई भी व्यक्ति हवा में फैले इन कीटाणूओं से भरी सांस ले लेता है और इससे उसके बिमार होने का खतरा भी बढ जाता है ।

तपेदिक (TB) से संक्रमित व्यक्ति के आस-पास रहने वाला उसके परिवार के सदस्यों के संक्रामित होने की संभावना अधिक रहती है । इसे फैलने से रोकने के लिए तपेदिक (TB) से संक्रमित व्यक्ति को अपने घर में ही रहना चाहिए, अपने परिवार के सदस्यों से दूर रहना चाहिए या फिर जब वो दूसरे लोगों के आस-पास हो तो उसे सर्जिकल मास्क पहनना चाहिए । तपेदिक (TB) के कीटाणूओं को घर से दूर रखने के लिए कमरे का हवादार होना जरूरी है ।

यह भी संभव है कि तपेदिक (TB) के कीटाणू गाय, भैंस, भेड, बकरी या अन्य जानवरों का कच्चा दूध (बिना उबला या पाश्चरीकृत किए बिना) पीने से या कच्चे दूध से बने घी, पनीर आदि खाने से भी हो सकता है । दूध को पीने से पहले अच्छी तरह उबाल लेना चाहिए ।

यद्यपि लगभग 3 में से 1 आदमी के शरीर में तपेदिक (TB) के कीटाणू होते हैं , उनमें से अधिकांश की प्रतिरोधी शक्ति इन कीटाणूओं से लडने में सक्षम है जो आदमी को बिमार होने से बचाता है । जिन लोगों की प्रतिरोधी शक्ति कमजोर है उनके बिमार होने की संभावना अधिक होती है । जो लोग HIV/AIDS से पीडित होते हैं या जो लोग सिगरेट पीते हैं उन्हें तपेदिक (TB) होने का खतरा कहीं अधिक होता है । अन्य बिमारियां जैसे मधुमेह और तपेदिक (TB) के कारण हुई पहली बिमारी, मद्यपान या अवैध नशीली दवाओं का सेवन करने वालों में भी तपेदिक (TB) होने का खतरा बढ जाता है ।

उपचार

तपेदिक (TB) का उपचार करने के लिए विशेष एंटीबॉयोटिकस का प्रयोग किया जाता है और अक्सर इसमें एक से अधिक दवा लेनी पडती है । तपेदिक (TB) से पीडित व्यक्ति को केवल डॉक्टर द्वारा बताई दवा लेनी चाहिए । इसके अतिरिक्त तपेदिक (TB) का उपचार काफी लम्बा होता है और इसमें 6 से 9 हफ्ते लग जाते हैं । भले ही तपेदिक (TB) से पीडित व्यक्ति कुछ हफ्तों के बाद ठीक मेह्सूस करने लग जाता है परंतु उसे डॉक्टर द्वारा बताए अनुसार पूरे समय के लिए दवा खानी चाहिए ।

गलत दवा खाने या जल्दी दवा छोडने से कुछ प्रतिरोधी कीटाणू जीवित हो जाते हैं जो फिर से बढने लगते हैं और आदमी को दुबारा बिमार कर देते है । यह एक वास्तविक समस्या है जो बहुत से देशों विशेष कर भारत में बढती जा रही है । कभी-कभी स्वास्थ्य-सेवा अधिकारी को यह सुनिश्चित करने का काम सौंपा जाता है कि तपेदिक (TB) का रोगी अपनी दवाएं लगातार ले रहा है या नहीं । यह रोगी और समाज दोनों के लिए अच्छा होताहै ।

टीकाकरण

तपेदिक (TB) रोग की रोकथाम के लिए Bacille Calmette-Guérin (BCG) नाम का टीका लगाया जाना चाहिए । भारत की बाल चिक्तिसा अकादमी ने सिफारिश की है कि बच्चे के जन्म या पांच वर्ष की आयु तक किसी भी समय यह टीका लगाया जाना चाहिए । तपेदिक (TB) रोग की रोकथाम के लिए यह टीका युवाओं के लिए ज्यादा असरदार नही होता और बच्चों के मामले में भी ह्मेशा रोग की रोकथाम नहीं कर पाता ।

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