विश्व भर में यह अवधारणा है कि चुम्बन किसी प्रकार से भी रोमांस का प्रतीक नहीं है ।


Romantic kissing isn’t a global phenomenon

Photo: Imagesbazaar

चुम्बन प्रक्रिया – प्रेम प्रस्तुति की यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे अमूमन हम लगाव एवं लैंगिक क्रियाओं से जोडते हैं परन्तु विश्वास करें पूरे विश्व में इसे हमारे इस अर्थ के रूप में नहीं लिया जाता । कला, साहित्य, तथा मीडिया में इसकी अनेकों प्रस्तुतियां होने के बावजूद भी इस संबंध में यह आम सहमति नहीं हुई है कि सार्वलौकिक रूप से मानव के चुम्बन को किसी प्रकार के रोमांस अथवा लैंगिक क्रियाओं से जोड़ा गया है अथवा नहीं । वस्तुत: नवीन खोज के अनुसार कुछ संस्कृतियों में होंठ से होंठ जोड़ने की प्रक्रिया को घृणास्पद माना गया है ।

अमेरिकन एन्थ्रोपोलोजिस्ट में प्रकाशित एक अध्‍ययन के अनुसार विशेषज्ञों ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है कि “मानव लोक अथवा किसी भी पूर्व लोक में लैंगिक क्रियाओं में  प्रणयपूर्ण चुम्बन की अंतरंगता के कहीं कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं ”

इंडियाना यूनिवर्सिटी के किन्से इंस्टीट्यूट में अनुसंधान वैज्ञानिक जस्टिन गार्सिया ने एक सहायक लेखक के रूप में अमेरिकन एन्थ्रोपोलोजिस्ट में “किसी पूर्व मानव लोक में प्रणय (रोमांस) और लैंगिक क्रियाओं में चुम्बन की क्‍या कोई अंतरंगता है?” के नाम से एक नया अध्ययन प्रकाशित किया गया है ।

इस अध्ययन में सार्वभौमिक तौर पर यह जानकारी प्राप्त करने के लिए 168 संस्कृतियों का अध्ययन किया गया है कि किन संस्कृतियों तथा किन स्थानों में चुम्बन की स्वीकृति प्राप्त है तथा कहां इस प्रक्रिया को लगाव की प्रक्रिया नहीं माना गया है । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किए गए अध्ययन में से मात्र 46%  संस्कृतियों में ही रोमांस / लैंगिक क्रियाओं में चुम्बन क्रिया को होंठ से होंठ जोड़ने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है ।

आईयू बलूमिंग कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस में लैंगिक अध्ययन के सहायक प्रोफेसर गार्सिया के अनुसार “हमारा यह अनुमान था कि कुछ संस्कृतियों में रोमांस/ लैंगिंक क्रियाओं में चुम्बन का या तो प्रयोग ही नहीं किया जाता होगा या फिर यह लगाव प्रस्तुति का एक माध्यम मात्र ही होगा परन्तु हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इस श्रेणी में अधिकांश श्रेणियां आती हैं । इससे वास्तव में हमें यह पता चलता है कि किस प्रकार पश्चिमी अवधारणाएं मानव व्यवहार के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं” ।

रोमांस को चुम्बन से आखिर जोड़ा कहां गया है ?  मध्य पूर्व की सभी 10 संस्कृतियों में चुम्बन को लगाव के रूप में लिया जाता है । यूरोप की 70% तथा एशिया की 73% संस्कृतियां रोमांटिक चुम्बन के बारे में जानती  हैं । उत्तरी अमेरिका में 55% संस्कृतियों में पाया गया है कि चुम्बन का इस्तेमाल रोमांस के लिए किया जाता  है ।

तथापि, मध्य अमेरिका में लगाव के इस विशिष्ट व्यवहार के कोई प्रतीक संकेत दिखाई नहीं दिए हैं । अनुसंधान में यह बताया गया है कि मानव जाति का अध्ययन करने वाले किसी ज्ञाता अथवा किसी कृषि विशेषज्ञ ने उप सहारा अफ्रीकन तथा न्यू गुआना क्षेत्रों अथवा अमेजोनियन चारागाहों के संबंध में  किए गए अध्ययनों के अनुसार उनकी संस्कृतियों में रोमांस के लिए चुम्बन प्रक्रिया के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है ।

गार्सिया तथा उसके दल ने यह भी पाया कि जहां कहीं अधिक जटिल सामाजिक संस्कृतियां हैं वहां रोंमास के लिए चुम्बन के प्रयोग की घटनाएं अधिक घटित हुई हैं । उन्होंने यह बताया कि चुम्बन से मानव को अपने साथी से कुछ सीखने तथा उसे अपने साथ जोड़ने का अवसर प्राप्त होता है और यह भी बताया कि “जब कभी भी रस की ग्राह्यता का अनुभव हो तो ऐसा होने से स्वाद एवं सुगंध के माध्यम से उसके स्वास्थ्य की प्रतीति की संभावना प्रबल होती है तथा एक प्रकार से यह प्रक्रिया एक दूसरे के सामर्थ्य तक पहुंचने का साधन भी है” ।

उन्होंने बताया कि “चुम्बन से चूंकि अक्सर सुगंध एवं लार व रोगाणुओं का आदान प्रदान भी होता है अत: इसका एक संभावित जैविक आधार भी है जो विशेषकर ऐसे समाज के लिए घातक हो सकता है जो स्वच्छता के प्रति जागरूक नहीं हैं तथा चुम्बन की प्रक्रिया से श्वास संबंधी अथवा अन्य बीमारियों का संक्रमण हो सकता है” । उन्होंने बताया कि “परन्तु ऐसा केवल उसी समाज में होगा जहां अधिक मात्रा में रोमांस एवं लैगिंक क्रियाओं को में चुम्बन को प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है “ । उन्होंने कहा कि “यह अभी भी अनुसंधान का विषय है कि यह प्रवृत्ति किस  ओर का रुख करेगी” ।

इन उपलब्धियों से जो अवधारणा स्थापित हुई है उससे यह स्थापित होता है कि विभिन्न संस्कृतियों में प्रेम अभिव्यक्ति न केवल भिन्न होते हुए भी चुम्बन प्रक्रिया को विश्‍व भर में रोमांस के लिए विलक्षण प्रक्रिया के रूप में नहीं माना गया है । अभी भी अनेकों संस्कृतियों में अभिव्यक्ति की यह एक सामान्य प्रक्रिया है ।

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