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गोद लेने की प्रक्रिया में सालों का समय लगने के कारण भारत में बच्चे गोद लेने रुझान कम हो रहा है।
गोद लेने की प्रक्रिया में सालों का समय लगने के कारण भारत में बच्चे गोद लेने रुझान कम हो रहा है।
एक अध्ययन बताता है कि एडीएचडी ग्रस्त बच्चे चंचलता के कारण बेहतर सीखते हैं।
भारत में जो मांएं शिशु को स्तनपान कराने में असमर्थ हैं वे अब मिल्क बैंक की सहायता ले सकती हैं।
सेक्स शिक्षा का अर्थ केवल यह समझाना नहीं है कि यौन संबंध कैसे बनाये जाते हैं बल्कि इससे यौन शोषण, संक्रमण और अनचाहे गर्भ से सुरक्षा का रास्ता भी खुलता है।
जो बच्चे आत्म नियंत्रण रखते हैं वे उन बच्चों की तुलना में जो यह क्षमता नहीं रखते, वे बड़े होकर 40 फीसदी कम बेराज़गार रहते हैं।
मछली में पाये जाने वाले फैटी एसिड की कमी के कारण भ्रण के विकास के दौरान और शिशु के जन्म की शुरुआत में भी मस्तिष्क का विकास बाधित होता है।
अध्ययन के अनुसार जो बच्चे हमदर्दी जताना जानते हैं वे ज़्यादा लोकप्रिय होते हैं और आसानी से दोस्त बना सकते हैं।
कुपोषण से निपटने के लिए ज़िला स्तर पर डेटा की ज़रूरत है। राज्य स्तर पर बना डेटा यह नहीं दर्शाता कि राज्य में किस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
यह जानकर हैरान न हों कि डॉक्टरों का सुझाव है कि माताएं बीमार होने पर भी शिशु को स्तनपान करा सकती हैं।
जो बच्चे मृत्यु, तलाक या त्रासदी के कारण मनोवैज्ञानिक तनाव झेलते हैं, उनमें बचपन में डायबिटीज़ होने की आशंका तीन गुना ज़्यादा होती है।
जैसे-जैसे आपका बच्चा बड़ा होता है, दिन की नींद उसकी रात की नींद पर गलत असर डालती है, जो लाभदायक विकल्प नहीं है।
अगर बच्चा बात-बात पर बिगड़ता है तो हो सकता है कि इसका कारण यह हो कि उसे अपनी रुचियों के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल रहा है।
बच्चों को उनका निजी फोन मिले, इस बारे में फैसला करने से पहले कुछ बिंदुओं पर गौर करें।
भारत में ग्रीष्म काल अपनी दस्तक चूंकि अब देने ही वाला है अत: आपके लिए न्यूजपाई द्वारा बच्चों के लिए उचित वस्त्रों के संबंध में यहां संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की गई है ।
बच्चों के लिए समय निकालना मुश्किल है, लेकिन थोड़ा समय भी महत्वपूर्ण हो सकता है। क्वालिटि समय बिताने के तरीके जानने के लिए क्लिक करें।
घर में शांति बनाये रखने और बुद्धिमत्ता साबित करने के लिए बच्चों की कहा-सुनी या झगड़े में आपका उचित ढंग से दखल देना महत्वपूर्ण होता है।
भारत में खाद्य सुरक्षा न होने की समस्या का गंभीर उदाहरण है 2013 में हुई 22 स्कूली बच्चों की मौत जैसे अफसोसनाक मामले।
बच्चों की परवरिश के बारे में फैसला करते वक्त अभिभावक को कई तरह की भावनाएं प्रभावित करती हैं। […]
जहां कुछ लोग अपने बच्चों के लिए बेहद सफाई का खयाल रखते हैं वहीं कुछ लोग इस पर […]
यह उत्पीड़न का प्रचलित माध्यम बन गया है क्योंकि सोशल मीडिया और अन्य तकनीकी उपकरणों जैसे मोबाइल फोन और लैपटॉप आदि के ज़रिये कई बार सूचनाओं पर नियंत्रण और नज़र रख पाना संभव नहीं होता।
एक नये लेख में यह सवाल उठाया गया है कि क्या स्कूलों में धूप मिलने से बच्चों को मायोपिया जैसे रोगों से निजात मिल सकती है।