गर्भनिरोधक पर दि The Hindu में छपा भ्रामक लेख


These emergency contraceptives are available in India.

ये आपात गर्भ निरोधकों भारत में उपलब्ध हैं।

कई सर्वेक्षणों में बार-बार पाया गया है कि भारत में गर्भनिरोधक को लेकर युवतियों में कम जानकारी है और वे गर्भनिरोधकों का कम इस्तेमाल करती हैं। गर्भनिरोधकों के अभाव में अनजाने में या असमय गर्भधारण की घटनाएं बढ़ती हैं और इनमें से कुछ अनचाहे गर्भ भी होते हैं जिन्हें महिलाएं धारण नहीं करना चाहती हैं। इस तरह के कई गर्भधारणों में इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन पिल्स से बचाव हो सकता है। इस बारे में बेहतर सूचनाएं मदद कर सकती हैं।

इस बारे में भारत के प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी अखबार दि हिंदू ने गलत और भ्रामक जानकारियां प्रकाशित की हैं जिससे समस्या और गंभीर ही होगी। इस लेख की शुरुआत में लिखा गया है कि ‘‘विशेषज्ञों ने इंगित किया है कि महिलाओं द्वारा ली जाने वाली इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन पिल्स ट्यूबल डिफेक्अ का एक बड़ा कारण बन गया है जिसकी वजह से बांझपन हो सकता है।’’ इस लेख में सिर्फ एक स्त्री रोग विशेषज्ञ का हवाला दिया गया है जबकि इस दावे के पीछे किसी वैज्ञानिक अध्ययन या प्रकाशित शोध का संदर्भ नहीं है।

भारत में वैधानिक रूप से उपलब्ध एक इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन दवा लीवनरगेस्ट्रेल के कारण गर्भपात नहीं होता है। बल्कि इससे अंडाशय द्वारा अंड जारी करने में देर होती है। अंड के जारी होने के समय, अगर यह काम करता है तो कोई भी शुक्राणु सक्रिय नहीं हो सकता और इसलिए कोई प्रजनन नहीं हो सकता। इसलिए ओवुलेशन यानी अंडन के बाद यह लिये जाने पर जन्म पर नियंत्रण संभव नहीं हो पाता।

स्पष्ट रूप से, इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन और बांझपन के जुड़े होने के संबंध में कोई प्रकाशित अध्ययन नहीं है और जो कुछेक हैं वे इनका कोई संबंध नहीं दर्शाते। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन के बार बार इस्तेमाल से स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं होता, लेकिन इससे मासिक अनियमितताएं हो सकती हैं। कुल मिलाकर, इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन पिल्स का फैलोपियन ट्यूब के संक्रमण से कोई लेना-देना नहीं है।

दि हिंदू में छपे आलेख के लेखक ने शायद स्त्री रोग विशेषज्ञ द्वारा कही गई बातों को गलत ढंग से समझकर लिखा है, कथन कुछ यह था ‘‘गर्भपात होना, ट्यूबल डिफेक्ट पैदा करने वाले संक्रमण का कारण हो सकता है।’’ यह तथ्यात्मक रूप से ठीक है लेकिन ऐसे संक्रमणों से बचाव ठीक प्रकार से इलाज द्वारा संभव हो सकता है। एक कारण यह हो सकता है कि सरकारी और निजी अस्पताल ऐसे संक्रमणों से बचाव के लिए ठीक भूमिका नहीं निभा रहे हैं और यह भी एक कारण है कि कुछ महिलाएं गर्भपात के लिए अवैध या बिना लाइसेंस के डॉक्टरों के पास जाती हैं। ऐसा शायद कम पैसों, गोपनीयता के चलते किया जाता है लेकिन ये अवैध डॉक्टर काफी नुकसान पहुंचा देते हैं।

दि हिंदू में इस तरह के और भी भ्रामक और गलत तथ्य प्रकाशित किये गये हैं जो यहां दिये जा रहे हैं:

– गायनेक: ‘‘नियमावली के मुताबिक कोई भी डॉक्टर इस तरह के पिल्स के लिए मरीज़ को पर्चा नहीं लिख सकता है।’’ वास्तव में इन पिल्स के लिए प्रेस्क्रिप्शन ज़रूरी नहीं है, बिना इसके ही विक्रय होता है।

– गायनेक: ‘‘उन्हें अपनी देखरेख में मरीज़ों को पिल्स का सेवन कराना चाहिए।’’ ऐसा ज़रूरी नहीं है।

– गायनेक: ‘‘ऐसी पिल्स केवल इमरजेंसी के लिए हैं लेकिन आजकल यह सामान्य हो गया है। पारंपरिक गर्भनिरोधकों को भुलाया जा रहा है। इससे महिलाओं के शरीर पर बुरा असर पड़ रहा है।’’ विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य संस्थाएं ईसीपी के इस्तेमाल को प्रोत्साहन नहीं देतीं क्योंकि इनके कारण कई बार गर्भधारण से बचाव नहीं हो पाता और मासिक चक्र में अवरोध आते हैं लेकिन इनके अलावा और कोई लंबे समय तक के लिए असर नहीं पड़ता है।

– दि हिंदू: ‘‘कई लोग इंगित करते हैं कि इस बारे में कोई नियमन कोई नहीं है।’’ जबकि इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन पिल्स को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन और राज्य ड्रग कंट्रोलर्स द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

– दि हिंदू: ‘‘हैदराबाद में दवा विक्रेता दुकानों से ये पिल्स बेच रहे हैं।’’ इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन पिल्स ऑनलाइन तक बिकती हैं, बिना किसी प्रेस्क्रिप्शन के।

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