बहुत पेचीदा है भारत में बच्चा गोद लेना


Darinpfeiffer | Dreamstime.com

Darinpfeiffer | Dreamstime.com

जबकि भारत में 3 करोड़ से भी ज़्यादा बच्चे अनाथ हैं, सिर्फ 50 हज़ार ही गोद लिये जाने के लिए उपलब्ध हैं और आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार हर साल 5 हज़ार से भी कम बच्चे गोद लिये जाते हैं। इस आंकड़े के कम होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे शायद इसकी कम मांग होना लेकिन गोद लेने का सिस्टम भी एक बड़ा दोषी है। अपुष्ट रिपोर्टों के मुताबिक कई लोग हैं जो बच्चों को गोद लेना चाहते हैं लेकिन उलझन भरी प्रक्रिया के कारण वे कतरा जाते हैं।

बिज़नेस इनसाइडर के मुताबिक, इंडियन सोसायटी फॉर असिस्टेड रिप्रोडक्शन के सर्वे में पाया गया है कि 31 से 40 साल के उम्र के 46 फीसदी विवाहित युगलों में से कोई एक प्रजनन के योग्य नहीं है। इन कपल्स के लिए गोद लेना ही परिवार में बच्चे के होने का एकमात्र उपाय है। लेकिन, इसके लिए कानूनी प्रक्रिया बेहद लंबी, पेचीदा और भावनात्मक रूप से सताने वाली है। कुछ अनुमानों के अनुसार इस पूरी प्रक्रिया में तीन से चार साल तक का समय लग जाता है। यूएस स्अेट डिपार्टमेंट के अनुसार, 2014 में भारत में गोद लेने की प्रक्रिया में औसतन 732 दिन का समय लगा।

गोद लेने के लिए मूलभूत योग्यता काफी सरल दिखती है। 30 साल से ज़्यादा का कोई भी व्यक्ति जो आर्थक और स्वास्थ्य दृष्टि से ठीक है, वह बच्चा गोद ले सकता है। यहां से पेचीदगी शुरू होती है जैसे गोद लेने वाले अभिभावक की अधिकतम आयु सीमा क्या है, यह गोद लिये जाने वाले बच्चे की उम्र पर निर्भर करता है। अकेला पुरुष किसी बच्ची को गोद नहीं ले सकता है। अडोप्शन एजेंसियों की प्रक्रिया आदि निर्धारित करने वाले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित सेंट्रल अडोप्शन रिसोर्स अथॉरिटि द्वारा इस तरह के नियम बनाये गये हैं। गोद लेने के लिए और भी बहुत सी चीज़ें ज़रूरी हैं जो कई और कानूनों के द्वारा इच्छुक अभिभावकों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं।

गोद लेने वाले अभिभावक अगर भारतीय नागरिक हैं और हिंदू, सिख, जैन या बौद्ध हैं तो उनके लिए इसकी प्रक्रिया हिंदू अडोप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956 के अंतर्गत है। इस कानून के अनुसार, अगर एक अभिभावक के पहले ही एक बच्चा है तो वे समान लिंग का बच्चा गोद नहीं ले सकते। इसका मतलब यह है कि सभी बच्चों को स्त्री और पुरुष दो ही लिंगों की श्रेणी में माना जाएगा, उभयलिंगी बच्चों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। बिना बच्चों के अभिभावक सिर्फ दो ही बच्चे गोद ले सकते हैं और वे कोई बच्चा गोद नहीं ले सकते जिनके एक बेटा और एक अेटी हो।

गोद लेने वाले अभिभावक यदि भारतीय नागरिक हैं लेकिन मुसिल्म, ईसाई, पारसी या ज्यू या एनआरआई या भारत के ओवरसीज़ सिटिज़न हैं जो भारत में रहते हैं या गैर भारतीय नागरिक हैं तो उनके लिए गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट 1890 लागू होता है। हालांकि इस कानून का गोद लेने की प्रक्रिया पर खास असर नहीं पड़ता लेकिन यह निश्चित करता है कि अभिभावक गोद लिये गये बच्चे के गार्जियन तक तक होंगे जब तक वह 18 साल का नहीं हो जाता या जाती। साथ ही भारतीय कानून के अनुसार बच्चे को स्वाभाविक रूप से संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। एनआरआई या ओसीआई नागरिक भारतीय बच्चे अपनी नागरिकता वाले देश के कानून के हिसाब से गोद ले सकते हैं।

जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के अनुसार, राज्य स्तर पर यह छूट दी जाती है कि एक परिवार समान लिंग का बच्चा होने पर भी किसी बच्चे को गोद ले सकता है। एक अनाथ बच्चे को गोद लेने के लिए राज्य स्तरीय बाल कल्याण समिति के दो सदस्यों की अनुमति लेना भी आवश्यक है।

एनआरआई और ओसीआई द्वारा गोद लेने के मामले में, भारत द्वारा 2003 में रेटिफाई किये गये अंतर-देशीय गोद प्रक्रिया पर 1993 के हेग कन्वेंशन के नियम अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं और इस कन्वेंशन के मुताबिक गोद लेने की प्रक्रिया को सुचारू रूप से सीएआरए द्वारा संयोजित किया जाता है।

महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी सीएआरए और राज्य स्तरीय अडोप्शन एजेंसियों के प्रदर्शन को लेकर असंतोष ज़ाहिर कर चुकी हैं। उन्होंने निर्देश दिये हैं कि गोद लेने की प्रक्रिया कुछ महीनों में पूरी होनी चाहिए न कि सालों में और ज़्यादा से ज्त्रयादा बच्चों को इच्छुक अभिभावकों को गोद दिये जाने की आवश्यकता है। इसके बाद, कुछ नियम बदले गये हैं, उदाहरण के लिए, विदेशी अभिभावकों को गोद लिये गये बच्चे का भारतीय पासपोर्ट हासिल करने के लिए कम से कम पेपरवर्क हो, हालांकि ऐसे नियम पूरी तरह लागू नहीं हो सके हैं लेकिन गति पकड़ रहे हैं।

स्वाभाविक रूप से प्रणाली इस तरह की होना ही चाहिए जो बच्चों के हित को ध्यान में रखे और उनके हिसाब से ही कानून और नियम बनाये जाना चाहिए। बच्चों की तस्करी और यौन शोषण के मामले पहले भी सामने आये हैं और वर्तमान में भी हैं। अनाथ बच्चों को गोद दिये जाने की प्रणाली में बिना सोचे-समझे ढील देने से बच्चों को नुकसान होना संभव है। गोद लेने की प्रक्रिया के सहज होने और सालों की जगह महीनों में प्रक्रिया पूर्ण होने के कारण कुछ नयी समस्याएं भी खड़ी हो सकती हैं। गार्जियन की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में बच्चों का अवैध बाज़ार है और इसके समर्थन में अस्पतालों से बच्चे चुराये जाने के हवाले दिये गये हैं।

फिर भी उम्मीद की जाना चाहिए कि सरकार सही संतुलन बनाते हुए ज़्यादा से ज्त्रयादा बच्चों को नया घर दिला पाने का प्रयास करेगी।

यदि आप इस लेख में दी गई सूचना की सराहना करते हैं तो कृप्या फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक और शेयर करें, क्योंकि इससे औरों को भी सूचित करने में मदद मिलेगी ।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *