खोजें, जिन्होंने बचाया बच्चों का जीवन


अभिभावक होना बड़ी ज़िम्मेदारी का काम होता है लेकिन कभी कभी ऐसे क्षण आते हैं जब मामूली घटनाओं को लेकर हम खुद को खुशकिस्मत समझते हैं और शुक्र अदा करते हैं। फिर भी, रोज़मर्रा की कई ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें हम गंभीरता से नहीं लेते और जो हमारे बच्चों के जीवन में बहुत मदद करती हैं। हमारे जीवन को बेहतर बनाने वाली ऐसी ही कुछ वैज्ञानिक बातें यहां बताई जा रही हैं:

स्पिना बिफिडा की रोकथाम: जन्म से ही होने वाले इस बड़े विकार को गर्भधारण के पहले से या उसके दौरान फॉलिक एसिड लेकर रोका जा सकता है। अगर आपको पता नहीं है कि आपने गर्भधारण कर लिया है तो इसे मत लें। इसी कारण से 1990 के दशक में यूएस में महिलाओं को शिशुओं के लिए पर्याप्त पोषण देने के मकसद से सेरल्स जैसे चावल, ब्रेड, पास्ता आदि को फॉलिक एसिड से युक्त किया जाने लगा। भारत में जो महिलाएं नियमित रूप से दाल, भिंडी, पालक, पपीता और मूंगफली का आहार लेती हैं उन्हें प्राकृतिक रूप से फॉलिक एसिड मिलता है।

नवजात का पीलिया से बचाव: जन्म के समय कुछ शिशुओं को पीलिया हो जाता है। पीलिया का कारण पीले रंग का एक द्रव्य बिलिरुबिन है जो लिवर से बनता है और खून में मिल जाता है। पीलिया गंभीर होने पर हमेशा के लिए मस्तिष्क को खराब कर सकता है। हालांकि आजकल इसका इलाज आसानी से फोटोथैरेपी द्वारा हो जाता है जिसमें बच्चे को नीले प्रकाश के सामने रखा जाता है। यह खोज 50 के दशक में हुई थी जब पीलियाग्रस्त खून का एक नमूना टेस्ट ट्यूब में रखकर खिड़की के पास सूर्य की रोशनी में छोड़ दिया गया। तब पाया गया कि बिलिरुबिन का स्तर उस नमूने में कम हो गया। इसके बाद जल्द ही यह संबंध पता चल गया कि सूर्य की रोशनी के विज़िबल स्पेक्ट्रम का नीला हिस्सा एक रासायनिक क्रिया द्वारा बिलिरुबिन को खत्म कर देता है।

टीके: विशेषज्ञों के अनुसार 18वीं सदी में पता चला था कि यूरोपीय ग्वालों को चेचक नहीं होता था जो एक घातक बीमारी है। यह निष्कर्ष निकाला गया कि वे इस बीमारी के मामूली लक्षणों जैसे काउ-पॉक्स से ग्रसित होते थे और इसी वजह से उनके शरीर में घातक बीमारी के लिए प्रतिरोध पैदा हो जाता था। फिर एडवर्ड जेनर ने काउ-पॉक्स नामक टीके का आविष्कार किया जिसे लोगों में इंजेक्शन के ज़रिये डाला जाता था और स्मॉल पॉक्स या चेचक से बचाव हो जाता था। इसी तरह अब कई गंभीर बीमारियों के लिए टीके मौजूद हैं।

कार सीट: 60 के दशक में एक फर्नीचर स्टोर के मालिक ने कार में बच्चों की सीट का निर्माण किया। इससे बच्चों को दुर्घटना के समय में कम क्षति पहुंचती है। यह सीट आगे की बकेट सीटों के बीच में बच्चे को सुरक्षित रखती है जो धातु से बनी होती है। तकनीक के नये ज़माने में, इस तरह की कार सीट्स के कारण हज़ारों बच्चों की जान बचायी जा चुकी है।

वर्तमान में, दुनिया के हर कोने में, पहले की तुलना में बीमारियों और दुर्घटनाओं के कारण बहुत कम बच्चों की मौत होती है। यह सही है कि कुछ देशों में ज़्यादा तरक्की हुई है और कुछ देशों में कम लेकिन तरक्की हुई है। इसके लिए हमें शुक्र अदा करना चाहिए।

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