14-18 आयु के बच्चों के हक की ज़रूरत


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यूनिसेफ के बाल सुरक्षा विशेषज्ञ आर विद्यासागर ने 14 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के अधिकारों की ज़रूरत पर ध्यान खींचा है। उनके अनुसार लागू कानूनों के द्वारा ऐसे किशोरों की अनदेखी की जा रही है क्योंकि कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को केंद्र में रखते हैं।

14-18 आयु के किशोरों का एक बड़ा वर्ग काम करने की बाध्यता के कारण स्कूल से ड्रॉप आउट है। केंद्र और राज्य सरकारों को ऐसे किशोर बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करना चाहए जो विद्यासागर के अनुसार, बाल विवाह, बाल श्रम, यौन उत्पीड़न, आत्महत्या और विभिन्न नशे आदि समस्याओं के शिकार हैं।

विद्यासागर ने ये बातें यूनिसेफ द्वारा प्रायोजित एक वर्कशॉप में कहीं जो बाल अधिकार अनुपालन औश्र बाल संरक्षण विषय पर आधारित थी। इसका आयोजन स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़ एंड लैंग्वेजेज़ और तमिलनाडु की वीआईटी यूनिवर्सिटी के वीआईटी बिज़नेस स्कूल ने सम्मिलित रूप से किया था। इस वर्कशॉप में करीब 200 छात्रों ने हिस्सा लिया।

द हिंदू में उनके हवाले से लिखा गया है कि वर्तमान में अधिकांश वोकेशनल कोर्सेज़ सैद्धांतिक हैं और जो वोकेशनल स्किल्स सिखाई जारही हैं, उनकी उद्योगों में ज़रूरत नहीं बची है। इसके बजाय, उद्योगों की मांग के हिसाब से स्किल्स सिखाई जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि भारत में 40 फीसदी बच्चे 14-18 आयु वर्ग के हैं इसलिए उनकी समस्याओं को तत्काल निदान मिलना चाहिए। जबकि ऐसे बच्चे अपनी समस्याओं को लेकर मुखर हो चुके हैं तो नये कानून बनना चाहिए।

वीआईटी के चांसलर जी विश्वनाथन ने कहा कि यूनिसेफ के सहयोग से इस वर्कशॉप का आयोजन छात्रों में आर्थिक और सामाजिक रूप से उपेक्षित बच्चों की समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाना था। इस आयोजन का मकसद यह विचार करना था कि सरकार और स्कूल इन मुद्दों पर प्रभावी रूप से क्या कदम उठा सकते हैं।

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