समय के साथ-साथ रोगी इंफलूएंजा विषाणुओं एवं विभिन्न विकारों के प्रति प्रतिरक्षा ताकत जुटा लेते हैं । इसलिए बच्चों को फलू होने का खतरा अधिक होता है और वे अधिक तेजी से बिमार होने लगते हैं क्योंकि उनका इन विषाणुओं से पहले कभी सामना नही हुआ होता । फलू के रोगी बच्चे की प्रतिरक्षा ताकत कमजोर हो जाती है और वह अन्य खतरनाक बिमारियों के प्रति संवेदशील हो जाता है जैसे निमोनिया और दमा यहां तक कि साइनस या कान में संक्रमण जैसी मामूली परेशानियां भी होने लगती हैं ।
निर्जलन चिंता का विषय है । विशेषतौर पर जब बच्चे को उल्टी या दस्त लगे हों अथवा बच्चा तरल पेय न ले रहा हो ।
यदि निम्नलिखित में से कुछ भी घटित हो रहा हो तो बच्चों को तुरंत आपतकालीन स्थिति में डॉक्टर को दिखाना चाहिए ।
- शिशु के सर के उपरी हिस्से में हल्का सा निशान दिखाई दे जो थोडा सा उभरा हो।
- 2 माह से कम आयु वाले शिशु को दस्त लग जाएं अथवा उल्टियां होने लगे ।
- चमडी का रंग खासकर होठ और अंगुलियां नीली पड जाएं ।
- बच्चे की चपलता व प्रतिक्रिया में सामान्य से अधिक कमी आ जाए ।
- बच्चा बहुत ज्यादा चिडचिडा हो जाए और किसी के भी पास न आना चाहे ।
- रोते समय बच्चे के थोडे या फिर कोई आंसू न होना ।
- अंदर से मुँह सूखना ।
- आंखें सूनी-सूनी लगना ।
- दस्त या उल्टी में खून आना ।
- 12 घंटों से ज्यादा समय के लिए बूखार रहना।
फलू बहुत तेजी से फैलता है इसलिए बेहतर होता है कि देर न करके डॉक्टर जल्दी बुलाया जाए। यदि लक्षण कुछ हल्के पडने लगें परंतु खांसी और बुखार वापस आ जाए तो तुरंत डॉक्टर के पास या आपतकालीन कक्ष में अवश्य जाएं ।