टाइफाइड के बारे में वह सब जो जानना चाहेंगे


टाइफाइड के बारे में वह सब जो जानना चाहेंगे

Photo: Shutterstock

बारिश के मौसम में भारत में टाइफाइड बुखार आम है, जो संदूषित भोजन व पेय से फैलता है। सालमोनेला टाइफी जीवाणु द्वारा यह रोग होता है जो खून के साथ ही संक्रमित व्यक्तियों की आंत के हिस्सों में मौजूद रहता है। यह शरीर से मॉल के द्वारा निकलता है फिर भी गैर सेहतमंद भोजन और पेय के साथ ही संदूषित पानी से भी यह रोग फैल सकता है।

इस जीवाणु से प्रभावित व्यक्ति के अलावा सीवेज के संदूषित पानी में भी इस जीवाणु का होना सामान्य बात है। अनजाने में आप इस पानी से फल या सब्ज़ी धोने या इस पानी को पीने से संक्रमित हो सकते हैं। टाइफाइड से पीड़ित कुछ लोगों में इलाज के बाद भी यह जीवाणु रहता है जिससे पुरी तरह स्वस्थ हो चुके लोगों को संक्रमण हो सकता है। इस रोग के गंभीर मामले जानलेवा भी हो सकते हैं हालाँकि सामान्य रूप से एंटी बायोटिक्स से इलाज संभव है।

लक्षण एवं पहचान

उपरोक्त जीवाणु शरीर में प्रवेश करने के बाद गुणित होता है। फिर यह रक्त में फैलता है और तब संक्रमित व्यक्ति में ये लक्षण दिखते हैं;

  • 103 से 104 डिग्री एफ तक लगातार बुखार
  • कमजोरी महसूस होना
  • पेट में दर्द
  • सिरदर्द
  • भूख न लगना
  • व्यक्ति में गुलाबी चकत्तों के साथ रैशेज़ दिख सकते हैं

टाइफाइड की जांच के लिए मरीज़ को स्टूल और रक्त परिक्षण करवाना चाहिए।

बताये गए लक्षण दिखने पर अपने डॉक्टर से सलाह लें और ज़रूरी जांच करवाएं।

इलाज

जांच में रोग की पुष्टि होने आर सामान्य रूप से एंटी बायोटिक्स से इलाज किया जाता है। लेकिन, कुछ एंटी बायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोध पैदा होने के मामले बढ़ रहे हैं इसलिए डॉक्टर की सलाह से इलाज करें, अपनी मर्ज़ी से नहीं। ज़रूरी होने पर एंटी बायोटिक को लेकर संदेह की स्थिति को जांचा जा सकता है। ठीक से इलाज न होने पर टाइफाइड के मरीज़ में कई हफ़्तों या महीने तक लक्षण दिख सकते हैं और कुछ मामलो में जान भी जा सकती है।

बचाव

चूँकि टाइफाइड संदूषित पानी और भोजन से फैलता है तो बचाव को आसान तरीका यह है कि गैर सेहतमंद स्थानों पर खाने पीने से बचें। अच्छी तरह हाथ धोने और दूसरी स्वास्थ्यकारी आदतें अपनाने से भी इस रोग से बचा जा सकता है। बचाव का एक अन्य विकल्प जिसकी सिफारिश की जाती है वह है टाइफाइड वैक्सीन।

इंडियन अकैडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स का सुझाव है कि इसकी पहली खुराक नौ से बारह महीने के शिशु को दी जाना चाहिए और फिर तीन वर्ष की आयु में एक बूस्टर। जिन्हें शैशव में यह टीका नहीं मिला वे कभी भी कैचप शॉट ले सकते हैं। टीका अपना असर पांच साल बाद खो देता है इसलिए हर पांच साल में एक बूस्टर ज़रूरी है।

भोजन में विशेष सतर्कता

हालाँकि टीका बीमारी से बचाव करता है लेकिन पूरी तरह असरदार नहीं है। इसलिए खाने पीने सम्बन्धी सावधानी बरतना भी ज़रूरी है। रोग निवारण केंद्र का सूत्र वाक्य है “उबालें, पकाएं, छीलें या भूल जाएँ”, इससे अप असुरक्षित भोजन से बच सकते हैं;

केवल उबला या बोतल बंद पानी पियें. रेस्तरां में ऐसा भोजन चुने जो गर्म और ताज़ा हो रेस्तरां में कभी भी बर्फ न मांगे जब तक सिनिश्चित न हो कि यह साफ़ पानी से बनी है सलाद से बचें क्योंकि आपको पता नहीं है कि यह कैसे पानी से किस तरह धोया गया है स्ट्रीट फ़ूड से बचें क्योंकि विशेषकर बारिश के मौसम में यह आसानी से संदूषित हो सकता है।

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