गलदण्ड रोग यानी मम्प्स बेहद संक्रामक है, विषाणु जनित रोग है जिसकी पहचान है चेहरे के पास लार ग्रंथियों में सूजन जिसे जबड़े का हिस्सा बहुत सूजा हुआ दिखता है। इसका खतरा वयस्कों में अधिक होता है और इसके कारण पुरुषों में अनुर्वरता हो सकती है। यह रोग बलगम और लार के ज़रिये फैलता है। तो, नाक, मुंह और गले में विषाणु के कारण कफ, सटकर बातचीत करने और छींकने के द्वारा यह दूसरों को संक्रमित कर सकता है। अगर आप मम्प्स के रोगी के बर्तन साझा करते हैं तो आपको यह रोग हो सकता है। इसी तरह, अगर आपको यह रोग है तो आपके द्वारा स्पर्श की गई चीज़ें बाद में स्पर्श करने से दूसरे को भी यह रोग हो सकता है।
लक्षण व पहचान
मम्प्स के लक्षण दिखने में 16 से 18 दिन का वक्त लग सकता है। कुछ मामलों में, लक्षण 12 दिन में भी दिख सकते हैं या 25 दिन में भी। प्राथमिक लक्षण यह है कि आपको लार ग्रंथियों में संक्रमण के कारण जबड़े के आसपास का हिस्सा सूजा दिखता है। अन्य लक्षण इस प्रकार है
- हल्का बुखार
- सिरदर्द
- थकान या आलस महसूस करना
- भूख न लगना
- मांसपेशियों में दर्द
अक्सर, लोगों को इस रोग का पता इसलिए नहीं चलता क्योंकि इसे लक्षण बहुत सामान्य या कमज़ोर होते हैं और उनसे कोई खास दिक्कत नहीं होती। वयस्क पुरुषों के लिए, इस विषाणु के कारण उनके वृषण भी प्रभावित हो सकते हैं और उनमें सूजन हो सकती है। यह लक्षण चेहरे की सूजन के एक हफ्ते बाद दिख सकता है। यह दर्दनाक होता है और बेहद कम मामलों में इसके कारण अनुर्वरता हो सकती है। इस विषाणु संक्रमण के कारण जो अन्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं, उनमें एनसेफलाइटिस (मस्तिष्क में होने वाली जलन), मेनिनजाइटिस, बहरापन, महिलाओं में, अंडकोष में जलन (इसे ऊफॉराइटिस कहते हैं) और मैस्टाइटिस शामिल हैं।
इलाज
मम्प्स का कोई इलाज नहीं है। यह रोग सात से सि दिनों में ठीक हो जाता है और सामान्यतया मरीज़ कुछ हफ्तों में रोग से पूरी तरह छुटकारा पा लेता है। जिन्हें विषाणु संक्रमण होता है उन्हें लक्षणों में आराम देने के लिए इलाज किया जाता है। इसमें बर्फ की सिकाई या गर्दन व सूजे हिस्सों पर गर्म सिकाई, दर्द निवारक दवाएं, विशेष भोजन जो जबड़ों पर ज़्यादा ज़ोर न डाले और नमक के कुनकुने पानी से गरारे करना आदि शामिल है।
बचाव
खुशकिस्मती से, भले ही इसका इलाज न हो लेकिन मम्प्स टीके की सहायता से इस रोग से बचाव संभव है। यह टीका सामान्य रूप से एमएमआर (मीज़ल्स, मम्प्स, रुबेला) इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है और इंडियन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स का सुझाव है कि यह 9 माह के शिशुओं को दिया जाना चाहिए। 15 माह के शिशुओं को फिर एक बूस्टर शॉट देना चाहिए। बड़े बच्चे और वयस्क भी यह शॉट ले सकते हैं अगर शैशव काल में उन्हें यह नहीं दिया गया है। इस टीके के अलावा, इस रोग से बचने के लिए कुछ सावधानियां बरतें जैसे कई बार हाथ अच्छी तरह साबुन से धोना। इस विषाणु से प्रभावित होने पर स्कूल या दफ्तर से छुट्टी लेना। लक्षण दिखने के बाद करीब 5 दिन लगते हैं, इस रोग के संक्रामक न रहने में।
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