हकलाना का कारण समझने में प्रगति


हकलाना का कारण समझने में प्रगति

Photo: Shutterstock

दशकों से इस विषय पर कई महत्वपूर्ण शोधों के बावजूद, बोलने में होने वाली समस्या के अभिजात्य कारणों का स्पष्ट पता नहीं चल सका है। लेकिन अब, बोलने और बीट परसेप्शन के संबंध में हुए अध्ययनों से इस विषय पर नयी रोशनी पड़ रही है। एक अध्ययन में पता चला है कि जो बच्चे बोलने में समस्या के शिकार होते हैं, हो सकता है उन्हें बोलने के अलावा कुछ और परेशानी हो। इस अध्ययन में, बच्चों से ड्रम बीट्स सुनने और उन्हें पहचानने को कहा गया। नतीजे ये मिले कि जो बच्चे हकलाते थे, उन्हें ऐसा करने में मुश्किल हुई।

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटि के मनोविज्ञान के प्रोफेसर डेविन मैक्ऑले का कहना है कि ‘‘प्रारंभिक रूप से हकलाने को स्पीच मोटर की दिक्कत समझा जाता था, लेकिन यह पहला अध्ययन है जिसमें रिदम परसेप्शन विकार का संबंध पता चला है – दूसरे शब्दों में, किसी बीट को सुनने या समझने की योग्यता।’’ इस अध्ययन के सहलेखक मैक्ऑले ने आगे बताया कि ‘‘यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जो बच्चे हकलाते हैं, उनमें बीट परसेप्शन के विकास के प्रति फोकस किया जा सकता है जिससे बोलने में प्रवाह को भी विकसित किया जा सकता है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि 3 से 5 साल के हकलाने वाले 70 से 80 फीसदी बच्चे हकलाना धीरे-धीरे बंद कर देंगे।

लेकिन एक व्यक्ति के बोलने से बीट के संबंध की पहचान की कैसे जाये? शोध दर्शाता है कि बीट को समझने और उसे मेंटेन करने की योग्यता एक महत्वपूर्ण घटक है जो पेसिंग सिग्नल की तरह है। पहले के शोधों में यह देखा गया था कि हकलाने वाले वयस्कों के बोलने में प्रवाह तब विकसित हुआ जब उन्होंने ताल मापक के साथ बोला।

इस अध्ययन में, बच्चों के दो समूहों का परीक्षण किया गया: एक तो हकलाने वाले और एक नियंत्रित जो हकलाते नहीं थे। इनमें से प्रत्येक को रिदमिक ड्रमबीट्स को एक कंप्यूटर खेल के संदर्भ में सुनना और पहचानना था। नतीजों में पता चला कि जो बच्चे हकलाते थे उन्होंने दो रिदम्स की समानता या भिन्नता को लेकर ज़्यादा गलत अनुमान लगाये। यह तब भी सही पाया गया जब बच्चों के आईक्यू और भाषा की योग्यताओं पर भी ध्यान दिया गया।

मैक्ऑले और उनकी शोध टीम अब फंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) के साथ व्यावहारिक डेटा की समीक्षा कर रहे हैं ताकि यह जान सकें कि रिदम परसेप्शन के अभाव के लिए कौन सा मस्तिष्कीय नेटवर्क ज़िम्मेदार हो सकता है।

यह अध्ययन जर्नल ब्रेन एंड लैंग्वेज में प्रकाशित हुआ है।

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