आर्थिक विकास के कारण भारत में लोगेां की आय बढ़ी है लेकिन भारतीय इस पैसे को इस तरह से खर्च करने लगे हैं जो उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं है। यह मामला किसी खास व्यक्ति या समाजार्थिक वर्ग से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि मानव स्वभाव और जागरूकता के अभाव से जुड़ा है। बहुत कम लोग हैं जो शकर और प्रोसेस्ड फैट के मानव शरीर पर होने वाले परिणामों को समझते हैं।
फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानी फिक्की के ताज़ा अनुमानों में देखा गया है कि भारतीय 20 साल पहले की तुलना में अब बहुत कम प्रोटीन का सेवन कर रहे हैं जबकि तेल और फैट का सेवन बहुत बढ़ गया है।
परिणामस्वरूप शहरी गरीब अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने में अक्षम हो रहे हैं।
इस मुद्दे को उठाना क्यों ज़रूरी है, जानिए। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी आईएनएसए के अनुसार, कुपोषण के प्रभावों से जुझने में उससे बचाव की तुलना में 27 गुना ज़्यादा धन खर्च होता है। यह धन टैक्स से अर्जित है जिसका और भी बेहतर इस्तेामल हो सकता है जैसे सड़कें या स्कूल बन सकते हैं। इसका मतलब इन हालात में अगर अर्थव्यवस्था प्रगति करती रहे तो भी दूरगामी स्थिति यही होगी कि भारत पीछे ही रह जाएगा।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक फिक्की का अनुमान है कि शहरी आबादी में अमीर और गरीब के बीच पोषण का गैप बहुत बढ़ गया है। जो बेहतर स्थिति में हैं, वे हर रोज़ 2518 किलो कैलरी का सेवन कर रहे हैं और जो अच्छी स्थिति में नहीं हैं वे रोज़ाना 1679 किलो कैलरी का सेवन कर रहे हैं जो सरकार द्वारा सुझाई जाने वाली 2400 किलो कैलरी की मात्रा से बहुत कम है।
वास्तव में, पिछले दो दशकों के अंतराल में, औसत प्रोटीन के सेवन में 6 से 10 फीसदी की कमी आई है और 80 फीसदी ग्रामीण आबादी और शहरों में रहने वाली 70 फीसदी आबादी सुझायी जाने वाली रोज़ाना कैलरी की मात्रा का सेवन नहीं कर रही है।
रोज़ाना प्रोटीन सेवन
1993-94 | 2011-12 | |
---|---|---|
ग्रामीण | 60.2 ग्राम | 56.5 ग्राम |
शहरी | 57.2 ग्राम | 55.7 ग्राम |
रोज़ाना तेल व फैट सेवन
1993-94 | 2011-12 | |
---|---|---|
ग्रामीण | 31 ग्राम | 42 ग्राम |
शहरी | 42 ग्राम | 52.5 ग्राम |
स्नैक्स और बेवरेजेस का ओवरऑल सेवन
1993-94 | 2011-12 | |
---|---|---|
ग्रामीण | 2% | 7% |
शहरी | 5.6% | 9% |
अंडा, डेरी उत्पाद, फल, सब्ज़ी, मांस और मछली जैसे भोजन का प्रतिशत एक व्यक्ति की डाइट में हालांकि 1993-94 में 9 फीसदी था जो 2011-12 में 9.6 फीसदी हो गया है लेकिन दूसरी ओर, स्नैक फूड जैसे चिप्स, बिस्किट व अन्य और गर्म व ठंडे वेबरेजेस का सेवन बहुत ज़्यादा बढ़ गया है।
यदि आप इस लेख में दी गई सूचना की सराहना करते हैं तो कृप्या फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक और शेयर करें, क्योंकि इससे औरों को भी सूचित करने में मदद मिलेगी ।