बात जब मनोरंजन की हो, तो अपने बच्चे को स्क्रीन देखने से ज़्यादा आउटडोर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। यह मायोपिया से बचाव का की फैक्टर हो सकता है। अनुमान है कि भारत में हर तीन में से एक व्यक्ति मायोपिया का शिकार है और बच्चों में यह समस्या बढ़ रही है।
एम्स के शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में 12 साल की उम्र के आठ बच्चों में से एक को ब्लैकबोर्ड पढ़ने के लिए चश्मा लगता है। इस अध्ययन में दिल्ली के सरकारी और निजी स्कूलों के करीब 10 हज़ार छात्रों की समीक्षा की गई और पाया गया कि 11.6 साल की औसत उम्र के 13.1 फीसदी बच्चे निकट दृष्टि दोष के शिकार हैं।
हालांकि अब तक सूयरज की रोशनी और मायोपिया का संबंध स्थापित नहीं किया जा सका है लेकिन कई ताज़ा अध्ययनों की दलील है कि सूरज की रोशनी इस रोग से बचाव में मदद करती है। शोधकर्ता कहते हैं कि इस रेाग के लिए जीन्स की भूमिका भी हो सकती है। यूरोप औश्र एशिया के 45 हज़ार लोगों पर किये जा रहे एक बड़े अध्ययन में सामने आया है कि दृष्टि से 24 जीन्स का संबंध है जिनमें से 2 इस रोग के कारण से जुड़े हैं। जिन लोगों में ये जीन्स होते हैं उनमें मायोपिया होने की आशंका 10 गुना बढ़ जाती है।
प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे उन बच्चों में मायोपिया के मामले ज़्यादा देखे गये, जिनके अभिभावक या भाई-बहन इस रोग से ग्रस्त हैं या जो उच्च आय वाले परिवारों से संबंधित हैं। यह आनुवांशिकी को नहीं दर्शाता लेकिन कुछ ऐसी गतिविधियों को इंगित करता है जो नेत्र संबंधी समस्या से जुड़ी हैं जैसे टीवी या स्क्रीन गैजेट्स आदि का प्रयोग। शोधकर्ताओं ने पाया कि उन बच्चों में मायोपिया सबसे ज़्यादा पाया गया जो दिन में पांच घंटे से ज़्यादा पढ़ते हैं या टीवी, कंप्यूटर, वीडियो व मोबाइल गेम्स आदि पर रोज़ दो घंटे से ज़्यादा समय बिताते हैं। यह भी पाया गया कि सामान्य दृष्टि वाले बच्चों में 47.4 फीसदी की तुलना में, मायोपिया ग्रस्त बच्चों में से सिर्फ 5 फीसदी बच्चे ही रोज़ाना दो घंटे से ज़्यादा समय आउटडोर गतिविधियों में बिताते हैं।
बैंगलोर के नेत्रधाम अस्पताल के चिकित्सा निर्देशक डॉ. श्री गणेश का कहना है कि ‘‘जीन्स और परिवेश के संबंध को मायोपिया के कारणों में माना जाता है। बचपन में परिवेश में मिलने वाली रोशनी का प्रभाव आईबॉल के विकास पर होता है, कम रोशनी के वातावरण और ज़्यादा समय इनडोर रहने के कारण यह समस्या बढ़ती है।’’
तो हो सकता है कि बच्चे में मायोपिया के खतरे को पूरी तरह टाला नहीं जा सकता लेकिन कुछ सावधानियों से इससे काफी हद तक या लंबे समय तक बचा जा सकता है। प्राकृतिक रोशनी में बच्चे को ज़्यादा समय बिताने दें। इसके स्वास्थ्य संबंधी और भी फायदे हैं जो स्क्रीन के सामने बैठकर मनोरंजन करने से नहीं मिलते। अगर आपका बच्चा पढ़ने में दिलचस्पी रखता है तो सुनिश्चित करें कि वह ज़्यादा रोशनी में पढ़े और बैठकर पढ़े। कम रोशनी या गलत मुद्राओं में पढ़ने के कारण आंखों में खिंचाव हो सकता है। नेत्र चिकित्सक यह सलाह भी देते हैं कि आंखों और किताब या स्क्रीन के बीच करीब 1 फट का फासला होना चाहिए। अपने बच्चे को यह बताएं और उसमें इन सावधानियों के प्रति समझ पैदा करने में सहयोग करें।
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