निराशाजनक है, भारत के पास नहीं है पोषण का ब्यौरा


Photo: Donna Todd | Calcutta Rescue | Flickr

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एक तरफ भारत के सामने कुपोषण की समस्या चुनौती बनी हुई हैए दूसरी तरफ लगता है कि भारत सरकार को इस बारे में जानने तके की दिलचस्पी नहीं है। जबकि भारत में अर्थव्यवस्था, जीवन शैली और भोजन की आदतों को लेकर बड़े बदलाव हुए हैं, ऐसे में सरकार ने पिछले एक दशक में पोषण संबंधी सर्वे तक नहीं करवाया है। स्वास्थ्य और पोषण पर आधारित कई दूसरे सावधिक पत्र और सरकारी अध्ययन भी समय से नहीं हो पा रहे हैं। पोषण संबंधी डेटा के अभाव के कारण नीति निर्माण पर नकारात्मक असर पड़ सकता है और इसका क्रियान्वयन भी लचर हो सकता है।

उदाहरण के तौर पर, शहरी क्षेत्रों में रहने वाले और ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को उपलब्ध पोषण क्वालिटि में भारी अंतर है। इसका अर्थ है कि कुपोषण से निपटने के लिए ज़िला स्तर पर डेटा की ज़रूरत है। राज्य स्तर पर बना डेटा यह नहीं दर्शाता कि राज्य में किस क्षेत्र पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके बावजूद ज़िला स्तर पर 13 साल पहले 2002 में पोषण सर्वे किया गया था। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के अध्यक्ष प्रणब सेन के अनुसार नीति निर्माताओं के पास पर्याप्त डेटा है ही नहीं।

पोषण संबंधी नवीनतम डेटा के भाव में मैदानी स्तर पर होने वाले क्रियान्वयन पर भी असर पड़ेगा। इंटिग्रटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज़ (आईसीडीएस) एक सरकारी वेलफेयर कार्यक्रम है जो माताओं व बच्चों के कुपोषण से निपटने के लिए करीब 200 वंचित ज़िलों में संचालित होता है। हर ज़िले में एक पीआईपी यानी प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन प्लान का गठन होता है, लेकिन नये डेटा के अभाव में आईसीडीएस कर्मचारी 13 साल पुराने डेटा के हिसाब से काम कर रहे हैं।

ऐसे में नये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) की खासी ज़रूरत है। पहला एनएफएचएस 1992-93 में किया गया था। इसके बाद 1998-99 में और फिर 2005-06 में यह सर्वे किया गया। एनएफएचएस-4 के लिए फील्ड वर्क जारी है लेकिन ज़िला स्तर से डेटा 2016 से पहले मिलने की उम्मीद नहीं है।

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार यूनिसेफ और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2013 में तैयार किये गये रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रन का ब्यौरा स्वास्थ्य मंत्रालय को करीब 6 महीने पहले समीक्षा के लिए भेजा जा चुका है लेकिन अब तक वहां से कोई औपचारिकता नहीं हुई है।

यूनिसेफ पिछले 20 साल से दुनिया भर में सरकारों के साथ मिलकर महिला और बच्चों के लिए नीति बनाने में मदद के लिए डेटा जुटाती है। यह संस्था करीब 100 देशों में मल्टिपल इंडिकेटर क्लस्टर सर्वेज़ (एमआईसीएस) संचालित करती है जिससे भारत को बड़ा लाभ हो सकता है। हालांकि दो राउंड पूरे करने के बाद वर्ष 2000 में सरकार ने इस संस्था के साथ मिलकर काम न करने का फैसला किया था। लेकिन, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल जैसे पड़ोसी देश, जिनकी विकास दर भारत से कम है, एमआईसीएस की मदद से अपने देश के लिए सर्वे के दो राउंड करवाकर पोषण डेटा जुटा चुके हैं।

भारत में कुपोषण का मुद्दा तुरंत पूरा निदान चाहता है। भारत में करीब 40 फीसदी या शायद उससे भी ज़्यादा बच्चे कुपोषण के शिकार हैं जो कि वैश्विक स्वास्थ्य के लक्ष्य की दिशा में बड़ी बाधा है। अधिक डेटा की मदद से बेहतर नीतियां और क्रियान्वयन संभव हो सकता है।

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