लॉस एंजिलिस के चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल द्वारा किये गये नये अध्ययन के अनुसार गर्भवती महिलाएं अगर दूषित हवा में रहती हैं तो उनके अजन्मे शिशु में मस्तिष्क संबंधी असामान्यताएं हो सकती हैं।
कन्वर्ज़ेशन के एक लेख में इस शोध के हवाले से कहा गया है कि गर्भवती मांओं में पीएएच वायु प्रदूषण की मात्रा मापी गयी और फिर ब्रेन परीक्षण कर समझा गया कि इसका उनके शिशु के मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है।
पॉलीसाइक्लिक एरॉमैटिक हाइड्रोकार्बन्स यानी पीएएच वे प्रदूषित तत्व जो जैविक पदार्थों के पूरी तरह से न जलने के कारण बनते हैं। ये कई स्रोतों से बन सकते हैं जैसे कोयला जलाने, अपशिष्ट पदार्थों या वाहनों के धुएं आदि से। तंबाकू के धुएं और स्टोव आदि के जलने से भी ये बनते हैं।
इस विषय पर पहली बार रिसर्च 1990 के दशक में हुई थी, जहां न्यूयॉर्क शहर के अल्पसंख्यक समुदायों की तीसरी तिमाही में गर्भवती 600 महिलाओं को केंद्र में रखा गया था। प्रदूषण से उनका एक्सपोज़र नियत किया गया और उनके 3 से 7 साल के बच्चों का आंकलन किया गया।
रिसर्च में खुलासा हुआ कि ज़्यादा एक्सपोज़र अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटि डिसॉर्डर (एडीएचडी) और अन्य समस्याओं जैसे कम आईक्यू, चिंता और कुंठा आदि के लक्षणों से संबंधित था।
लेख में कहा गया है कि उन 40 बच्चों के ताज़ा ब्रेन स्कैन के नतीजे दर्शाते हैं कि यूट्रो में पीएएच का एक्सपोज़र प्रमाणित है और मस्तिष्क में श्वेत पदार्थ में कमी है। यह श्वेत पदार्थ करोड़ों कोशिकाओं में होता है जो मस्तिष्क के विभिन्न अंगों के बीच तेज़ी से संबंध बनाने में सहायक होता है।
इंटेलिजेंस परीक्षण के दौरान रिसर्च में पता चला कि इस तरह की मस्तिष्क असामान्यताओं के कारण प्रतिक्रिया का समय बढ़ जाता है और एडीएचडी लक्षण गंभीर होने के साथ ही व्यवहार संबंधी डिसॉर्डर भी होते हैं।
आजकल स्वास्थ्य और प्रदूषण के संबंध को जानने के लिए अनेक शोध हो रहे हैं जो प्रदूषण के प्रभाव के कारण ऑटिज़्म, सीज़ोफ्रेनिया जैसे रोग होना बता रहे हैं। पशुओं पर किये जा रहे अध्ययनों में भी यही नतीजे मिल रहे हैं कि वायु प्रदूषण मस्तिष्क विकास को बाधित करता है।
हालांकि इस ताज़ा अध्ययन में कुछ कमियां रह गई हैं जैसे इसके प्रयोगों का क्षेत्र सीमित था और इसमें अल्प आय वाले भौगोलिक क्षेत्र का चयन किया गया। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए था कि सभी शहरों में प्रदूषण तेज़ी से बढ़ रहा है।
अंततः यह अध्ययन निष्कर्ष निकलता है कि गर्भधारण के समय पीएएच के संपर्क में आने वाली महिलाओं के शिशुओं में मस्तिष्क संबंधी कमियां पायी जा सकती हैं। तो, ज़्यादा प्रदूषित जगह पर रहना बच्चे के दिमागी विकास के लिए खतरा बन सकता है, तब भी, जब वह जन्मा भी नहीं है।
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