मज़ाक के ज़रिये आपके बच्चे जीवन के अहम सबक सीख सकते हैं। यूनिवर्सिटि ऑफ शेफफील्ड में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि 16 महीने तक के बच्चे भी हास्य या मज़ाकिया व्यवहार समझ सकते हैं। विकासमूलक मनोविज्ञान के सोसायटीज़ ब्रिटिश जर्नल में छपे शोध के अनुसार अभिभावकों द्वारा चुटकुला सुनाये जाने पर छोटे बच्चे भी समझ सकते हैं।
हास्य के समय में अभिभावक एक खास किस्म की आवाज़ निकालते हैं। छोटे बच्चे जब हंसी के साथ यह सुनते हैं तो समझ जाते हैं कि वे कोई हास्यपूर्ण बात सुन रहे हैं। इसके साथ ही बच्चे दूसरी दक्षताएं जैसे अमूर्त विचार, कल्पनाशीलता और बंधन को भी समझ पाते हैं। एक आलेख के अनुसार शेफफील्ड यूनिवर्सिटि ने दो अध्ययन किये। पहले में, अभिभावकों से कहा गया कि वे अपने 16 से 20 माह के बच्चे को मुद्राओं के साथ कोई चुटकुला सुनाने का अभिनय करें। इन मज़ाकों में चीज़ों को उल्टा-सीध रखना, जैसे कोई खाने की चीज़ सिर पर रखना या बिना पानी के हाथ धोने का अभिनय करना शामिल था।
दूसरे अध्ययन में, अभिभावकों से कहा गया कि अपने 20 से 24 माह के बचचें को वाचिक उतार-चढ़ाव के साथ कोई चुटकुला सुनाएं। कॉग्निटिव साइंस में प्रकाशित शोध में पाया गया कि अभ्एिभावक बच्चों को हास्य या मज़ाक के भेद स्पष्ट रूप से समझाने के लिए अलग संकेत गढ़ लेते हैं।
दोनों ही अध्ययनों में अभिभावकों ने वाचिक क्षमताओं और अपने एक्शन के द्वारा काफी संकेत स्पष्ट किये। 16 माह का बच्चा भी इन संकेतों के प्रति सतर्क देखा गया। बच्चों ने इन एक्शन के प्रति कम विश्वास ज़ाहिर किया। बोले गये शब्दों के प्रति थोड़े बड़े बच्चों ने कम विश्वास जाताया।
मनोविज्ञान विभाग की एलेना हॉइका ने कहा “अध्ययन दर्शाता है कि बच्चों के विकास में खेल का कितना महत्व है। बच्चे मज़ाक के दौरान मिलने वाले संकेतों को समझकर उन संकेतों के प्रति एक ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।“
उन्होंने कहा “अध्ययन में वह प्रक्रिया ज़ाहिर हुई है जिससे बच्चे मज़ाक और संकेतों को समझते हैं। तो मज़ाक महत्वपूर्ण है रिश्ते बनाने में, अलग सोचने में और जीवन का मज़ा लेने में। इससे बच्चों को नई चीज़ें सीखने और नई सूचनाएं एकत्र करने में मदद मिलती है।“
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