आमतौर पर माता पिता सभी तरह की अपनी विशेषताओं को अपने बच्चों में पाने का प्रयास करते हैं । अपने बालों तथा आंखों का रंग और ट्रेजिक फिल्मों के प्रति रूचि अथवा चॉकलेट आईसक्रीम जैसी रूचियां भी इसमें शामिल होती हैं । अपने बच्चों को माता पिता अपने व्यक्तित्व में से यदि कुछ देना नहीं चाहते हैं तो वह है अपने स्कूली जीवन के दौरान किसी विषय के प्रति अपनी अरूचि ।
यदि आप भाग, फ्रेक्शन, जोड़ तथा गुणा जैसे शब्दों से भय खाते हैं तथा आम चर्चा के दौरान गणित शब्द के जिक्र से ही यदि आपको कंपकंपी होने लगती है तो आपको “मैथ एनक्जिटी” (गणित के प्रति भय) की समस्या हो सकती है । और अब एक नए अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है कि गणित के प्रति आपका यह भय आपके बच्चों में भी घर कर सकता है ।
एसोसिएशन फॉर साइकोलोजिक्ल साईंस (Association for Psychological Science) के जरनल साइकोलोजिक्ल साईंस में प्रकाशित एक अनुसंधान के अनुसार यह ज्ञात हुआ है कि जिन बच्चों में गणित के प्रति मन में भय समाया होता है उनके माता पिता भी अपने स्कूली समय में गणित के प्रति भय से पीडि़त रहे होते हैं । इस अनुसंधान से यह भी ज्ञात हुआ है कि ऐसे बच्चे अपने स्कूल काल के दौरान गणित में कमजोर होते हैं ।
यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के साइकोलोजिक्ल वैज्ञानिक सियॉन बैलॉक तथा सुसन लेविन (University of Chicago psychological scientists Sian Beilock and Susan Levine) द्वारा किया गया है । यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पोस्टडॉक्टरल स्कॉलर एरिन ए मैलोने (Erin A. Maloney, a postdoctoral scholar in psychology at UChicago) के साथ गरेराडो रामिरेज एवं एलिजाबेथ ए गंडरसन (Gerardo Ramirez and Elizabeth A. Gunderson) इस अनुसंधान के प्रमुख लेखक रहे है । अनुसंधानकर्ताओं के इस समूह द्वारा पहले इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया था कि जब अध्यापकों को स्वयं गणित के प्रति भय होता है तो उनके विद्यार्थी भी अपने स्कूल काल के दौरान गणित में कमजोर रह जाते हैं ।
नवीनतम खोजों के परिणाम से यह पता चला है कि माता पिता में गणित के प्रति व्याप्त भय का प्रभाव उनके बच्चों पर भी पड़ता है । उन्होंने यह सुझाव दिया है कि जिस प्रकार वयस्क गणित के प्रभाव में रहते हैं उसी तरह बच्चों में भी गणित के प्रति होने वाले प्रभाव अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं ।
साइकोलोजी के प्रोफेसर बेइलॉक (Beiloc) का यह कहना है कि “हमारा अक्सर इस ओर ध्यान जाता है कि माता पिता की अपनी उपलब्धियां बच्चों की शैक्षिक उपलब्धियों को भी प्रभावित करती हैं । परन्तु हमारी क्रियाओं से यह संकेत प्राप्त होते हैं कि यदि माता पिता अक्सर यह कहते रहें कि “उन्हें गणित से भय लगता है” अथवा “मैं इससे नर्वस हो उठता हूं” तो बच्चे इस संदेश को बरबस पकड़ लेते हैं और इससे उनकी अपनी सफलता प्रभावित होने लगती है” ।
रेबेका एनी बॉयलन में शिक्षा तथा सोसायटी मनौविज्ञान की प्रोफेसर एंड लेविन (Levine, the Rebecca Anne Boylan Professor of Education and Society in Psychology) ने इसे इस प्रकार स्पष्ट किया है जिसके अर्थ कुछ इस प्रकार निकलते हैं । उन्होंने यह कहा है कि “गणित के प्रति भय से पीडि़त माता पिता अपने बच्चों को गणित का ज्ञान दे पाने में कम समर्थ होते हैं तथा वे ऐसी स्थिति में कुछ नहीं कर पाते जब उनका बच्चा किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं करता है अथवा गलतियां करता है अथवा किसी समस्या का समाधान किसी अनूठे ढंग से करता है ” ।
प्रथम तथा द्वितीय ग्रेड के 438 विद्यार्थियों तथा उन्हें सहायता प्रदान करने वालों को एक अध्ययन में शामिल किया गया था तथा दूसरे वर्ष के प्रारम्भ होने से पूर्व तथा बाद में गणित से संबंधित उनकी उपलब्धियों एवं भय के आधार पर बच्चों का मूल्यांकन किया गया । वैज्ञानिक पद्धति से किसी प्रकार के नियंत्रण की तुलना करने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने बच्चों की पढाई संबंधी उनकी उपलब्धियों की ओर ध्यान दिया जो एक प्रकार से विश्वसनीय प्रतीत नहीं हुईं क्योंकि ऐसी उपलब्धियां उनके माता पिता के गणित संबंधित भय से जुडी हुई नहीं थीं ।
अनुसंधानकर्ताओं का यह कहना है कि “यद्यपि गणित के प्रति व्याप्त भय में आनुवंशिकता का भाव है” परन्तु उनका आगे यह भी कहना है कि “माता पिता में व्याप्त गणित के प्रति भय की नकारात्मकता से बच्चे केवल तभी प्रभावित होते हैं जब वे गणित के गृह कार्य में निरंतर उनकी सहायता करते हैं । इस संबंध में ध्यान देने योग्य यह बात है कि ऐसे माता पता को अपने मन में पहले गणित के भय को कम करना होगा तथा अपने कौशल को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए तत्पश्चात ही उन्हें बच्चों के गृह कार्य में सहायता देनी चाहिए ” ।
अनुसंधानकर्ताओं ने माता पिता को सिखाने के लिए ऐसे उपकरणों का निर्माण करंए का भी प्रस्तावित दिया है ताकि वे गणित की समस्याओं के लिए अपने बच्चों की सहायता कर सकें । उन उपकरणों में गणित की पुस्तकें, बोर्ड गेम्स तथा कम्पयूटर गेम्स, कम्पयूटर कार्यक्रम तथा एप्स तक शामिल किए जा सकते हैं ।
अपने बच्चों के साथ साथ आप भी पढ़े तभी आपको भी यह लगने लगेगा कि गणित कोई इतना भयावह विषय नहीं है । स्वयं को एक उदाहरण के रूप प्रस्तुत करते हुए बच्चों को यह ज्ञात होने दें कि आखिर उनमें परिवर्तन तथा सुधार तथा अपने रवैये में बदलाव लाने की संभावनाएं कितनी प्रबल हैं ।
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