टेनिस में करियर बनाने की कीमत


The cost of a career in tennis

Photo: ImagesBazaar

क्या गेंद छूटने के बाद आप अपने बच्चे के माथे पर शिकन देखते हैं? आप विश्वास कर सकते हैं कि अगला फेडरर आपका बच्चा है? अगर ऐसा है तो टेनिस में करियर के लिए आपको अपने बच्चे का सहयोग करना चाहिए। हो सकता है कि आपका बच्चा स्टार खिलाड़ी बने, खेलने के लिए दुनिया घूमे और ढेर सारा पैसा कमाए। लेकिन, ध्यान रखें कि इसके लिए आपको भारी निवेश करना पड़ेगा।

आंकड़े लुभावने दिखते हैं। नोवक जोकोविक ने विंबलडन में फेडरर को हराकर करीब 18.8 करोड़ रुपये कमाए। लेकिन डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, टेनिस के सपने को जीने में खर्च बहुत होता है। भारतीय खिलाड़ियों को हर साल कोचिंग और यात्रा के लिए 50 लाख रुपये खर्च करने होते हैं। और अगर आपका बच्चा टॉप सीडेड खिलाड़ी नहीं बन पाता है तो इस निवेश की वापसी की उम्मीद भी आप नहीं कर सकते।

वर्तमान समय में, प्रोफेशनल खिलाड़ी सिर्फ प्रतिभा के बल पर कामयाब नहीं हो सकते। आपके बच्चे को दूसरे गुण सीखते रहने की भी ज़रूरत होगी जैसे शारीरिक शक्ति, फुर्ती और सहनशीलता। साथ ही, उसे मानसिक रूप से अनुशासन सीखने की भी ज़रूरत होगी। कोर्ट में पर्याप्त अभ्यास के साथ ही उसे अपने स्कूल को भी समय देना होगा। एक टेनिस तैयारी संबंधी साइट के अनुसार 8-14 साल के बच्चों को रोज़ाना ढाई से पांच घंटे शारीरिक मेहनत करना होती है। 12 साल की उम्र के बाद उन्हें मानसिक तैयारी भी करना होती है। प्रशिक्षण के अलावा हर हफ्ते उन्हें मैच खेलना होते हैं। जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है बच्चों के लिए प्रशिक्षण का समय भी बढ़ता जाता है।

भारत के किसी प्रोफेशल टेनिस खिलाड़ी को दुनिया भर में टूर्नामेंट खेलने के लिए हर साल करीब 30 लाख रुपये खर्च करना होते हैं। टॉप 150 में शामिल खिलाड़ी या फिर वह खिलाड़ी जो साल में होने वाले करीब 30 मैचों में से दो से ज़्यादा जीते तो वह उम्मीद कर सकता है कि उसके निवेश की गई राशि का आधा उसे पुरस्कार रूप में मिल सकता है। खिलाड़ियों को प्रोफेशल प्रशिक्षण के लिए कई बार विदेशों में जाने के लिए भी खर्च करना होता है। यूरोप में ट्रेनिंग के लिए यह राशि हर साल करीब 25 लाख रुपये तक होती है। कुल मिलाकर, 50 लाख रुपये हर साल का खर्च आता है।

जैसे ही एक खिलाड़ी की रैंक में उछाल आता है, वैसे ही कमाई बढ़ती है लेकिन साथ ही खर्च भी। भारतीय टेनिस स्टार लिएंडर पेस को भी इसी तरह के आर्थिक मसलों से सामना करना पड़ा। उनके पिता वेस पेस का कहना है ‘‘ऐसा भी समय था जब मैं रातों को परेशान होकर नींद से जाग जाता था कि इतना पैसा कहां से आएगा। जैसे ही लिएंडर ने प्रति की, हमें कोचिंग के लिए हर हफ्ते करीब 3,60,000 रुपये से 4,20,000 रुपये तक खर्च करना होते थे, उस पर रहने और खाने आदि का खर्च अलग से।’’

लिएंडर को उसके सपने को जीने के लिए उनके पिता ने अपने साथियों से पांच साल के लिए रकम उधार ली। उन्होंने अपने बेटे को एक साल तक उधार में ट्रेनिंग देने के लिए एक विदेशी कोच से गुज़ारिश भी की।

1990 में, जब लिएंडर ने भारती डेविस कप के दल में 16 साल की उम्र में प्रवेश किया, तब वेस कहते हैं कि स्थितियां कुछ अनुकूल दिखीं। वेस ने कहा ‘‘जब आप डेविस कप टीम के नियमित सदस्य बनते हैं तब प्रायोजक सामने आने लगते हैं। प्रचार व विज्ञापन मिलने लगते हैं तब आपका वित्तीय संकट सुलझने लगता है।’’

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