क्या असामाजिक या आपराधिक प्रवृत्तियों पर जीववैज्ञानिक हस्तक्षेप का कोई असर हो सकता है? ‘न्यूरोक्रिमिनोलॉजी’ नामक हिस्से पर किये गये एक ताज़ा अध्ययन में पता चला है कि कुछ खास किस्म के भोजन व्यवहार संबंधी नकारात्मक प्रवृत्तियों का उन्मूलन कर सकते हैं।
पैनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटि के एड्रियन रैने पर्यावरण और बायोलॉजी से असामाजिकता और अपराध का संबंध ज्ञात करने के लिए अध्ययन करते रहे हैं। उनके शोध के मुताबिक, इस बात के शारीरिकी संबंधी प्रमाण मिले हैं कि मस्तिष्क के वे हिस्से जो भावों को नियंत्रित करते हैं, उनमें अवरोध आने पर हिंसक प्रवृत्तियां, इंपल्सिव निर्णय या अन्य नकारात्मक व्यवहार सामने आ सकते हैं।
उनके नये अध्ययन में उल्लेख है कि सामान्यतया मछली के तेल में पाया जाने वाला फैटी एसिड, ओमेगा-3, स्नायु तंत्र के विकास को प्रभावित करता है और इससे बच्चों में असामाजिक और आक्रामक व्यवहार संबंधी समस्याओं में मदद हो सकती है।
इस शोध में 8 से 16 साल की उम्र के बच्चों को ओमेगा-3 सप्लीमेंट पेय के तौर पर देकर रैंडम तरीके से नियंत्रित परीक्षण किये गये। करीब सौ बच्चों को छह महीने तक रोज़ एक जूस पीने को दिया गया जिसमें एक ग्राम ओमेगा-3 था और दूसरे सौ बच्चों को वही ड्रिंक दिया गया लेकिन उसमें ओमेगा-3 नहीं था। प्रयोग की शुरुआत में ही इन सभी बच्चों और उनके अभिभावकों से व्यक्तित्व आकलन संबंधी एक प्रश्नावली के उत्तर लिये गये।
छह महीने बाद, शोधकर्ताओं ने सभी बच्चों के रक्त की जांच की और देखा कि दोनों समूहों के बच्चों के रक्त में ओमगा-3 का स्तर क्रूा है। फिर सभी बच्चों और अभिभावकों को व्यक्तित्व आकलन के लिए कहा गया। यह आकलन दोबारा छह महीने बाद भी किया गया ताकि सप्लीमेंट का असर पता चल सके।
अभिभावकों से उनके बच्चों के बाहरी आक्रामक रवैये और असामाजिक व्यवहार के बारे में पूछा गया। इसमें झगड़ना और झूठ बोलना भी शामिल था। अभिभावकों को अपने बच्चों को आंतरिक व्यवहार यानी तनाव, चिंता और हार मान लेने आदि को भी रेट करने को कहा गया। बच्चों को भी अपने ही ऐसे व्यवहार को रेट करने को कहा गया।
इस शोध में पता चला कि बच्चों द्वारा दी गई रिपोर्ट में दोनों समूहों में कोई फर्क नहीं था। जबकि, अभिभावकों की रिपोर्ट से पता चला कि औसतन, दोनों समूहों में छह माह के समय के असामाजिक और आक्रामक व्यवहार में कमी आई। लेकिन अगले छह महीने बाद महत्वपूर्ण नतीजा मिला कि जिन बच्चों को ओमेगा-3 दियाग या था उनके व्यवहार में नकारात्मकता की कमी बनी रही जबकि जिन्हें सप्लीमेंट नहीं दियाग गया था, वे फिर उसी व्यवहार पर लौट आये।
रैने ने कहा कि ‘‘छह महीने बाद दोनों समूहों के बच्चों में सुधार देखा गया, यह प्लेसबो इफेक्ट के कारण था। लेकिन दिलचस्प यह था जो 12 महीने बाद हुआ। ओमेगा-3 समूह के बच्चों में सुधार बरकरार रहा। अंततः हमने देखा कि बाहरी व्यवहार संबंधी आंकड़ों में 42 फीसदी और आंतरिक व्यवहार संबंधी आंकड़ों में 62 फीसदी कमी आई।’’
अभिभावकों ने छह और 12 महीने बाद अपने खुद के व्यवहार के बारे में भी उत्तर दिये। उनके व्यवहार में भी असामाजिकता और आक्रामकता को लेकर सुधार देखा गया। इसका कारण यह हो सकता है कि शायद उन्होंने बच्चों को दिये सप्लीमेंट का कुछ हिस्सा ग्रहण किया या फिर अपने बच्चों के सुधार के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
हालांकि यह शोध प्रारंभिक है लेकिन इससे स्पष्ट हुआ है कि ओमेगा-3 के प्रभाव को समझने के लिए आगे भी शोध की ज़रूरत है।
पैन स्कूल ऑफ नर्सिंग में प्रोफेसर जिआंगहॉंग ल्यू ने कहा कि ‘‘बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं से बचाव के उपाय के रूप में पोषण एक महत्वपूर्ण विकल्प है जो तुलनात्मक रूप से सस्ता भी है और प्रबंधन भी आसान है।’’
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