दुनिया भर में, पिछले कुछ सौ सालों के आंकड़ों से पता चलता है कि लिंग अनुपात में जन्म दर पुरुषों के पक्ष में रही है। क्योंकि महिलाओं की तुलना में पुरुषों की मृत्यु दर अधिक होती है इसलिए यह प्राकृतिक संतुलन माना जाता है। लेकिन अंततः हो यह रहा है कि लैंगिक अंतर बढ़ता जा रहा है। यूएस में प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से प्रति 100 लड़कियों पर 105 लड़के रहे हैं। वर्ल्ड बैंक का 2011 का डेटा दर्शाता है कि जन्म के लिहाज़ से हर 100 लड़कियों के अनुपात में 107 लड़के जन्मे।
इस अंतर के बढ़ने का मुख्य कारण चीन को समझा जा सकता है जहां हर 100 लड़कियों पर 118 लड़कों का जन्म होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि और कहीं इस तरह का लैंगिक अनुपात नहीं पाया जाता। एशिया और कॉकेसस के कई देशों में पुल्लिंग शिशुओं की संख्या औसत से ज़्यादा है लेकिन चीन चूंकि सबसे बड़ा घटक है क्योंकि यहां दुनिया भर की आबादी का 12 फीसदी जन्म होता है।
वर्ल्ड बैंक के डेटा के अनुसार, अज़रबैजान, आर्मेनिया, जॉर्जिया, दक्षिण कोरिया और सोलोमन द्वीप समूह में इसके बाद लिंग अनुपात में सबसे ज़्यादा अंतर है। भारत का नंबर सातवां है जहां हर सौ लड़कियों पर 108 लड़के हैं। इसी स्था पर मैसेडोनिया, मॉंटेनेग्रो, पपुआ न्यू गुइनिया, समोआ, सर्बिया और सूरीनाम भी हैं।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में लिंग अनुपात को प्रति पुरुष/प्रति स्त्री या प्रति पुरुष/प्रति स्त्री गुणा सौ के हिसाब से दर्शाया गया वहीं भारत सरकार ने ये आंकड़े प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या की प्रणाली से दर्शाये। वर्ल्ड बैंक के लिंग अनुपात आंकड़ों के हिसाब से भारत में 100 महिलाओं पर 108 पुरुष हैं जबकि भारतीय प्रणाली के हिसाब से प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 926 है। भारत सरकार के आंकड़ै साफ तस्वीर पेश नहीं करते। हिंदुस्तान टाइम्स में 2013 में प्रकाशित एक लेख में एक अनाम सरकार रिपोर्ट के हवाले से कहा गया था कि 2009 में लिंग अनुपात घटा घटकर 893 रह गया है। अंतरराष्ट्रीय गणना प्रणाली के हिसाब से 100 महिलाओं पर 112 पुरुष।
ऐसा नहीं है कि इस मामले में हर जगह लड़कियां पीछे हैं। जबकि लड़कों की संख्या कई जगह ज़्यादा है, कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां लिंग अनुपात का संतुलन काफी अच्छा है। सब-सहारा अफ्रीका के कुछे देशों में लिंग अनुपात ठीक है जैसे रुआंडा, सिएरा लिओन, टोगो, ज़िम्बाब्वे, आइवरी कोस्ट और मेडागास्कर।
इस अनुपात के अंतर का एक प्रमुख कारण लिंग के आधार पर गर्भपात को माना जाता है। एशिया में लड़के के जन्म को प्राथमिकता दिये जाने का स्पष्ट उल्लेख हो चुका है इसलिए इसे यहां के देशों में लड़कों के ज़्यादा जन्म का
एक प्रमुख कारण माना जाता है।
इसके अलावा कुछ बायोलॉजिकल घटक भी सेक्स रेशो को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, शोध के अनुसार ज़्यादा उम्र के अभिभावक लड़के को जन्म देने में कम सक्षम होते हैं। इसलिए सब-सहारा अफ्रीका में लड़कियों का जन्म ज़्यादा होता है। इसी कारण वहां बहु पत्नी का रिवाज भी प्रचलित है। दोनों ही मामलों में आलिंगन की कम आवृत्ति का घटक सामने आता है। अध्ययन यह भी दर्शाता है कि युद्ध के दौरान व उसके बाद लड़कों का जन्म यादा होता है। इसका कारण भी आलिंगन की आवृत्ति को माना जा सकता है।
लेकिन दूसरे मामलों में, वॉरटाइम को फीमेल शिशुओं की संख्या बढ़ने से संबंधित माना जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में, इसका कारण मातृत्व तनाव को माना जाता है जिसके कारण गर्भपात का खतरा बढ़ता है और समझा जाता है कि मेल भ्रूण अधिकतर गर्भपात के शिकार होते हैं।
यदि आप इस लेख में दी गई सूचना की सराहना करते हैं तो कृप्या फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक और शेयर करें, क्योंकि इससे औरों को भी सूचित करने में मदद मिलेगी ।