क्यूबेक, कनाडा के 1940 बच्चों के समूह के स्लीप डेटा के विश्लेषण पर यह अध्ययन आधारित है। यह डेटा नींद सबंधी डर और नींद में चलने से संबंधित था जो सवालों के ज़रिये हासिल किया गया और अभिभावकों से भी उनकी स्लीप वॉकिंग आदतों के बारे में पूदा गया।
नींद में चलने और नींद संबंधी डर बच्चों में सामान्य रूप से देखे जाते हैं जो उनकी बढ़ती उम्र में विकास को प्रभावित करते हैं।
जेएएमए पेडियाट्रिक्स जॉर्नल में ऑनलाइन प्रकाशित इस अध्ययन में पाया गया कि विश्लेषित किये गये बच्चों में 60 फीसदी से ज़्यादा बच्चे इस समस्या के शिकार इसलिए थे क्योंकि उनके अभिभावकों में यह समस्या थी। इसका मतलब है कि अगर दोनों अभिभावकों में यह समस्या रही है तो उनके बच्चे में इस समस्या की आशंका 7 गुना तक बढ़ जाती है।
दूसरी ओर अगर अभिभावकों में से किसी एक को नींद में चलने की बीमारी रही है तो उनके बच्चों में, उन बच्चों की तुलना में जिनके अभिभावकों को यह बीमारी नहीं थी, इस बीमारी की आशंका तीन गुना ज़्यादा होती है।
कनाडा के एक एक अस्पताल के अधिकारी जैक्स मॉंटप्लेसिर ने कहा कि “नींद में चलने की बीमारी और किसी हद तक नींद से जुड़े अन्य डर का कारण आनुवांशिकी होना पाया गया है।”
नींद से जुड़े डरों जैसे कि नींद में चीखना, डरना, और लंबे समय तक होने वाले बेचैनी आदि के मामले में शोधकर्ताओं ने पाया कि बच्चों में यह समस्या डेढ़ से 13 साल की उम्र तक कुल मिलाकर 56.2 फीसदी पाई जाती है। यह समस्या डेढ़ साल की अवस्था में 34.4 फीसदी और 13 साल की उम्र में 5.3 फीसदी बच्चों में देखी गई।
मॉंटप्लेसिर ने बताया “कच्ची नींद या गहरी नींद के दौरान जीन्स में पॉलिमॉर्फिज़्म के कारण यह प्रभाव संभावित है।”
यदि आप इस लेख में दी गई सूचना की सराहना करते हैं तो कृप्या फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक और शेयर करें, क्योंकि इससे औरों को भी सूचित करने में मदद मिलेगी ।