बच्चों को शुरुआती उम्र में ही दांतों के स्वास्थ्य के बारे में समझाना औश्र यह सिखाना कि दांतों की देखभाल कैसे की जाती है, उनके भविष्य के लिए सर्वोत्तम सबकों में से एक है। अगर जीवन की शुरुआत में ही दांतों से संबंधित अच्छी आदतें डाल दी जाएं तो बच्चे जीवन भर उनका पालन करते हैं। लेकिन किस उम्र में बच्चों को टूथब्रश करना शुरू करवाएं? और किस उम्र में उन्हें पहली बार डेंटिसट के पास ले जाएं? विशेषज्ञों के सुझावों पर आधारित बच्चों के दांतों की देखभाल से जुड़े आपके सवालों के जवाब यहां हैं।
ब्रश और फ्लॉस
शैशव के दौरान जब बच्चे के शुरुआती दांत निकलना शुरू होते हैं, तब उन्हें मुलायम भीग कपड़े से हल्के से साफ करें। यह बचे हुए भोजन की सफज्ञई का तरीका है औश्र उन्हें तैयार करने का कि किस तरह बड़े होकर उन्हें दांतों की सफाई करना है। 2 साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट न दें जो कि कई टूथ्ज्ञपेस्ट में होता ही है, अगर कसी डेंटिस्ट या डॉक्टर ने सुझाव नहीं दिया है तो। फ्लोराइड संबंधी बिंदु को नीचे देखें बच्चे जब शैशव से निकलकर बड़ी अवस्था में पहुंचें तो उन्हें बेबी ब्रश दें औश्र अपने दांत खुद साफ करने को कहें। 2 साल का बच्चा खुद ब्रश कर सकता है। उसे सुबह और सोते समय ब्रश करना सिखाएं। बच्चे को ब्रश करना सिखाएं जैसे वह ब्रश को 45 डिग्री के कोण से पकड़े और आगे और पीछे के दांत साफ करे आदि और उसे कम से कम दो मिनट दांत साफ करने को कहें।
6 साल की उम्र तक बच्चे को मटर के दोने से ज़्यादा टूथपेस्ट इस्तेमाल करने को न दें। अभिभावकों को ब्रश के समय बच्चे के साथ रहना चाएि और देखना चाहिए के वह ठीक से ब्रश कर रहा है या नहीं और कहीं वह टूथपेस्ट निगल तो नहीं रहा। 6 साल से बड़े बच्चे टूथपेस्ट न निगलने के लिए अभ्यस्त होते हैं और ज़्यादा नियंत्रण रख पाते हैं।
अंत में, उसे ब्रश से हल्के से जीभ साफ करना सिखाएं ताकि कैविटि और सांस की दुर्गंध के कारक बैक्टीरिया भी समाप्त हो सकें। हालांकि ऐसा करने से बच्चे को अजीब महसूस होता है या गुदगुदी होती है इसलिए कुछ हफ्ते रुकें और फिर ऐसा करने को कहें। टंग क्लीनर या स्क्रेपर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन छोटे बच्चों के लिए नहीं।
औश्र जब बच्चे के मुंह में एक-दूसरे से लगे दांत आ जाएं तब उनके बीच फ्लॉस करने का समय है। बैक्टीरिया, दांतों के बीच फंसे भोजन, जो मसूड़ों को उद्दीप्त करता है, से बचने के लिए फ्लॉसिंग ज़रूरी है। अपने बच्चों का 5 साल की उम्र में यह आदत डालने की कोशिश करें। पांच साल तक के बच्चे सामान्यतया फ्लॉसिंग करने में सक्षम नहीं हो पाते इसलिए तब तक अभिभावकों को यह करना चाहिए। अपने फ्लॉसिंग के समय पर ही बच्चे के दांतों में भी फ्लॉसिंग करने से आप एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।
डेंटल चेकअप
दि इंडियन डेंटल एसोसिएशन का सुझाव है कि बच्चे को 1 साल की उम्र से पहले सबसे पहली बार डेंटिस्ट के पास ले जाना चाहिए। इससे पहले कब, यह बच्चे के दांतों के विकास पर निर्भर करता है जैसे दांत ढीले या विकृत हों या जल्दी या देर से आ रहे हों। आईडीए ने दांत आने के बारे में निर्देश बताए हैं:
निचले दांत | ऊपरी दांत | |
---|---|---|
सेंट्रल इनसिज़र्स 6-10 महीने | सेंट्रल इनसिज़र्स 8-12 महीने | |
लैट्रल इनसिज़र्स 10-16 महीने | लैट्रल इनसिज़र्स 9-13 महीने | |
फर्स्ट मोलर्स 14-28 महीने | फर्स्ट मोलर्स 13-19 महीने | |
कैनाइन्स 17-23 महीने | कैनाइन्स 17-23 महीने | |
सेकंड मोलर्स23-31 महीने | सेकंड मोलर्स 25-33 महीने |
12 महीने में शुरुआत करने के बाद आईडीए का सुझाव है कि हर छह महीने में या ज़रूरत के हिसाब से नियमित रूप से डेंटिस्ट को दिखाएं। डेंटिस्ट के क्लिनिक में होने वाले शोर, गंध आदि के कारण कुछ बच्चे चकित या भयभीत हो सकते हैं इसलिए कुछ समय दें और उन्हें निश्चिंत करें। अगर वहां बच्चों के लिए कोई विशेष कुर्सी या खिलौने आदि हैं तो उनकी मदद लें। बेहतर यही होगा कि डेंटिस्ट को लेकर बच्चों को कोई धमकी न दें और ब्रश करने जैसी आदतें बिना इस तरह धमकाए ही डालें।
फ्लोराइड
फ्लोराइड टूथ इनैमल का ज़रूरी हिस्सा है जो दांत के बाहर का कठोर भाग है। बच्चों और बड़ों में भी दांत आने तक मसूड़ों के नीचे उसके विकास और उसकी देखरेख के लिए यह ज़रूरी है। लेकिन दांतों के विकास के समय ज़्यादा फ्लोराइड के कारण डेंटल फ्लोरोसिस हो सकता है जो इनैमल में स्थायी बदलाव कर देता है। डेंटल फ्लोरोसिस अगर कम हो तो इसके कारण इनैमल में स्पॉट या स्ट्रीक होते हैं जो गहन जांच में ही पता चलते हैं। फ्लोरोसिस के गंभीर मामलों में दांत बाड़े तिरछे या दाग धब्बों से ग्रस्त हो जाते हैं जो साफ दिखाई देते हैं। हालांकि यह केवल सौंदर्य या दिखने से संबंधित समस्या लगती है लेकिन ऐसा होने पर दांतों की सफाई करना मुश्किल हो जाता है।
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