केवल सब सहारा अफ्रीका में हर रोज़ 1300 बच्चे मलेरिया के कारण मरते हैं। इस आंकड़े को कम करने की दिशा में अब तक कोई वैक्सीन मंज़ूर नहीं की गई है। लेकिन अब हो सकता है कि यह स्थिति बदले। अगर आवश्यक मंज़ूरियां मिल जाती हैं तो यह एक बड़ा कदम होगा क्योंकि इस साल अक्टूबर तक एक नयी वैक्सीन उपलब्ध होने की संभावना है।
हफिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार एक प्रत्याशित वैक्सीन आरटीएस, एस/एएस01 मनुष्यों में किलनिकल परीक्षणों के एडवांस दौर में पहुंच चुकी है। अफ्रीकन बच्चों में मलेरिया से बचाव में वैक्सीन दिये जाने के चा साल बाद तक इसके असरदार होने के संकेत मिले हैं। यह वैक्सीन 2009 से परीक्षण के चरणों में है और अप्रेल 2015 में लैंसेट जॉर्नल में इसके अंतिम चरण के डेटा का प्रकाशन हुआ था।
हालांकि यह बीमारी से पूर्ण बचाव नहीं करती लेकिन वैक्सीन का विकास कर रहे शोधकर्ताटों का विश्वास है कि अगर इसका बडे स्तर पर इस्तेमाल हो तो हर साल के आंकड़ों बड़े स्तर पर प्रभाव पड़ेगा। परीक्षणों के दौरान पाया गया है कि अगर 1000 बच्चों को यह वैक्सीन दी गई थी तो 4 साल की अवधि में क्लिनिकल मलेरिया के 1363 मामले कम हो गये, उनकी तुलना में जिन्हें मलेरिया वैक्सीन नहीं दी गयी थी, इन बच्चों को दूसरी वैक्सीन दी गई थीं। इसका मतलब यह है कि जो बच्चे यह वैक्सीन नहीं लेते उन्हें एक से अधिक बार भी मलेरिया होता है, इसलिए प्रति हज़ार बच्चों पर मलेरिया के मामलों की संख्या ज्त्रयादा आयी।
मलेरिया एक रोग है जो संक्रमित व्यक्ति के रक्त और लिवर में एक परजीवी के पनपने के कारण होता है। जिन बच्चों को यह वैक्सीन दी गई उनमें क्लिनिकल और सीवियर मलेरिया के कम मामले दर्ज हुए। दोनों किस्म के मलेरिया में यह फर्क है कि एक निश्चित मात्रा में लिये गये खून में पैरासाइट्स की संख्या कितनी होती है।
इस वैक्सीन के परीक्षण के दौरान शिशुओं को एक महीने में तीन डोज़ दिये गये और पहले डोज़ के 20 महीने बाद एक बूस्टर भी। कुछ शिशुओं को 6 से 12 हफ्ते की उम्र के बीच ये डोज़ दिये गये और कुछ को 5 से 17 महीने की उम्र में। अध्ययन में पता चला कि दूसरे समूह के शिशुओं में वैक्सीन ज़्यादा असरदार साबित हुई। लेकिन समय गुज़रने के सज्ञथ ही दोनों समूहों के शिशुओं में इसका प्रभाव कम हो गया। लेकिन 20 महीने बाद दिये गये बूस्टर के कारण दोनों समूहों के बच्चों में सुरक्षा का समय बढ़ गया। एक बूस्टर डोज़ के कारण संभवतः 1774 संक्रमणों से बचाव हो सका।
यूके में लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेउिसिन के प्रोफेसर और लेखक ब्रायन ग्रीनवुड का कहना है कि “समय के साथ प्रभावोत्पादकता कम होने के बावजूद इस वैक्सीन का लाभ स्पष्ट रूप से दिखा।” ग्रीनवुड ने कहा कि “2013 में मलेरिया के करीब 20 करोड़ मामले थे, इस प्रभावोत्पादकता वाली वैक्सीन के कारण करोड़ों बच्चों को मलेरिया से बचाया जा सकता है।”
ग्रीनवुड ने आगे कहा कि “फाइनल डेटा पर आधारित वैक्सीन की गुणवत्ता, सुरक्षात्मकता और प्रभावोत्पादकता का विश्लेषण यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी करेगी। अगर ईएमए इसके पक्ष में राय देती है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन इस साल अक्टूबर तक इसके इस्तेमाल की सिफारिश कर सकता है। अगर इसे लाइसेंस मिला तो, आरटीएस, एस/एएस01 पैरासाइट रोग के खिलाफ यह पहली लाइसेंसी मानव वैक्सीन होगी।”
ईएमए और डब्ल्यूएचओ द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद इस वैक्सीन के सामान्य इस्तेमाल को लेकर हर देश इसे लाइसेंस देने का फैसला अपने स्तर पर कर सकेगा। हालांकि इस वैक्सीन से मलेरिया से पूर्ण बचाव नहीं होता और इसके प्रभाव की दर 18 से 28 फीसदी के बीच है लेकिन फिर भी यह एक स्वागत योग्य शुरुआत होगी।
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