वयस्कों द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यवहार के कारण बच्चों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक असर के बारे में काफी अध्ययन सामने आ चुके हैं लेकिन अब साथियों द्वारा किये गये ऐसे व्यवहार के असर के बारे में ध्यान दिया जा रहा है। पिछले 20 सालों में हुए अध्ययनों में देखा गया है कि डराये-धमकाये जाने से बच्चों के आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है जिससे उबरने में सालों लग जाते हैं। अप्रेल 2015 में प्रस्तुत एक अध्ययन में बताया गया है कि साथियों द्वारा डराये-धमकाये जाने के कारण बच्चों पर नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव लंबे समय के लिए पडते हैं, वयस्कों द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की अपेक्षा कहीं ज़्यादा।
सैन डिएगो में पेडियाट्रिक एकेडमिक सोसारूटीज़ की सालाना बैठक में प्रस्तुत किये गये और लैंसेट साइकिएट्री में प्रकाशित इस अध्ययन में बुलइंग के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण है। शोधकर्ताओं ने बच्चों और नव वयस्कों, जो अपने बचपन में वयस्कों के दुर्व्यवहार या साथियों की बुलइंग या दोनों के शिकार हुए थे, को मद्देनज़र रखा।
उन्होंने 8 सप्ताह से साढ़े आठ साल की उम्र के बीच हुए दुर्व्यवहार और 8, 10 और 13 साल की उम्र में हुए बुलइंग की रिपोर्ट्स को देखा। 18 साल की उम्र में मानसिक स्वास्थ्य चिंता, कुंठा, आत्मग्लानि/आत्महत्या की सोच, और कुल मानसिक समस्याएं संबंधी नतीजों को रिकॉर्ड किया गया।
नतीजों में देखा गया कि बच्चों और किशोरों ने वयस्कों या अभिभावकों के दुर्व्यवहार की अपेक्षा साथियों द्वारा किया गया दुर्व्यवहार ज़्यादा झेला है। उदाहरण के लिए यूके के समूह में, 8.5 फीसदी वयस्कों द्वारा प्रताड़ित किये गये, 29.7 फीसदी बुलइंग और 7 फीसदी दोनों तरह के दुर्व्यवहार के शिकार हुए। यूएस समूह में, 15 फीसदी वयस्कों द्वारा प्रताड़ित, 16.3 फीसदी बुलइंग और 9.8 फीसदी दोनों तरह से पीड़ित पाये गये। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जो बच्चे वयस्कों द्वारा प्रताड़ित रहे, वे साथियों की बुलइंग के शिकार ज़्यादा बने।
पारिवारिक विषमताओं, अभिभावकों के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक स्तर जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नतीजों को व्यवस्थित किया गया और शोधकर्ताओं ने पाया कि वयस्कों द्वारा किया गया दुर्व्यवहार एकमात्र कारण नहीं था जिसके कारण यूएस समूह में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं का खतरा बढ़ा लेकिन यूके समूह में हताशा और कुंठा का खतरा इसी कारण बढ़ा।
दोनों ही सूहों के अध्ययन में जो एक बात स्पष्ट रूप से सामने आयी वह थी कि जो बच्चे बुलइंग के शिकार हुए उनमें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा ज़्यादा बढ़ा, उनकी अपेक्षा जो केवल बुरे बर्ताव के शिकार हुए। मानसिक स्वास्थ्य के ये मामले चिंता, हताशा, आत्मग्लानि और आत्महत्या के विचारों से जुड़े थे। जो बच्चे दुर्व्यवहार और बुलइंग दोनों के शिकार हुए उनमें इन मानसिक समस्याओं से ग्रस्त होना ज़्यादा देखा गया।
यूके में विकासमूलक मनोविज्ञान के प्रोफेसर और पीएचडी, और अध्ययन के लेखक डीटर वोल्के का कहना है कि ‘‘बुलइंग का शिकार होना न तो हानिरहित है और न ही बढ़ती उम्र का कोई ज़रूरी अनुभव, इसके दूरगामी परिणाम होते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि स्कूल, स्वास्थ्य सेवाएं और दूसरी एजेंसियां साथ में मिलकर बुलइंग की रोकथाम के प्रयास करें ताकि इसके बुरे प्रभावों से सुरक्षा हो सके।’’
इस अध्ययन में एक मुद्दा अनुत्तरित रह गया है वह यह क इसमें वयस्कों द्वारा किये गये दुर्व्यवहार की उन्हीं रिपोर्ट्स का अध्ययन किया गया जो 9 साल से कम उम्र के बच्चों की थीं। यह नहीं बताया गया है कि इससे ज़्यादा उम्र में उत्पीड़न का शिकार होने पर मानसिक स्वास्थ्य पर क्या ज़्यादा बुरा असर पड़ता है। चूंकि नतीजे अब तक प्रकाशित नहीं हुए हैं इसलिए यह भी स्पष्ट नहीं है कि शोषण या उत्पीड़न के स्तरों को ध्यान में रखा गया कि नहीं।
भारत में बुलइंग के विषय में अभी और शोध की ज़रूरत है। अप्रेल 2014 में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में उल्लेख था कि सीबीएसई ने स्कूल अधिकारियों और छात्रों से ऑनलाइन सर्वे के ज़रिये बुलइंग पर प्रतिक्रिया मांगी थी। लेकिन अप्रेल 2015 तक सीबीएसई की वेबसाइट पर इस सर्वे में प्राप्त सूचनाओं की कोई जानकारी प्रकाशित नहीं हुई है।
बुलइंग पर अभिभावकों के लिए न्यूज़पाई की गाइड यहां दी जा रही है।