बीस में से एक भारतीय पुरूष को जीवनसाथी नहीं मिलेगा


2011 की जनगणना ने लिंग अनुपात में बढ़ते असंतुलन पर प्रकाश डालाए जिसमें भारत में पुरूषों की संख्या महिलाओं से अधिक हैए विशेषरूप से पचास से कम आयुवर्ग की जनसंख्या में । जनगणना में 15 से 39 वर्ष के आयुवर्ग में भारतीय पुरूषों की संख्या महिलाओं से 13ण्9 करोड़ अधिक थी । यह वह आयुवर्ग है जिसमें पुरूष यौन रूप से सक्रिय होते हैं और विवाह करके संतानोत्पत्ति करते हैं । अगली पीढ़ी तक पहुंचते.पहुंचतेए यह असंतुलन और अधिक खराब हो जाएगा । नवजात शिशु से चौदह वर्ष के आयुवर्ग में पुरूषों की संख्या महिलाओं की तुलना में 16ण्2 करोड़ अधिक थी । जनगणना हुए चार वर्ष हो चुके हैंए तो कुछ युवा पुरूष पहले से ही वृद्ध हो चुके हैं।

एक व्यवहारिक मामले के रूप में इसका विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट है कि इस आयुवर्ग के बीस पुरूषों में से एक के लिये जीवनसाथी उपलब्ध नहीं है। इसका उनके सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है घ् बहुत कम ही पुरूष ऐसे होंगे जिनपर महिला साथियों की कमी का प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो य वो जिनकी प्राकृतिक रूप से यौन रूचि कम हैए जो समलैंगिक हैं या जिनके पास यौन इच्छाओं को पूरा करने के दूसरे मार्ग उपलब्ध हैं जैसे वेश्यावृत्ति और हस्तमैथुन । अगर समाज या सरकार अधिक रूढ़िवादी हो होताए जैसा कि लगता है भारत में ऐसा नहीं होगाए तब तो ये मार्ग भी बंद हो जाएंगे।

इस मुद्दे के भौगोलिक अंश भी हैं। जबकि लोग देश के भीतर स्वतंत्रापूर्वक आ जा सकते हैंए डेटा दिखाते हैं कि एक राज्य से दूसरे राज्य में लिंग अनुपात बदल जाता है।

नीचे दिया हुआ चार्ट राष्ट्रीय स्तर पर पुरूषों और महिलाओं के अनुपात को प्रस्तुत करता हैए प्रत्येक राज्य में प्रत्येक पांच वर्ष के आयुवर्ग में जन्म से लेकर अस्सी वर्ष की आयु तक। जो 80 वर्ष से अधिक आयु के हैं उनको एक ही श्रेणी में वर्गकृत किया गया है।

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