सोते हुए बच्चों की जो तस्वीरें पत्रिकाओं या अन्य मीडिया लेखों के साथ दर्शायी जाती हैं, वे शिशुओं के गलत ढंग से सोने की मुद्राओं को प्रचारित करती हैं। मुलायम खिलौनों के साथ या उन पर पेट रखकर सोते हुए शिशु को देखना वात्सल्यपूर्ण तो लगता है लेकिन यह कोई सही तरीका नहीं है। इस तरह की नींद की मुद्राओं के कारण सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम यानी एसआईडीएस का खतरा बढ़ जाता है।
शिशु की मृत्यु होने पर उसे पालने में मृत्यु कहा जाता है, यही एसआईडीएस भी कहलाता है और अक्सर नींद के दौरान होने वाली शिशु की मृत्यु का कारण ऑटॉप्सी में भी पता नहीं लग पाता। एसआईडीएस को लेकर शोधकर्ताओं ने नतीजा निकाला है कि इसका एक प्रमुख कारण शिशुओं का पेट के बल सोना है। दि अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स का सुझाव है कि एसआईडीएस के खतरे को कम करने के लिए शिशुओं को पीठ के बल ही सुलाएं। इस खतरे का दूसरा कारण मुलायम खिलौने या तकिये और कुशन आदि सोते हुए शिशु के पास रखना है। यह भी सुझाव दिया गया है कि शिशुओं को अभिभावकों के साथ नहीं सोना चाहिए, हालांकि साथ सोने को लेकर किसी किस्म का नुकसान होने के बारे में अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। अगर अभिभावकों में से एक, खासकर मां यदि धूम्रपान करती है तो शिशुओं में एसआईडीएस का खतरा बढ़ जाता है।
एक ताज़ा अध्ययन में इस आत पर प्रकाश डाला गया है कि विज्ञापनों और मीडिया में दर्शायी जाने वाली सोते हुए शिशुओं की तस्वीरों में सिफारिशी निर्देशिका का कितना पालन होना चाहिए। चूंकि मीडिया अभिभावकों को प्रभावित करता है इसलिए महत्वपूर्ण है कि पत्रिकाएं, समाचार पत्र आदि में शिशुओं के सोने की सही मुद्राओं का प्रकाशित किया जाये ताकि सोने की सही आदतें ही लोग सीखें।
भारतीय मीडिया में शिशुओं के पेट के बल सोने की कई तस्वीरें खोजी गईं लेकिन इनमें से कई एसआईडीएस संबंधी लेखों से जुड़ी थीं। दूसरी ओर, कुछ मीडिया समूह एक तरफ तो एसआईडीएस संबंधी लेख छापते हैं और दूसरी तरफ अन्य आलेखों के साथ शिशुओं के पेट के बल सोने की तस्वीरें भी प्रदर्शित करते हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण आईबीएनलाइव है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्टॉक की तस्वीरें छापने वाली वेबाइट्स को देखा। साथ ही ऐसी 26 पत्रिकाओं का भी विश्लेषण किया जो अभिभावकों या अभिभावक बनने वाले युगलों को केंद्र में रखती हैं। इन तस्वीरों में शिशुओं के सोने की मुद्राओं, ोने के स्थान, उनके साथ कोई और सो रहा है या नहीं और शिशुओं के सोने के स्थान पर मुलायम चीज़ें रखी हैं या नहीं, इन विषयों पर ध्यान देकर छंटनी नहीं की गई थी।
शोधकर्ताओं ने पाया कि लगभग आधी स्टॉक तस्वीरें और पत्रिकाओं में छपने वाली 67 फीसदी तस्वीरें शिशुओं को पीठ के बल सोता हुआ दर्शाती हैं, जो ठीक मुद्रा है। लेकिन एएपी द्वारा सुझाये जाने वाले शिशुओं के सोने के ठीक वातावरण को सिर्फ 16 फीसदी स्टॉक फोओ और 29 फीसदी पत्रिकाओं की तस्वीरों में ही दर्शाया जाता है।
वेलस्पान यॉर्क अस्पताल में पदस्थ शिशु चिकित्सा विशेषज्ञ और अध्ययन के प्रमुख लेखक माइकल गुडस्टीन ने कहा कि “पत्रिकाओं की एक तिहाई तस्वीरें शिशुओं को पेट के बल सोता हुआ दर्शाती हैं, जिससे एसआईडीएस का खतरा दुगना हो जाता है। जो पत्रिकाएं गर्भवती महिलाओं, नये अभिभावकों, शिशुओं से संबंधित उतपादों या विज्ञापनदाताओं को केंद्र में रखती हैं उन्हें शिशुओं के ठीक प्रकार से सोने की मुद्राओं के बारे में सही जानकारी देने वाली तस्वीरों का प्रयोग करना चाहिए।”
मीडिया कंपनियों और विज्ञापनकर्ताओं को गलत तरीके दर्शाने वाली तस्वीरों के प्रति सतर्क रहना चाहिए क्योंकि इनके ज़रिये वे अनजाने में भी गलत संदेश प्रसारित कर सकते हैं। साथ ही जागरूक पाठकों को भी ऐसी गलत तस्वीरों के खिलाफ सोशल मीडिया या राय देने के माध्यम के द्वारा आवाज़ उठाना चाहिए।
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