किसी डॉक्टर, वैज्ञानिक या विश्वविद्यालय द्वारा अब तक ऐसी कोई विश्वसनीय रिसर्च नहीं हुई है जो ये साबित करे कि एमएमआर यानी मीज़ल्स, मंप्स एंड रुबेला, वैक्सीन के कारण ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर होता है। इंग्लैंड के एक डॉक्टर द्वारा किया गया एक अध्ययन 1998 में प्रकाशित हुआ था जो इन दोनों का संबंध साबित करता था लेकिन उस अध्ययन को गलत पाया गया, जिस पत्र में वह प्रकाशित हुआ था, उसने माफी मांगी और उस डॉक्टर को प्रतिबंधित कर दिया गया। 2015 में किये गये एक अध्ययन में फिर यह साबित हुआ कि वैक्सीन और ऑटिज़्म के बीच कोई संबंध नहीं है। इस अध्ययन के बाद अभिभावकों के पास कोई वजह नहीं बचती कि वे अपने बच्चे को इन रोगों से बचाने के लिए यह टीकाकरण न करवाएं।
स्वास्थ्य परामर्श संस्था अमेरिका के लेविन समूह की डॉत्र अंजलि जैन द्वारा किये गये अध्ययन, जो अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के पत्र में प्रकाशित हुआ है, में उन एक लाख बच्चों की सेहत पर नज़र रखी गयी जो प्राइवेट मेडिकल इंश्योरेंस प्लान के अंतर्गत नामांकित थे। इस डेटा से यह संकेत भी मिले कि अगर किसी बच्चे का बड़ा भाई या बहन एएसडी से ग्रस्त रहा है तो उसमें एएसडी के विकास का खतरा बढ़ जाता है। दूसरे समूह के बच्चों में देखा गया कि एमएमआर वैक्सीन के कारण बच्चों में एएसडी होने का कोई खतरा नहीं पाया गया।
जैन ने कहा कि “जो बच्चे हाई रिस्क पर थे उनमें भी वैक्सीन की वजह से कोई बुरा असर नहीं हुआ। हमें नहीं पता चला कि ऑटिज़्म का क्या कारण है, लेकिन एमएमआर वैक्सीन नहीं है।”
जैन के विश्लेषण में पता चला कि जिन बच्चों के बड़े भाई या बहन में एएसडी की शिकायत थी, उनमें प्रतिरक्षण की दर कम थी क्योंकि अभिभावकों का मानना था कि मीज़ल्स वैक्सीन और डिसॉर्डर के बीच संबंध है। दूसरे सर्वेक्षणों में पता चला कि एएसडी ग्रस्त बच्चों के अभिभावक वैक्सीन को ही एएसडी का कारण मानते हैं। इस अध्ययन के अनुसार ऐसी मान्यताओं का कोई आधार नहीं है।
एक गलत रिपोर्ट का असर मिटाने में सालों लग जाते हैं। जैन के अध्ययन जैसे शोधों के कारण शायद इस तरह के संदेह मिटाने में मदद हो सकेगी।
यदि आप इस लेख में दी गई सूचना की सराहना करते हैं तो कृप्या फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक और शेयर करें, क्योंकि इससे औरों को भी सूचित करने में मदद मिलेगी ।