बच्चों के पैराकार मानते हैं कि बच्चों के यौन शोषण को केंद्र में रखकर भारत के सभी हाई स्कूलों में सेक्स शिक्षा दी जानी चाहिए। उन्हें लगता है कि बच्चों को अपने खिलाफ होने वाले यौन शोषण के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए। उनकी यह भी मांग है कि एक नेशनल हेल्पलाइन बनायी जाये और उन्हें सिखाया जाये कि कैसे पहचान बताये बिना उस पर रिपोर्ट की जा सकती हैं।
बैंगलोर के बाल अधिकार कार्यकर्ता कुमार वी. जागीरदार का कहना है कि महिला व बाल विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 5 से 12 साल के बच्चे हाल में यौन शोषण के के शिकार पाये गये हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के एक लेख में जागीरदार ने कहा है कि “बच्चों की सुरक्षा संबंधी कानून जैसे 2012 का यौन अपराध अधिनियम सख्ती से लागू किये जाने की ज़रूरत है और इसके बारे में मूलभूत स्तर पर जागरूकता फैलाने की भी। बाल अधिकार संबंधी संस्था क्रिस्प के अध्यक्ष जागीरदार कहते हैं कि शोषणकर्ताओं को सबक सिखाने और बच्चों द्वारा इस अपराध के विषय में मुखर होने के लिए सख्त कदम उठाये जाने चाहिए। यह बदलाव लाने के लिए ताकि बच्चे सुरक्षित रहकर अपनी आवाज़ उठा सकें, ज़रूरी है कि हेल्पलाइन्स शुरू की जाएं और कक्षाओं का माहौल बदला जाये।
सेक्स शिक्षा केवल यह सिखाना नहीं है कि यौन संबंध कैसे बनाये जाते हैं, बल्कि इससे ज़्यादा जब यह ठीक तरह से समझाया जाये तो इसके कई और फायदे भी हैं। एक ताज़ा अध्ययन में पाया गया है कि जेंडर रोल और पावर डायनामिक्स सिखाने वाली सेक्स शिक्षा के बेहतर नतीजे मिले हैं जैसे कि सेक्स संबंधी संक्रमणों, किशोरावस्था में गर्भधारण से सुरक्षा और टीनेज लड़कियों में सुरक्षित सेक्स व्यवहार। शोधकर्ता निकोल हेबरलैंड ने अध्ययन के दौरान पाया कि 19 साल और उससे कम उम्र की जिन लड़कियों को जेंडर रोल और पावर डायनामिक्स संबंधी सेक्स शिक्षा दी गई उनमें सशक्तिकरण और सामाजिक समानता को लेकर दृढ़ता आयी और उनकी तुलना में जिन्हें सेक्स शिक्षा नहीं दी गई थी, इन लड़कियों में सेक्स के दौरान होने संक्रमण और अनचाहे गर्भधारण से 80 फीसदी ज़्यादा सुरक्षा हुई। इसकी तुलना में जिन जब लिंग संबंधी मामलों को सेक्स शिक्षा कार्यक्रमों में शामिल नहीं किया तो सिर्फ सुरक्षा केवल 17 फीसदी ही हो सकी। हेबरलैंड जनसंख्या परिषद में काम करती हैं, जो बांग्ला सहित कई भाषाओं में टीचिंग किट मुफ्त देता है।
अगर किसी को शक है कि भारत में जेंडर रोल समझाने की ज़रूरत है तो इन आंकड़ों पर नज़र डालें। यूनिसेफ के अनुसार 18 फीसदी भारतीय बच्चे 15 साल की उम्र में पहले विवाहित होते हैं और 18 साल से कम उम्र के 47 फीसदी बच्चे। इसमें भी किशोर लड़कियां ज़्यादातर विवाहित होती हैं। सिर्फ 5 फीसदी लड़कों की तुलना में 30 फीसदी अवयस्क लड़कियां विवाहित होती हैं। 15 से 24 साल के लड़कों में 36 फीसदी को एचआईवी के बारे में जानकारी है जबकि सिर्फ 20 फीसदी लड़कियां ही इस बारे में जानती हैं। किशोरों में, 57 फीसदी लड़के और 53 फीसदी लड़कियां पत्नी को पीटे जाने को जायज़ मानते हैं।
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