सबके अपने अलग विचार, भावनाएं और प्रेरणाएं होती जो दूसरों से अलग होती हैं, इस बात को समझने की योग्यता को थ्योरी ऑफ माइंड कहते हैं। मनुष्यों में यह तीन से चार साल की उम्र में विकसित होती है। हालांकि यह योग्यता केवल मनुष्यों में पायी जाती है लेकिन पक्षियों में भी इसके होने के प्रमाण मिले हैं। अब, 20 अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रों के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जो बच्चे दूसरे बच्चों के विचारों और इच्छाओं को समझकर उनसे तादात्म्य बनाते हैं वे उन बच्चों की तुलना में ज़्यादा लोकप्रिय होते हैं जो दूसरों को समझने में कमज़ोर होते हैं।
इकोनॉमिक टाइम्स में छपे ये नतीजे, प्री-स्कूलर्स के साथ ही, बड़े छात्रों के बारे में भी समान हैं। आपसी समझ और हमदर्दी बरतने की इस योग्यता के कारण शुरुआत में दोस्त बनाने में मदद मिलती है और बाद में इन रिश्तों को बरकरार रखने में भी। दूसरी ओर, संवेदनशीलता और लोकप्रियता के बीच यह संबंध लड़कों में लड़कियों की तुलना में कम होता है। इस बारे में लेखकों का मानना है कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि दोनों के द्वारा की जाने वाली दोस्ती की प्रकृति में फर्क होता है। उदाहरण के लिए लेखकों का मानना है कि लड़कियों के बीच दोस्ती ज़्यादा अंतरंग होती है और उलझनें सुलझाने के मद्देनज़र उनमें संवेदनशीलता और आपसी समझ ज़्यादा होती है।
सहानुभूति संभवतः जन्मगत होती है। उदाहरण के लिए, नवजात शिशु दूसरे शिशु का रोना सुनकर रोता है और एक-दो साल के बच्चे परिवार के लोगों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हैं। फिर भी, शोध के अनुसार सहानुभूति या संवेदना सिखायी भी जा सकती है। उदाहरण लिए जिन बच्चों में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर की शिकायत थी जिसमें सहानुभूति दिखाने और अभिव्यक्त करने की योग्यता कम होती है, सही हस्तक्षेप के बाद उनमें इनयोग्यताओं का विकास देखा गया।
ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड यूनिवर्सिटि में मनोविज्ञान की प्रोफेसर और इस अध्ययन की मुख्य लेखक वर्जिनिया स्लॉटर के अनुसार इस अध्ययन के नतीजे उन बच्चों के लिए महत्वपूर्ण हैं जो दोस्ती करने में उलझन महसूस करते हैं या सामाजिक रूप से कटे हुए हैं। इससे स्पष्ट होता है कि ऐसे बच्चों को दूसरे बच्चों के प्रति हमदर्दी सिखाई जाए और समझाया जाए कि वे अपने साथी दूसरे बच्चों की भावनाओं को सुनें और समझें, तो उन बच्चों के रिश्ते बेहतर हो सकते हैं।
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