बच्चा अगर कठिन समय से गुज़रता है तो भविष्य में उसे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। स्वीडन में वैज्ञानिकों ने इस लिंक के बारे में निष्कर्ष निकाला है कि बचपन की त्रासदिक घटनाओं जैसे परिवार में कोई मृत्यु, गंभीर रोग या तलाक आदि के कारण टाइप 1 डायबिटीज़ की आशंका बढ़ती है।
पहले के शाधों में पाया गया था कि बचपन में तनाव, डायबिटीज़ और मोटापे का कारण बनता है। इन शोधों में बच्चे के डायबिटीज़ के शिकार होने पर परिवारों से पूछा गया था कि क्या वह किसी तनावपूर्ण घटना से गुज़रा है। ताज़ा अध्ययन में स्वीडित मेडिकल सिस्टम के तहत नियमित रूप से किये जाने वाले मुफ्त चेक-अप के डेटा को दखा गया और बच्चों और अभिभावकों पर नज़र रखी गई और छांटा गया कि किसे टाइप 1 डायबिटीज़ है। इस अध्ययन के साथ-साथ उनके जीवन की गंीाीर घटनाओं का ब्यौरा भी रखा गया और अभिभावकों से उनके पालन संबंधी तनाव के बारे में खुद रिपोर्ट देने को कहा गया। इन सब चीज़ों को मनोवैज्ञानिक तनाव के लिए प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल किया गया। डायबॅटोलॉजिया नामक पत्र में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में पाया गया कि उन बच्चों की तुलना में जो गंभीर घटनाओं के शिकार नहीं हुए, वे बच्चे जो गंभीर घटनाओं से गुज़रे, उनमें बचपन में ही डायबिटीज़ के मामले 3 गुना ज़्यादा थे। हैरेडिटि, अभिभावकों की शिक्षा का स्तर और गर्भ के आकार जैसे घटकों पर भी ध्यान रखते हुए किये गये अध्ययन में यही नतीजे प्रबल रहे। अभिभावकों के तनाव या सामाजिक कटाव का कोई असर नहीं देखा गया। मोटापे का भी कोई उल्लेखनीय रोल नहीं था। तनावपूर्ण घटनाओं के कारण खतरे के बढ़ने की तुलना जन्म के समय वज़न, पोषण या एंटेरोवायरस संक्रमण से की जा सकती है जो बच्चों में डायबिटीज़ के दूसरे प्रमुख कारण हैं। सबसे बड़ा रिस्क फैक्टर अब भी हैरेडिटि ही है। अगर बच्चे के अभिभावक में से एक टाइप 1 डायबिटीज़ का शिकार रहा है तो बच्चे में इसकी आशंका तनावपूर्ण घटनाओं के कारण डायबिटीज़ होने की आशंका से चार गुना ज़्यादा होती है।
तनावग्रस्त होने से बचपन में डायबिटीज़ होने के कारण क्या हैं, इस बारे में अभी अध्ययन किये जाने की ज़रूरत है। एक संभावना तो यह हो सकती है कि तनाव के कारण कॉर्टिसॉल नामक हॉर्मोन का स्राव होता है जो इंसुलिन के स्राव के साथ ही प्रतिरोध कार्यों को भी नियंत्रित करता है, दोनों का ही संबंध डायबिटीज़ से है। तो, हॉर्मोन स्तर में अगर लंबे समय तक बदलाव हो तो बच्चे के स्वास्थ्य पर दूरगामी नकारात्मक प्रभाव पड़े सकते हैं। और ऐसे मामलों में ज़रूरी है कि अभिभावक त्रासदी के समय में बच्चों की मदद करें और उन्हें उस स्थिति से उबरने में सहारा दें।
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