आनुवांशिक है पढ़ाई के प्रति लगन


अनेक ताज़ा वैज्ञानिक अध्ययनों में पता चला है कि व्यक्तित्व निर्माण में जीन्स की भूमिका होती है। एक नये अध्ययन के अनुसार यह भी आश्चर्य की बात नहीं है कि अध्ययन के प्रति लगन भी आनुवांशिक हो सकती है।

इसका मतलब यह नहीं है कि अभिभावक बच्चे को पढ़ाई के प्रति प्रेरित करने की कोशिशें छोड़ दें बल्कि यह समझें कि हर बच्चे को अलग ढंग से प्रेरित करने की ज़रूरत है।

इस अध्ययन में यूके, कनाडा, जापान, जर्मनी, रशिया और यूएस जैसे 6 देशों के 9 से 16 साल के करीब 13000 असमान व समान जुड़वां बच्चों बच्चों का प्रेक्षण किया गया। इन छात्रों से पूछा गया कि वे विभिन्न अकादमिक गतिविधियों में कैसे आनंद लेते हैं और विभिन्न विषयों में से उनकी काबिलियत किसमें है। इसके बाद फ्रैटरनल जुड़वां बच्चों के जवाबों की तुलना समान जुड़वां बच्चों के जवाबों से की गई। फ्रैटरनल जुड़वां बच्चे जीन्स के प्रभाव को लगभग आधा साझा करते पाये गये जबकि समान जुड़वां में ये प्रभाव लगभग एक जैसा ही देखा गया।

जुड़वां बच्चों की प्रतिक्रियाओं में समानता देखने वाले व्यक्तित्व संबंधी अध्ययनों में देखा गया है कि फ्रैटरनल या समान जुड़वां बच्चे जिन्हें एक जैसी परवरिश दी जाती है, उनमें एक जैसी प्रवृत्तियां पायी जाती हैं। अगर अंतर होता है तो वह जीन्स के कारण होता है। इससे उस बहस ने ज़ोर पकड़ा जो प्रकृति बनाम परवरिश विषय पर चलती रही है और कई अध्ययनों ने साबित किया है कि औसतन प्रकृति का ही बड़ा असर दिखता है।

इस अध्ययन में समान जुड़वां बच्चों की प्रतिक्रियाएं फ्रैटरनल जुड़वां बच्चों की अपेक्षा ज़्यादा मिलती-जुलती पायी गयीं। इससे निष्कर्ष निकाला गया कि अकादमिक प्रेणा के सिलसिले में जीन्स और व्यक्तिगत अंतरों को प्रभाव ज़्यादा पड़ता है बजाय वातावरण या परवरिश के। शोधकर्ताओं ने पाया कि 40 से 50 फीसदी मामलों में सीखने की प्रवृत्ति में जो अंतर दिखा वह उनके जीन्स के प्रभाव के कारण था। ये नतीजे सभी देशों में सभी उम्र के बच्चों में समान दिखे। साइंसडेली की रिपोर्ट के अनुसार यह अध्ययन पर्सनैलिटि एंड इंडिविजुअल डिफरेंसेज़ पत्र में प्रकाशित हुआ है।

ओहिओ यूनिवर्सिटि के प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह लेखक स्टीफन पेट्रिल ने कहा कि इस अध्ययन के पहले वह मानते थे कि ऐसे बच्चों में पारिवारिक या स्कूली वातावरण का असर आनुवांशिकता से ज़्यादा होता है।

उन्होंने कहा कि “विभिन्न देशों में विभिन्न शिक्षा तंत्रों और सांस्कृतिक विविधताओं के बीच भी प्रेक्षण के नतीजे एक जैसे ही दिखे। यह आश्चर्यजनक था। हमने पाया कि लोगों में जो व्यक्तित्व के अंतर आनुवांशिक रूप से होते हैं, उनका मोटिवेशन पर गहरा असर पड़ता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम छात्रों को प्रेरित करना छोड़ दें बल्कि यह जानने की कोशिश करें वे अलग क्यों हैं।”

सीखने की लगन की प्रवृत्ति 40 से 50 फीसदी तो आनुवांशिकता पर निर्भर करती है लेकिन इतनी ही जिस स्थिति पर निर्भर करती है उसे कहते हैं अलग-अलग वातावरण। इसका मतलब है हर व्यक्ति को अलग अनुभव होते हैं या उसकी अलग सोच होती है। यह वातावरणीय कारणों जैसे अलग शिक्षकों या अभिभावकों द्वारा अलग व्यवहार आदि से निर्मित होता है। व्यक्तित्व के इस पहलू को पूरा नहीं समझा जा सका है, और माना जा सकता है कि अभिभावक और घर का माहौल बच्चों के विचारों को आकार दे सकता है।

यह पाया गया है कि आनुवांशिक और अलग वातावरणीय कारणों का प्रभाव प्रेरणा पर पड़ता है लेकिन बहुत कम सिर्फ 3 प्रतिशत प्रभाव बच्चों द्वारा साझा किये गये वातावरण का पड़ता है।

इस निष्कर्ष का यह अर्थ नहीं है कि बच्चों में कोई खास जीन होता है जो सीखने के प्रति लगाव पैदा करता है। बल्कि कुछ खास जीन्स का एक जटिल समुच्चय ऐसा करता है। इसके साथ ही हर बच्चे के व्यक्तिगत अनुभव भी। पेट्रिल कहते हैं कि “हमें कक्षा में छात्रों को बशेक प्रोत्साहित और प्रेरित करते रहना चाहिए।” कुल मिलाकर हर बच्चा अलग होगा और उसे अलग तरह से प्रेरणा की ज़रूरत होगी।

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