भारत में खाद्य सुरक्षा लंबे समय से समस्या बनी हुई है। नकली और मिलावटी उत्पादों की बिक्री लगातार बढ़ती जा रही है। उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले दूध में काफी पानी मिल जाता है और नकली मिनरल वॉटर की बोतलें धड़ल्ले से बिकती हैं। पेस्टिसाइड्स को लेकर बने नियम तोड़े जाते हैं, इन सबसे यह चिंता बढ़ रही है कि हम जो खाद्य पदार्थ खा रहे हैं वे ज़हरीले तो नहीं हैं! इस मामले का गंभीर उदाहरण है 2013 में मिलावटी भोजन से हुईं स्कूली बच्चों की मौतें।
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में उल्लेख है कि पेस्टिसाइड्स युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन का संबंध एंडोक्राइन विकार, जन्मगत विकार और कैंसर से हो सकता है। और यह घालमेल सिर्फ फलों और सब्ज़ियों में ही नहीं बल्कि पैकेज्ड फूड के साथ भी हो रहा है। इसलिए, मनुष्यों के टिशूज़, खून और स्तनजनित दूध में मिलावट के गंभीर स्तर देखे जा रहे हैं।
जिन पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल किया जा रहा है वह सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं इसलिए उनके इस्तेामल को लेकर कोई मात्रा भी तय नहीं हो पा रही है। इसके अलावा बीमारियों से बचाव के नाम पर कृषि उत्पादों में एंटिबायोटिक्स का इस्तेमाल भी बेतहाशा किया जा रहा है। लेकिन इससे जानवरों या फसलों को स्वास्थ्य लाभ नहीं होता है। बल्कि, ये एंटिबायोटिक्स उत्पादों में रह जाते हैं जिनमें दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया भी होते हैं और जब इन्हें मनुष्य खाते हैं तो उन्हें भी दवाओं का असर नहीं होने की शिकायतें होती हैं। इस लेख में उल्लेख है कि ज़्यादातर बैक्टीरिया खाद्यजनित बीमारियों को जन्म देते हैं जैसे साल्मोनेला और कैंपिलोबैक्टर। भारत में इन बीमारियों की दवाओं के प्रति प्रतिरोध पैदा हो चुका है।
स्थिति औश्र भी खराब है क्योंकि पैकेज्ड फूड में एडिक्टिव और प्रिज़र्वेटिव मिलाये जा रहे हैं। हालांकि इस संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने वाला कोई शोध नहीं हुआ है कि ये रसायन हानिकारक हैं या नहीं लेकिन विशेषज्ञ इनके ज़्यादा इस्तेामल न किये जाने की चेतावनी दे चुके हैं।
और इसके साथ ही, प्रोसेस्ड फूड में शक्कर, नमक और फैट भारी मात्रा में मिलाया जा रहा है। इसके परिणाम सामने आ चुके हैं कि इनसे डायबिटीज़, दिल के रोग और मोटापे की शिकायतें बढ़ रही हैं। चूंकि पैकेज्ड सस्ते दामों पर, आसानी से हर जगह उपलब्ध होता है इसलिए लोग समय और प्रयास बचाने के चक्कर में अपनी भोजन संबंधी आदतों से समझौता कर रहे हैं।
यह भी सच है कि लोग पोषण संबंधी जानकारियों के प्रति जागरूक नहीं है और खाद्य सुरक्षा को लेकर लोगों में कोई गंभीर चिंतन नहीं है। कई लोग यह नहीं समझते कि खाद्य पदार्थों का संबंध सीधा उनके स्वास्थ्य से है। वे भोजन को सिर्फ ज़िंदा रहने का कारण समझते हैं। इन सब विचारों में बदलाव लाने की ज़रूरत है और ज़रूरी है कि भारत में लोगों को सुरक्षित, पोषक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराये जाएं।
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