शिशु चौंकते हैं तो ज़्यादा सीखते हैं


विकासमूलक वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि बच्चे दुनिया के बारे में प्राकृतिक रूप से कुछ ज्ञान लेकर पैदा होते हैं। कुछ महीने के बच्चों तक को संख्या और गुरुत्वाकर्षण का एहसास होता है। नये शोध में दर्शाया गया है कि विषम परिस्थितियों में बच्चे न केवल चकित होते हैं बल्कि ऐसे में वे कुछ नया सीखने की कोशिश करते हैं।

साइंसडेली में छपे लेख में जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटि के शोधकर्ता एमी ई. स्टैल और लीसा फिगेन्सन बताती है कि बच्चे जिन सूचनाओं या एहसासों के साथ पैदा होते हैं, बदलती परिस्थितियों में उनके साथ समझौता करते हुए सीखते हैं। इसका मतलब यह है कि जिस घटना या व्यवहार की अपेक्षा शिशु को नहीं होती, अगर ऐसा कुछ हो तो वह न सिर्फ चकित होता है, बल्कि तुलनात्मक रूप से ज़्यादा सीखता और समझता है।

इस अध्ययन के लिए 11 महीने तक के शिशुओं पर चार प्रयोग किये गये। ये इस तरह के प्रयोग थे ताकि यह समझा जा सके कि अगर शिशु को उसकी अपेक्षा से अलग परिस्थिति में डाला जाये तो क्या वह उन वस्तुओं के बारे में बेहतर ढंग से व्यवहार करता है। अगर उन्होंने बेहतर सीखा तो शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की क्या वे शिशु इन वस्तुओं को और बेहतर समझने के लिए इन्हें और ज़्यादा टटोलते या खोजते हैं।

उदाहरण के लिए, एक प्रयोग में, बच्चों के एक समूह को शोधकर्ताओं ने एक फिसलती हुई गेंद दिखाई जो दीवार से टकराकर रुक गयी। दूसरे समूह को जो गेंद दिखायी वह दीवार आने के बावजूद लुढ़कती चली गयी। एक सामान्य गेंद से अलग, जब शिशुओं को नई सूचना देती चीज़ दिखायी गयी तब पाया गया कि शिशुओं ने बेहतर सीखा।

बच्चों के जिस समूह को सामान्य गेंद दिखायी गयी, उनमें कुछ नया सीखने का प्रमाण नहीं मिला। जो बच्चे गेंद देखकर चौंके, उन्होंने गेंद को गौर से देखा और टटोला। साथ ही अन्य नये खिलौने भी टटोले जो चौंकाते नहीं थे। इन शिशुओं में चौंकाने वाली गेंद के प्रति जिज्ञासा देखी गयी। वह जानना चाहते थे कि कैसे गेंद एक दीवार के पार निकल गयी। दूसरे प्रयोग में, जब शिशुओं को हवा में लटकी गेंद दिखायी गयी तो उन्होंने उसे ज़मीन पर गिराकर जांचने की जिज्ञासा दिखायी।

मनोविज्ञान और मस्ष्कि विज्ञान की डॉक्टरी की छात्रा और इस लेख की प्रमुख लेखक स्टैल लिखती हैं कि “चौंकाने वाली चीज़ों के प्रति शिशुओं ने केवल त्वरित प्रतिक्रिया ही नहीं दी बल्कि वे अपनी पहचानी हुई दुनिया में कोई अजूबा देखकर उसे जानने-समझने की कोशिश करते भी देखे गये। शिशु दुनिया के बारे में सिर्फ आधारभूत जानकारियां ही नहीं रखते बल्कि बहुत शुरुआत से ही वे नयी चीज़ें सीखने के माध्यम से अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं।”

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