स्वलीनता या ऑटिज़्म के शिकार बच्चों के अभिभावकों के लिए अच्छी खबर है। मुंबई स्थित बहु-पद्धति थैरेपी केंद्र, न्यू होराइज़न्स चाइल्ड डेपलवमेंट सेंटर द्वारा किये गये शोध में पाया गया है कि ठीक हस्तक्षेप से बच्चों की स्वलीनता संबंधी स्थिति में सुधार संभव है।
डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, अध्ययन में दर्शाया गया बच्चों का सुधार मानक ऑटिज़्म रेटिंग स्केल पर आधारित है। न्यू होराइज़न्स की क्लिनिकल डायरेक्टर सोहिनी चटर्जी ने कहा कि ‘‘हमने स्कोर में महत्वपूर्ण सुधार होना पाया। अगर किसी बच्चे में ऑटिज़्म संबंधी लक्षण गंभीर थे तो थैरेपी के बाद, मानक ऑटिज़्म रेटिंग स्केल के हिसाब से सुधार हुआ और लक्षण कम गंभीर पाये गये।“
ऑटिज़्म असल में एक स्नायुतंत्र संबंधी रोग है जो कम्युनिकेशन क्षमताओं और सामाजिक व्यवहार पर असर डालता है। ऑटिस्टिक बच्चे खुद को अभिव्यक्त करने में बहुत समय लेते हैं और लाड़-दुलार प्रदर्शित करते हैं। इस बारे में समझ और मालूमात के अभाव में ऐसे बच्चे अक्सर उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं। अब तक इस रोग के कारणों और पूरे इलाज का तरीका पता नहीं चल सका है।
क्लिनिक फाउंडर और बाल-चिकित्सक डॉक्टर समीर दलवाई ने कहा है कि ‘‘अक्सर मान लिया जाता है कि ऑटिज़्म का इलाज संभव नहीं है। जिन बच्चों में एएसडी की शिकायत थी, 2014 में हस्तक्षेप के बाद उनमें आये बदलावों के बारे में सेकंडरी एनालिसिस हमारे सेंटर द्वारा किया गया।’’ इलाज के बाद, बच्चों की अभिव्यक्ति, बातचीत और व्यवहार की क्षमता में सुधार के साथ7साथ उनकी समझ में भी सुधार देखा गया। रिसर्च टीम के सदस्य डॉक्टर बंसारी भोहिते ने बताया कि ‘‘यह पाया गया कि वे बच्चे खुद खाने और कपड़े पहनने के काबिल हो गये और साथ ही वे खुद गतिविधियों और अपने शरीर के कॉर्डिनेशन में भी सक्षम हुए।’’ अक्टूबर 2014 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटि मेडिकल सेंटर के अध्ययन से न्यू होराइज़न्स का यह अध्ययन मेल खाता है।
न्यू होराइज़न्स के फेसबुक पेज पर उल्लेख है कि यहां वन ऑन वन थैरेपी दी जाती है और इसके भारत में 3 स्कूल और 5 शाखाएं हैं। यह सेंटर वर्तमान में 70 ऑटिस्टिक बच्चों का इलाज कर रहा है। इस अध्ययन के लिए इस सेंटर ने 2 से 7 साल के बच्चों, विशेषकर 2 से 3 साल के 30 बच्चों पर प्रयोग किये जो ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर के शिकार पाये गये और जिनका सेंटर पर इलाज चल रहा है। इन बच्चों के अभिभावकों को भी निर्देशित किया गया कि घर पर भी बच्चों को यही थैरेपी दी जाये।
यह अध्ययन भारत में ऑटिज़्म रिसर्च और जागरूकता के संबंध में महत्वपूर्ण है क्योंकि इस रोग और इसके इलाज के बारे में अब तक केवल विदेशों में ही रिसर्च हुई है। अनुमान है कि भारत में तकरीबन 1 करोड़ बच्चे इस डिसॉर्डर का शिकार हैं और हर 66 में से एक नवजात शिशु को यह शिकायत होती है। हालांकि फिलहाल चुनौती यह है कि भारत में इस तकलीफ से ग्रस्त बच्चों को इलाज मुहैया कराया जाये लेकिन फिर भी इस तरह के अध्ययन ने ऑटिज़्म के शिकार बच्चों के अभिभावकों और परिवारों को यह हौसला देने का काम किया है कि ऐसे बच्चे सफलता से विकास कर सकते हैं, बस उन्हें सही मदद की ज़रूरत है।
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