अपने पहले बच्चे के जन्म के पश्चात दम्पति ज्यादा प्रसन्न नहीं रह पाते  – एक अध्ययन


Couples less happy after their first child is born: Study

Photo: Imagesbazaar

ऐसा कौन सा व्यक्ति है जो बच्चों से प्रेम नहीं करता ? यहां तक कि वे लोग जो बच्चे नहीं चाहते हैं वे भी बच्चों को पसंद करते हैं ! बच्चे बहुत ही प्यारे होते हैं तथा बहुत मीठी-मीठी आवाजें निकालते हैं जिससे दिन भर हमारा मन लगा रहता है ।  कुछ सीमा तक बच्चों की चाहत हमारे जीवन में अत्यंत महत्व रखती है । वे खुशियों का भंडार  होते हैं , सही है न  ? नहीं , शायद हम सही नहीं कह रहे हैं ।

एक नए अध्ययन के अनुसार भले ही आपको  बच्चों से कितना ही अधिक लगाव क्यों न हों परन्तु जब आपका पहला बच्चा जन्म लेता है तो आपकी उसमें रूचि कम हो जाती है और वह भी विशेषकर तब जब आप सुशिक्षित हों और आपका पहला बच्चा थोड़ी अधिक आयु में पैदा हुआ हो । इस अनुसंधान से  बच्चे के जन्म के पहले वर्ष में खुशियों का स्तर कम होने की जानकारी मिली है जिसके कारण अभिभावक अपने अगले बच्चे को जन्म देने का विचार मन में नहीं लाते हैं ।  इस प्रकार हमारे सम्मुख यह महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या बच्‍चे को जन्म देकर अभिभावक अपने जीवन की खुशियां खो बैठते हैं अथवा उनकी खुशियों की कुंजी ही यही होती है ?

रोस्टॉक, जर्मनी के मैक्स प्लॉक इंस्टीट्यूट फॉर डेमोग्राफिक रिसर्च (MPIDR) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पहले बच्चे के जन्म के पश्चात दम्पतियों की खुशियों में आने वाली कमी जैसे अत्यंत ही असंगत विषय का उल्लेख किया गया है । इस अध्ययन के अनुसार जर्मनी में नए नए बने माता पिता की खुशियों में आई कमी का स्तर तलाक होने, नौकरी चले जाने अथवा जीवन साथी की मृत्यु होने  के पश्चात आने वाली कमी से कहीं ज्यादा पाया गया है ।

मिक्को मिरसकॉयला, डेमोग्राफर (demographer) तथा एमपीआईडीआर (MPIDR) के नए निदेशक तथा यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑन्टेरियो में सामाजिक विभाग के रॉचेल मॉरगोलिस द्वारा अभिभावकों से जर्मन सामाजिक आर्थिक पैनल (SOEP) के संबंध में स्वयं उनके द्वारा प्रस्तुत की गई सूचना के आधार पर जीवन संतुष्टि (सेल्‍फ रिलाइड लाईफ सेटिसफेक्शन)  अध्ययन करवाया गया था । उनसे शून्य से दस के स्‍केल पर उनकी खुशियों के स्तर की जानकारी मांगी गई थी जिसमें से दस अभिभावकों का स्तर सबसे अधिक खुशी पाने वालों के स्तर के बराबर था ।

पहले बच्चे के जन्म के पश्चात से खुशियों में आई कमी का औसत 1.4 प्वांइट पाया गया ।  इनमें से 30% से कुछ कम प्रतिभागियों ने अपनी रिपोर्ट मे खुशियों में आई कमी के बारे में कोई सूचना नहीं दी थी तथा एक तिहाई प्रतिभागियों ने कमी का स्तर दो प्वांइट बताया था । केवल 58% ऐसे अभिभावकों ने खुशियों में आई कमी का स्तर तीन अथवा अधिक प्वांइट बताया था जिनके दूसरे बच्चे का जन्म 10 वर्ष की अवधि के भीतर हुआ था ।

इस अध्ययन से यह भी ज्ञात हुआ कि सुशिक्षित तथा अन्‍य अभिभावक जिनके पास अपना पहला बच्चा है वे दूसरे बच्चे को जन्म देने के प्रति असंमजस में रहते हैं । जब और बच्चों को जन्म देने के संबंध में निर्णय लेने का समय आता है तो 30 वर्ष से अधिक आयु वाले और 12 वर्ष से अधिक काल तक शिक्षा ग्रहण करने वाले लोग भी ऐसे समय में अपनी कथित खुशियों के प्रति अत्याधिक दबाव में पाए गए हैं ।

मिरसकॉयला का यह कहना है कि “माता पिता दोनों ही यह समझ चुके होते  हैं कि बच्‍चे को जन्‍म देने का अर्थ क्‍या है” ।  “जो लोग थोड़ी अधिक आयु के हैं अथवा सुशिक्षित हैं वे शायद अपने पूर्वानुभव के आधार पर अपने परिवार में बढ़ोतरी की योजना बनाना चाहेगें अथवा योजना बनाने में समर्थ होगें ।”

फिर भी इस अध्‍ययन में उन कारणों पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया है जिसके कारण नए नए बने माता पिता की खुशियों में कमी आती है । मिरसकॉयलाका यह कहना है कि “सामान्यत: नए माता पिता नींद, संबंधों में आने वाले तनाव तथा अपनी आजादी खो बैठने और अपने जीवन पर नियंत्रण न रख पाने से संबंधित कुछ शिकायत करते हैं । ” दूसरे बच्चे को जन्म देने के संबंध में लिए जाने वाले निर्णयों को प्रभावित करने वाले अन्य कारणों में पारिवारिक जीवन एवं दैनिक कामकाज  को संतुलित करने में आने वाली कठिनाइयां तथा प्रसव पीड़ा एवं डिलीवरी जैसे कारण भी शामिल हो सकते हैं ।

इन कथित खुशियों अथवा इनमें आई कमी को यथार्थ रूप में लिया जाना चाहिए । बच्चे के जन्‍म से पूर्व माता पिता सामान्यत: प्रफुल्ल एवं उत्सुक होते हैं तथा उनकी खुशियों का स्तर पहले वाले दीर्घकालिक औसत स्तर से कहीं अधिक होता है । मिक्को मिरसकॉयलाका यह कहना है कि “संक्षेप में व अंतत: भी यही कहा जा सकता है कि  खुशियों में कमी होने के बावजूद भी पहले बच्चे के जन्‍म के पश्चात कम से दो बच्चों तक जीवन की खुशियों में बढ़ोतरी होती ही है । ” मिरसकॉयला तथा मार्गोलिस द्वारा अपने अध्‍ययन का समापन इस प्रकार किया गया है  कि “अधिकांश जर्मन माता पिता  भले ही यह कहते हैं कि उन्हें दो बच्चों की आवश्‍यकता होगी परन्तु पिछले चार दशकों से बच्चों की जन्‍म दर  1.5 बच्चा प्रति महिला के घट-बढ दायरे में ही है । बेऔलाद होने के मामलों पर भी अक्सर चर्चा होती है परन्तु इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि अधिकांश जर्मन माता पिता पहले बच्चे के जन्म के पश्चात दूसरे बच्चे को जन्म देना नहीं चाहते हैं जबकि प्रारम्भ में तो उनकी मंशा ऐसी नहीं होती है ।”

इसके निष्कर्ष डेमोग्राफी जरनल में प्रकाशित हुए हैं तथा इसके परिणाम आय, जन्म के स्थान अथवा दम्पतियों की वैवाहिक स्थिति पर निर्भर करते हैं ।

एक नए अध्ययन के अनुसार भले ही आप कितने ही अधिक बच्चे क्यों न चाहते हों परन्तु जब आपके पहले बच्चे का जन्म होता है तो आपकी रूचि कम हो जाती हैं । अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें ।

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