ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर एएसडी ऐसी अवस्था है जिसमें सामाजिक व्यवहार, संवाद, रुचियां और बर्ताव प्रभावित होता है। इसमें एस्पर्जर सिंड्रोम और बाल्यकालीन ऑटिज़्म शामिल है।
ऐसे में जब वैज्ञानिक अब भी एएसडी के संबंध में किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं, एक पहलू है जो प्रमुखता से सामने आया है: एएसडी लड़कियों की तुलना में लड़कों को ज़्यादा प्रभावित करता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, एएसडी के शिकार हर चार लड़कों पर एक लड़की इस रोग से पीड़ित दिखी और एएसडी के गंभीर मामलों में इस अंतर का अनुपात और ज़्यादा 7:1 देखा गया। बीबीसी की कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि ऑटिज़्म जैसे न्यूरोडेवलपमेंट डिसॉर्डर के खिलाफ लड़कियों को प्राकृतिक रूप से प्रतिरोध मिलता है। एएसडी होने की आशंका कुछ जीन म्यूटेशन के कारण बढ़ती है जो वंशानुगत और त्वरित हो सकता है।
इन म्यूटेशन में मिसिंग और डुप्लीकेट डीएनए की बड़ी संख्या शामिल होती है। यूसी डेविस में माइंड इस्टिट्यूट के शोध निदेशक डेविड जी. एमरल बताते हैं, ‘‘अगर एक लड़के में ऑटिज़्म होता है तो उसमें 10 म्यूटेशन देखे जाते हैं लेकिन एक लड़की के मामले में 10 नहीं आप 20 पाते हैं। अगर एक लड़की में 10 आनुवांशिक म्यूटेशन हों तो यह पर्याप्त नहीं होता कि उसमें ऑटिज़्म होने की पुष्टि किया जा सके। कुछ कारणों से, लड़की इस स्थिति से उबर जाती है।’’
एमरल आगे बताते हैं ‘‘केवल आनुवांशिक आधार ही नहीं बल्कि लड़कियों में लक्षण भी अलग दिखायी देते हैं। ऑटिज़्म में, दो असामान्यताएं देखी जाती हैं, सामाजिक संप्रेषण में और पुनरावृत्ति वाले व्यवहार में। ऑटिज़्म की पुष्टि के बावजूद लड़कियों में दूसरी किस्म की असामान्यता बहुत कम देखी जाती है। लड़कियों में इस रोग के कम होने का एक कारण यह भी है कि उनमें इन दो में से सिर्फ एक ही लक्षण देखा जाता है।’’
अध्ययन के लेखक और मानव आनुवांशिकी विशेषज्ञ इवान एशलर ने फॉक्सन्यूज़ को बताया कि ‘‘लड़कियों में इन गंभीर म्यूटेशन से जूझने के लिए बेहतर तंत्र होता है जबकि लड़कों में इसका खतरा ज़्यादा होता है।’’
इस स्थिति का कारण हालांकि अभी तक अस्पष्ट है, फिर भी एशलर सिद्धांत रूप में कहते हैं कि लड़कियों में एक्स क्रोमोज़ोम दो होते हैं जिनमें से एक बैकअप का काम करता है।
वह कहते हैं ‘‘एक्स क्रोमोज़ोम को देखें तो, 1500 जीन्स होते हैं जिनमें से पांच प्रतिशत मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण हैं। लड़कियों में,चूंकि दो एक्स क्रोमोज़ोम होते हैं, तो उन जीन्स में से अगर कुछ में असामान्य म्यूटेशन हो भी, तो वह उसकी पूर्ति कर सकती हैं क्योंकि दूसरे अभिभावक से मिला दूसरा एकस क्रोमोज़ोम भी उनके पास होता है।’’
कुछ हॉर्मोन के उच्च स्तर, जैसे ऑक्सिटॉसिन, आदि भी लड़कियों में एक भूमिका निभाते हैं। माइंड इंस्टिट्यूट के ही मैरजॉरि सोलोमोन का कहना है कि ‘‘ऑक्सिटॉसिन एक सामाजिक हॉर्मोन है, इसलिए वह भी सुरक्षा करता है।’’
अब शोधकर्ता मान रहे हैं कि ऑटिज़्म पीड़ित लड़कियों के मामले में परीक्षण और इलाज को केंद्र में रखना चाहिए। चूंकि एएसडी मरीज़ों में लड़कों का बाहुल्य है इसलिए अब तक इलाज के बारे में हुए शोध मेल सेंटर्ड ही रहे हैं। अब महिला मरीज़ों को केंद्र में रखकर उनके विशेष इलाज और मदद के लिए काम किसे जाने की ज़रूरत है।
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