माता पिता अक्सर अपने बच्चों के प्रति बेफिक्र होते हैं । छोटी आयु में बच्चों के लिए अपनी भावनाओं से संबंधित समस्याओं का शांतिपूर्वक अथवा विवेकपूर्ण ढंग से निपटान कर पाना संभव नहीं हो पाता है ।
अपने बच्चों के बेहतर विकास एवं स्वच्छंद बाल्य अवस्था के लिए माता पिता को उनकी भावनाओं की ओर भी ध्यान देना चाहिए । अमेरिकन साइक्लोजिक्ल एसोसिएशन की प्रोफेशनल प्रैक्ट्सिज की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर कैथरिन नोर्डल, पीएचडी का यह कहना है कि माता पिता को अपने बच्चों के आस पास ही होना चाहिए जिससे कभी किसी प्रकार की समस्या इत्यादि के लिए बच्चों को जब कभी उनकी जरूरत हो वे उनसे आसानी से सम्पर्क कर सकें ।
उन्होंने बताया कि “माता पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए अलग से समय निकाले” । “यदि माता पिता इस ओर ध्यान नहीं देते हैं तो हो सकता है कि बच्चों को ऐसा महसूस होने लगे कि यदि वे अपने माता पिता से अपनी समस्याओं का जिक्र करेगें तो शायद वे उनके लिए कठिनाइयां उत्पन्न कर देंगे ”। तनाव के परिणामस्वरूप बच्चों में निराशा उत्पन्न हो सकती है जिससे भविष्य में उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों का सामना अभी करना पड सकता है ।
बच्चों में होने वाले तनाव के प्रति सजग रहना और उनकी समस्याओं का समाधान करना बहुत जरूरी है । 3 से 6 वर्ष की अवस्था के दौरान बच्चों में अत्याधिक न्यूरोलॉजिकल विकास की क्रियाएं होते हैं तथा अनावश्यक तनाव से उत्पन्न होने वाले परिणाम जीवनपर्यंत रहते हैं । यहां हम आपको कुछ ऐसे उपायों की जानकारी दे रहे हैं जिनके प्रयोग से आप अपने बच्चों की भावुक स्थितियों एवं चिंताओं को सही प्रकार से संचालित कर पाएगें:
शांत रहें:
बच्चों के प्रति ज्यादा लगाव रखने से वे अभिभूत हो सकते हैं जिससे स्थिति और खराब हो सकती है । बच्चों को भावात्मक दबाव से मुक्त कराए रखने के लिए आपका शांत रहना ज्यादा जरूरी है।
अपने बच्चे से बात करें:
समस्या की जानकारी प्राप्त करने और उसका समाधान खोजने के लिए अपने बच्चे को अपने सामने बिठाकर उनसे बात करें । बच्चों में होने वाला भावात्मक दबाव कभी कभी उनकी विकास की प्रक्रिया के कारण भी होता है । बच्चों से पूछे कि वे क्या सोचते हैं और क्या समझते हैं और क्यों ऐसे विचार उनके मन में आ रहे हैं । यदि आपको यह लगता है कि आपका बच्चा इस बारे में बात नहीं करना चाहता तो दबाव मत डाले अथवा अपना आपा न खोएं । प्रेमपूर्वक उन्हें प्रोत्साहित करें कि वे स्वयं खुलकर अपनी बात कह सके कि आखिर किस समस्या से वे परेशान हैं ।
समाधान सुझाएं:
अपने बच्चे को ढेरों ऐसे विकल्प दें जिन्हें आजमाकर वे अपनी समस्या से छुटकारा पा सकते हैं । इस बारे में यदि वे कुछ कहना चाहें तो उनकी बात ध्यान सुनें संभवत: इससे आपको यह जानकारी प्राप्त हो सकेगी कि किस प्रक्रिया से वे अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं ।
अपना सहयोग दें:
अपने बच्चे की उदासी, निराशा अथवा कुंठा की आलोचना न करें तथा न ही उसे हल्का माने । ऐसा करने पर वे स्वयं को और अलग कर लेगें । इसकी बजाए, उन्हें यह एहसास दिलाएं कि जिसे वे समस्या समझ रहे हैं वह वास्तव में समस्या है परन्तु उसके समाधान के लिए आप उनकी सहायता कर सकते हैं । उन्हें यह आभास होने दें कि आप स्वयं अपनी समस्याओं का निपटान कैसे करते हैं तथा उन्हें सकारात्मक रवैया अपनाने के उपाय बताएं ।
स्वास्थ्यप्रद वातावरण तैयार करें
आपके बच्चे का व्यवहार आपके घर और आसपास के सामाजिक परिवेश पर निर्भर करता है । तनाव में कमी लाने के लिए परिवेश में बदलाव लाना फायदेमंद हो सकता है । उदाहरण के तौर पर अव्यवस्थित परिवेश में बदलाव लाकर आप अपने बच्चों के लिए ऐसा वातावरण तैयार सकते हैं जिससे वे अपने तनाव को नियंत्रित करने के प्रति ज्यादा सजग हो सकें ।
यदि जरूरी हो तो विशेषज्ञ से परामर्श लें :
आपको यदि ऐसा प्रतीत होता है कि आपका बच्चा भावात्मक कठिनाइयों के कारण काफी परेशान रहता है तथा आपके अथक प्रयासों के बावजूद भी आपका बच्चा इनसे उबर नहीं पा रहा है तो ऐसी स्थिति में आपको किसी विशेषज्ञ से परामर्श प्राप्त करना चाहिए । विशेषज्ञ आपको तथा आपके बच्चे को ऐसे मार्ग सुझा सकता है जिनसे आपके बच्चे की कठिनाइयों का समाधान संभव हो सकता है ।
आशा का दामन न छोड़े :
कभी कभी भावात्मक कठिनाइयां काफी लम्बे समय तक बनी रहती हैं और उनके प्रति प्रयास भी बहुत अधिक करने पड़ते हैं । सकारात्मक रवैया अपनाएं और यदि समस्या का समाधान धीमी गति से भी हो रहा हो तो भी आशा का दामन न छोड़ें ।
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