मैग्नोलिया एक फूल प्रधान वृक्ष है जिसके सुगंधित फूल कई रंगों और आकारों में होते हैं। उत्तरी भारत में इसकी एक किस्म चंपा के नाम से जानी जाती है और दक्षिण भारत में चंपक या चंपका के नाम से। माना जाता है कि यह पौधा 20 मिलियन साल पहले से अस्तित्व में है जब मक्खियों का अस्तित्व नहीं था। खुश्बूदार फूलों के अलावा मैग्नोलिया का पौधा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि खोज हुई है कि इस पौधे में ऐसे तत्व हैं जिनसे सिर व गले के कैंसर का इलाज हो सकता है।
एशियन चिकित्सा में मैग्नोलिया पौधे का उपयोग नयी बात नहीं है। सैकड़ों सालों से रोगों के इलाज में इस पौधे के तत्वों का इस्तेमाल चीनी और जापानी पद्धतियों में हो रहा है। पूर्व में, यूएस के शोधकर्ताओं ने पाया था कि इस पौधे का होनोकिओल का इस्तेमाल कड़े व्यायाम के बाद मांसपेशियों में होने वाली जलन के इलाज में होता था।
बर्मिंघम स्थित अलाबामा यूनिवर्सिटि द्वारा यूएस के वेटरन अफेयर्स विभाग के वित्तीय सहयोग से किये गये ताज़ा अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि होनोकिओल तत्व चूहे में डाले गये आइसोलेटेड कैंसर कोशिकाओं और ट्यूमरों को कम करने में असरदार साबित हुआ। अध्ययन में एक खास किस्म के कैंसर पर फोकस किया गया जिसे स्क्वेमस सेल कैंसर कहते हैं जो सिर और गले को प्रभावित करता है। यह ज़्यादातर तंबाकू और अल्कोहल का सेवन करने वालों को होता है। जिन्हें यह कैंसर होता है उनके बचने की दर सिर्फ 50 फीसदी होती है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि मैग्नोलिया पौधे का यह तत्व एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर यानी ईजीएफआर नाम प्रोटीन को अवरुद्ध करता है जो सिर और गले के कैंसर में बहुलता से होता है। उल्लेखनीय यह है कि ईजीएफआर के मामले में होनोकिओल उस दवा से ज़्यादा असरदार है जो आम तौर से इस कैंसर को ठीक रकने के लिए दी जाती है – जेफिटिनिब या इरेसा।
अध्ययन पत्र में वरिष्ठ लेखक संतोष के कटियार और उनके साथियों ने लिखा है ‘‘निष्कर्षतः होनोकिओल एक सूक्ष्म बायोएक्टिव फाइटोकेमिकल है जो सिर व गले के कैंसर के इलाज में उपयोगी है जिसे अकेले या फिर अन्य उपलब्ध दवाओं के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।’’
होनोकिओल से इलाज होने में अभी वक्त है, बहुत कुछ करना बाकी है, यानी अभी परीक्षण होने हैं, क्लिनिकल ट्रायल और इसके डोज़ आदि बातें तय होना बाकी हैं।
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