डायबिटीज़ यानी मधुमेह एक रोग है जिसमें व्यक्ति के शरीर में खून में ग्लूकोज़ (शकर का एक अवयव) का स्तर ठीक से नियंत्रित नहीं होता जिससे समय के साथ इस रोग के मरीज़ के खून में शकर का स्तर सामान्य से बढ़ जाता है।
डायबिटीज़ के दो प्रकार हैं (इस रोग का पूरा नाम डायबिटीज़ मेलिटस है)। अगर किसी व्यक्ति को टाइप 1 डायबिटीज़ है तो इसका मतलब है कि शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो गया है और अब उसे नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने हैं। अनुमान है कि डायबिटीज़ के कुल मामलों में से 10 फीसदी टाइप 1 होते हैं। टाइप 1 डायबिटीज़ के रोगियों में से ज़्यादातर को यह रोग 40 साल की उम्र से पहले हो जाता है, कुछ को तो बचपन में ही।
डायबिटीज़ का सामान्य प्रकार टाइप 2 है। यह तब होता है जब शरीर इंसुलिन ठीक से नहीं बना पाता यानी इंसुलिन बनाने वाला अंग पेंक्रियास इसका पर्याप्त उत्पादन नहीं करता। इससे शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज़ का प्रवेश अवरुद्ध होता है और यह खून में ही रहता है। जब कोशिकाओं को ज़रूरी ग्लूकोज़ नहीं मिल पाता तब वे क्षमता के अनुसार कार्य नहीं कर पातीं।
कुछ महिलाओं को गर्भ के दौरान गेस्टेशनल डायबिटीज़ भी होती है। एक गर्भवती महिला इस रोग को सामान्यतया ठीक डाइट और व्यायाम से नियंत्रित कर सकती है लेकिन 5 में से 1 मामले में महिलाओं को ग्लूकोज़ नियंत्रण के लिए इलाज करवाना पड़ता है।
लक्षण
बार-बार मूत्र या लगातार प्यास: खून में अतिरिक्त ग्लूकोज़ के कारण शरीर कोशिकाओं से पानी खींचकर खून में पहुंचाता है। इस अतिरिक्त द्रव को गुर्दे द्वारा प्रोसेस किया जाता है जिससे ज़्यादा मूत्र बनता है। द्रव की इस कमी के कारण ही डायबिटीज़ के रोगियों को लगातार प्यास का अनुभव होता है।
तेज़ भूख का एहसास: आपके शरीर के लिए ज़रूरी ग्लूकोज़ जब कोशिकाओं तक ठीक से नहीं पहुंच पाता तो शरीर अधिक उष्मा ग्रहण करने के लिए भूख का एहसास कराता है।
- वज़न बढ़ना: भूख बढ़ने के कारण आप सामान्य कैलरी डाइट से अधिक खाते हैं। थकान व चिड़चिड़ाहट: कोशिकाओं में ग्लूकोज़ न पहुंचने के कारण आपके शरीर को कार्य करने के लिए ज़रूरी उर्जा नहीं मिलती इसलिए आप थकान महसूस करते हैं और चिड़चिड़ाते हैं।
- धुंधली नज़र: इसका फौरन इलाज किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें लापरवाही बरतने से दृष्टि को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है। ज़ख्मों का देर से भरना: खून में अधिक ग्लूकोज़ के कारण यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
- मसूड़ों की समस्या: डायबिटीज़ के रोगियों को मसूड़ों के संक्रमण और दांतों की अन्य समस्याओं का खतरा ज़्यादा होता है।
- पुरुषों में यौन समस्याएं: बड़ी उम्र के पुरुषों में उत्तेजन संबंधी समस्याओं का कारण खून में शकर का स्तर ज़्यादा होने और ठीक से उसका प्रबंधन न होने का माना जाता है।
- हाथ-पैरों में सुन्नता या झनझनाहट: खून में अतिरिक्त ग्लेकोज़ के कारण आपकी नसें नष्ट हो सकती हैं, खासकर शरीर के उंगलियों व अंगूठे जैसे अंगों में।
इलाज
टाइप 1 व टाइप 2 दोनों ही प्रकार की डायबिटीज़ का इलाज संभव है। हालांकि टाइप 1 डायबिटीज़ के रोगी का स्थायी इलाज नहीं है। अगर यह रोग हो गया तो जीवन भर व्यक्ति को इंसुलिन लेना ही होगा। टाइप 1 डायबिटीज़ के रोगियों को हाइपोग्लाइसेमिया पर भी नज़र रखना चाहिए, यह वह स्थिति है जब खून में शकर का स्तर बहुत कम हो जाता है। ऐसे रोगियों को ब्लड ग्लूकोज़ के स्तर पर बराबर नज़र रखना चाहिए।
शुरुआती स्तर पर, टाइप 2 डायबिटीज़ को डाइट और व्यायाम द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता है। अगर रोग बढ़ जाता है तो फिर रिप्लेसमेंट इंसुलिन लेना ज़रूरी होता है।
बचाव
डायबिटीज़ संक्रामक नहीं है। डायबिटीज़ के रोगी के साथ या पास रहने से यह रोग नहीं होता। हालांकि लोगों में यह रोग कैसे पनपता है इस बारे में जानकारियां नहीं हैं, लेकिन कुछ खतरे के निशान चिह्नित किये गये हैं।
डायबिटीज़ के लिए मोटापा एक बड़ा खतरा है और पेट के अंदरूनी अंगों के आसपास फैट का बढ़ना या जमा होना इससे पूरी तरह जुड़ा हुआ है।
उम्र और परिवार में डायबिटीज़ का इतिहास अन्य खतरे हैं। दक्षिण एशियाई डायबिटीज़ के खतरे में ज़्यादा होते हैं। हालांकि उम्र या जीन्स को लेकर कोई भी कुछ नहीं कर सकता लेकिन नियमित व्यायाम और एक स्वस्थ वज़न मेंटेन करने से डायबिटीज़ से बचाव संभव है। इन्हीं कारणों से इसे ‘लाइफस्टाइल रोग’ कहा जाता है।
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