दुनिया के कई हिस्सों में पुरुषों के नज़रिये, समाज में उनकी भूमिका और उनके यौन अधिकारों के कारण महिलाएं यौन उत्पीड़न व हिंसा की शिकार हैं। ऐसे में यह अच्छी खबर है कि एक प्रायोगिक शैक्षिक कार्यक्रम का सकारात्मक असर देखा गया है जो महिलाओं के प्रति यौन हिंसा के मसले में पर नौजवान पुरुषों की सोच बदलने में कारगर सिद्ध हुआ। इसका मतलब है कि कलात्कार की प्रवृत्ति में बदलाव संभव है।
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटि स्कूल ऑफ मेडिसिन के अध्ययन में केन्या के लड़कों के लिए एक संक्षिप्त शैक्षिक कार्यक्रम का असर देखा गया। इस देश में बलात्कार और महिलाओं के प्रति हिंसा की दर बहुत ज़्यादा है, लेकिन जो पुरुष इस कार्यक्रम में प्रतिभागी बने, उनमें यौन हिंसा में संलग्न होने की भावना कम देखी गई और वे इसे रोकने के लिए प्रेरित भी दिखे।
यह कार्यक्रम एक एनजीओ नो मीन्स नो वर्ल्डवाइड द्वारा तैयार किया गया है। इसका पाठ्यक्रम नौजवान पुरुषों के लिए तैयार किया गया है ताकि महिलाओं के प्रति उनके नकारात्मक दृष्टिकोण में बदलाव आ सके। इसका एक प्राथमिक लक्ष्य है ऐसे लड़कों व पुरुषों को समझाना, जो सामान्यतया ऐसे परिवेश में पले-बढ़े हैं जहां महिलाओं का तुच्छ समझा जाता है, कि वे यह महसूस करें कि महिला को उत्पीड़ित करना या बलात्कार कोई मानक नहीं है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
स्टेनफोर्ड में मनोचिकित्सक और व्यवहार संबंधी विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन की प्रमुख लेखक जेनिफर केलर ने कहा कि ‘‘नौजवान पुरुषों के लिए बनाये गये पाठ्यक्रम का का केंद्र विचार यह है कि वे किस तरह के इंसान बनना चाहते हैं। उन्हें यह वास्तविक एहसास दिलाया गया कि उन्हें क्यों महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ होने की ज़रूत है, क्योंकि यह उनकी मां, बहन और गर्लफ्रेंड को भी प्रभावित करता है।
अध्ययन में, नैरोबी की बस्तियों के 15 से 22 साल की उम्र के 1543 युवकों ने भाग लिया। ट्रीटमेंट समूह में, 1205 युवकों ने शैक्षिक सत्र में प्रतिभागिता की जिसमें दो घंटे की 6 बैठकें हुईं। कोर्स में समझाया गया कि कैसे महिलाओं के प्रति हिंसा संस्कृति का हिस्सा रही, लेकिन क्यों यह सही नहीं था। प्रतिभागियें को समझाया गया कि कैसे कुछ खास किस्म के व्यवहार और नकारात्मक दृष्टिकोण मन में पनप जाते हैं और कैसे उन्हें रोका जाये। इस कोर्स में महिलाओं के बारे में मिथक, लैंगिक रूढ़ियों, हिंसा की पीड़ित महिला की मदद कैसे और कब की जाये और यौन क्रिया में मर्ज़ी के महत्व आदि के बारे में विचार किया गया।
केलर ने कहा कि ‘‘अगर आप किसी महिला को डिनर पर ले जाते हैं और यह मानते हैं कि इसका प्रतिफल देने के लिए वह बाध्य है, तो आपको यह समझना चाहिए कि मर्ज़ी इससे अलग बात है। कोर्स निर्देशकों और नौजवानों ने बातचीत से यह समझा कि वास्तव में मर्ज़ी क्या होती है और कैसे उस मर्ज़ी के बारे में जाना जाता है।’’
शेष 293 प्रतिभागियों को एक नियंत्रित समूह में रखा गया जहां लाइफ स्किल्स कक्षाएं हुईं। कोर्स शुरू होने के ठीक पहले दोनों समूहों का सर्वेक्षण किया गया यह जानने के लिए कि महिलाओं के प्रति उनका रुख क्या है और फिर 9 महीने बाद सर्वे किया गया कि कोर्स समाप्ति के बाद उनका रुख किस तरह से बदला। यौन हिंसा विरोधी कोर्स करने वाले पुरुषों का सर्वेक्षण भी कोर्स खत्म होने के तुरंत बाद किया गया और जाना गया कि कैसे समय के साथ उनमें बदलाव आया।
शुरुआती सर्वे में देखा गया कि दोनों समूहों का महिलाओं के प्रति रुख नकारात्मक था। फिर, कोर्स खत्म होने के बाद, जिस समूह को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बारे में शिक्षित किया गया, उसमें महिलाओं के प्रति अधिक सकारात्मक नज़रिया देखा गया। वे बलात्कार के साथ जुड़े मिथकों को लेकर भी कम विश्वस्त थे। यह सकारात्मक नज़रिया साढ़े चार और नौ महीने बाद भी बरकरार रहा।
दूसरे समूह में, तत्काल तो नज़रिये में कुछ बदलाव दिखा लेकिन नौ महीने बाद किये गये फॉलोअप में महिलाओं के प्रति उनका रुख अधिक नकारात्मक देखा गया। केलर ने कहा कि ‘‘यह महत्वपूर्ण है कि यह केन्या में किया गया, जहां हिंसा की दर इतनी अधिक है वहां इस तरह के परिणाम और प्रभाव दिखना वाकई हमारे लिए महत्वपूर्ण रहा।’’
नज़रिया बदलने के साथ ही, कोर्स में महिलाओं के उत्पीड़न की स्थिति में होने पर हस्तक्षेप करना भी सिखाया गया। दोनों समूहों ने बताया कि उन्होंने महिलाओं के खिलाफ आक्रामक व्यवहार होने की स्थितियां देखीं लेकिन जो ट्रीटमेंट समूह में थे, उनके अनुसार वे महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने में दो गुना ज़्यादा सक्षम व सफल सिद्ध हुए।
यदि आप इस लेख में दी गई सूचना की सराहना करते हैं तो कृप्या फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक और शेयर करें, क्योंकि इससे औरों को भी सूचित करने में मदद मिलेगी ।