कुछ लोग दूसरों की मदद के लिए प्रेरित होते हैं। हालांकि यह व्यवहार वयस्कों में देखा जाता है, लेकिन शोधकर्ताओं ने इस व्यवहार को बच्चों में देखने के मकसद से अनुसंधन किया। वयस्कों के समान ही उन्हें नतीजे मिले। कहा जा सकता है कि दूसरों को सुख देकर बच्चे भी खुशी महसूस करते हैं। धनी परिवारों के बच्चों की तुलना में कम संपन्न वर्ग के बच्चे अधिक उपकार करते हैं।
कैलिफोर्निया-डेविस विश्वविद्यालय के जोनास मिलर, प्रमुख शोधकर्ता और मनोविज्ञानी, ने कहा कि ‘‘इस अध्ययन में हमें बच्चों के निस्वार्थ उपकार की भावना, परिवार की संपन्नता और उनकी शारीरिक सेहत के आपस में जुड़े होने के संबंध को लेकर नई समझ मिली।’’
पिछले अध्ययनों में निस्वार्थ भावना (निजी मूल्य पर परोपकार) और बेहतर शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध दिखा था, जिसे हम वयस्कों में, खुशी के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। इस शोध का मकसद था यह देखना कि निस्वार्थ भावना से प्रेरित कार्य के प्रति बच्चे किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं। यह भी देखा गया कि परिवार की संपन्नता से निस्वार्थता किस तरह संबद्ध है।
अध्ययन के लिए, औसतन 4 साल की उम्र के, 74 प्रीस्कूल प्रतिभागी बच्चों ने व्यक्तिगत रूप से शोधकर्ता के साथ एक खेल खेला। उन्हें बताया गया कि खेल के दौरान वे टोकन कमा सकते हैं जिनके बदले में उन्हें बाद में पुरस्कार दिया जाएगा। खेल के बाद बच्चों से पूछा गया कि क्या वे अपने सभी टोकन किसी ऐसे बच्चे के लिए दान करना चाहेंगे जो बीमारी के कारण इस खेल में शामिल नहीं हो सका।
शोधकर्ताओं ने हर बच्चे शारीरिक डेटा जैसे हृहदयगति दर और वैगल टोन मापने के लिए सेंसर लगा दिये थे। वैगल टोन वैगस नब्ज़ की क्रियाओं को मापने की पद्धति है, यह नब्ज़ मस्तिष्क के साथ अन्य अंगों को जोड़ती है। वैगल टोन जितनी ज़्यादा होती है, व्यक्ति द्वारा उतना ज़्यादा सुरक्षित और शांत महसूस किया जाना इंगित होता है। हाई वैगल टोन होना बच्चों में बेहतर स्वास्थ्य, व्यवहार एवं सामाजिक दक्षता होने का सूचक है।
जिन बच्चों ने टोकन दान कर दिये उनमें सत्र के अंत में अधिक सकारात्मक नर्वस सिस्टम रिस्पॉंस देखा गया।
मिलर बताते हैं ‘‘हम अक्सर सोचते हैं कि निस्वार्थ परोपकर के लिए हमें कुछ मूल्य चुकाना होता है, लेकिन नतीजे यह दर्शाते हैं कि जब बच्चे कम भाग्यशाली बच्चों की मदद करते हैं तो बदले में उन्हें हायर वैगल टोन के रूप में कुछ न कुछ वापस मिलता है। इसका मतलब यह है कि हम बहुत छोटी उम्र से ही दूसरों की मदद या भला करने पर खुद का सुरक्षित महसूस करते हैं।’’
शोधकर्ताओं ने यह भी जांचा कि टोकन देने के साथ समाजार्थिक स्तर एसईएस का क्या संबंध था। प्रतिभागियों के परिवार मध्यम से उच्च मध्यम वर्ग के थे।
डेटा में पता चला कि उन प्रतिभागियों ने कम टोकन दान किये जो अधिक संपन्न परिवारों से थे जबकि उन्होंने अधिक टोकन दिये जिनके परिवारों को संपन्न नहीं माना जा सकता।
मिलर का कहना है कि ‘‘यह हाई एसईएस संस्कृति के कुछ पहलुओं का ही सूचक हैजो हम वयस्कों में देख चुके हैं जैसे आत्म-केंद्रितता का अधिक होना औश्र समाज के प्रति कम संवेदनशील होना, हो सकता है कि 4 वर्ष की उम्र में भी व्यवहार का यह गुण बच्चों में विद्यमान हो।’’
हालांकि यह अध्ययन यह नहीं कहता कि धन से खुशी नहीं मिलती, लेकिन यह इंगित ज़रूर करता है कि देने से 4 साल का बच्चा भी बेहतर महसूस करता है।
मिलर निष्कर्ष बताते हैं कि ‘‘हमारे नतीजे सूचक हैं कि निस्वार्थ भावना से प्रेरित व्यवहार के कारण सभी बच्चों की सेहत बेहतर हो सकती है।’’
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