गर्भ के दौरान भोजन की बाध्यताओं की बात हो तो, दुनिया भर में महिलाओं को उनके डॉक्टरों/अभिभावकों/पड़ोसियों/दोस्तों और ऑनलाइन लेखों द्वारा सलाह दी जाती है जैसे इस लेख में। हालांकि इन सलाहों में क्षेत्र और देश के हिसाब से फर्क दिखता है और कभी-कभी तो संदेह की स्थिति बनती है। है ना? नहीं!
विश्वसनीय और प्रतिष्ठित स्रोत जैसे सरकारी स्वास्थ्य साइट, के हिसाब से गर्भवती महिलाओं के डाइट संबंधी सावधानियों को यूएस , यूके , फ्रांस , ऑस्ट्रेलिया , न्यूज़ीलैंड और सिंगापोर के समान ही बताया गया है। हालांकि ये स्रोत वैज्ञानिक नहीं माने जाते लेकिन ये लगातार अपडेट होते हैं और शोधों पर आधारित हैं।
तो फिर क्यों ऐसी स्थिति बनी हुई है कि ये बाध्यताएं देश-देश के हिसाब से अलग या भ्रामक दिखती हैं? न्यूज़ीलैंड की यूनिवर्सिटि ऑफ ओटैगो के मानवीय पोषण विभाग में वरिष्ठ व्याख्याता लीसा हॉफ्टन लिंक कहती हैं ‘‘यह समझना काफी मुश्किल है क्योंकि हम सभी एक जैसे प्रमाणों को देख रहे हैं।’’ हो सकता है कि इन प्रमाणों की विवेचना अलग-अलग ढंग से हो, लोगों के विश्वास और सांस्कृतिक अवधारणाएं निष्कर्षों को प्रभावित करती हों और कभी-कभी प्रतिष्ठित साइट्स भी लोगों को भ्रमित करती हैं।
कच्चे दूध के मामले में
उपरोक्त तीनों घटकों के उदाहरण के लिए कच्चे दूया के सेवन का सवाल लेते हैं। यूएस सरकार के सेंटर्स फॉर डिसीज़ कंट्रोल की सलाह कच्चे दूध और इससे बने उत्पादों के खिलाफ है। फिर भी, कुछ लोग प्रमाणों के आधार विवाद करते हैं और दावा करते हैं कि सीडीसी भ्रमित कर रहा है। इन आलोचकों की आलोचना करने वाले भी हैं। यह सब सालों से चल रहा है और इस पूरी बहस को पढ़ने से किसी को कोई समझ नहीं मिलती।
संस्कृति और धारणाओं की भूमिका भी हो सकती है। उदाहरण के लिए, जो लोग केवल पाश्चुरीकृत दूध के इस्तेामल की सीडीसी की सिफारिशों की आलोचना करते हैं, वे ‘प्राकृतिक’ स्वास्थ्य एवं पोषण के विचार के समर्थक भी हैं। उनके लिए प्रमाणों का निष्पक्ष रूप से प्रतिपादन मुश्किल हो जाता है। और यहां एक उदाहरण है, दूध संबंधी नहीं, कि कैसे बिना प्रमाण के सांस्कृतिक विश्वास कैसे फैलता है:
‘‘यह वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं है, आपके भोजन में नटमेग की ज़्यादा मात्रा हानिकारक हो सकती है।’’
गलत सूचनाओं का तीसरा कारण है, इंटरनेट पर सत्यापन करने की प्रणाली का न होना। उदाहरण के लिए, एक साइट कहती है, दो हफ्तों तक फ्रोज़न किये जाने के बाद कच्चे दूध का सेवन करना सुरक्षित है। इस सूचना के लिए कोई स्रोत नहीं बताया गया है। जबकि, केवल फ्रीज़िंग से सभी जीवाणु नष्ट नहीं होते, लेकिन अक्सर इसका इस्तेमाल रिसर्च के मकसद से इसे संरक्षित करने में किया जाता है।
भूख लगने की बात पर आएं!
इन सब बातें के साथ, गर्भवती महिलाओं को किस तरह के भोजन से बचने की सलाह दी जाती है और क्यों? ज़्यादातर सुझाव हैं कि उस भोजन से बचें जिसमें जीवाणु या परजीवी हों। भोजन मूल स्रोत से ही संदूषित हो सकता है, या फिर प्रोसेस और पैकेज करते वक्त या खाने के इंतज़ार में रखते समय भी। गर्भवती महिलाओं के शरीर में चूंकि अतिरिक्त हॉर्मोन बनते हैं, इस कारण उनका प्रतिरोधी स्तर कम होता है इसलिए वे इस स्थिति में ज़्यादा जोखिम में होती हैं।
पशुओं से प्राप्त कच्चा भोजन। हानिकारक जीवाणु और परजीवी मीट, सीफूड मछली और शेलफिश- और अंडों, ये सभी कई स्थानों पर कच्चे खाये जाते हैं, में पोय जा सकते हैं। इसलिए, उपरोक्त वर्णित सभी देशों में सलाह दी जाती है कि गर्भवती महिलाओं को इस तरह के बिना पके या कच्चे भोजन से बचना चाहिए। स्मोक्ड मीट और फिश को भी कच्चा भोजन ही माना जाता है क्योंकि जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए इन्हें पर्याप्त आंच नहीं मिलती।
अपाश्चुरीकृत दूध और इससे बने उत्पादों में लिस्टेरिया नामक जीवाणु हो सकता है। गर्भवती महिलाएं दूसरों की अपेक्षा लिस्टेरिया के संक्रमण से जल्दी प्रभावित हो सकती हैं जिससे उनकी गर्भावस्था में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं और गर्भस्थ शिशु को नुकसान हो सकता है। कई तरह के फ्रेंच चीज़ में अपाश्चुरीकृत दूध का इस्तेामल होता है, लेकिन फ्रांस में भी गर्भवती महिलाओं को इसे न खाने की सलाह दी जाती है। दही, लस्सी, पनीर, हल्दी कादूध या ऐसी ही कई चीज़ें, जिनमें अपाश्चुरीकृत या बिना उबले दूध का इस्तेमाल होता है, उनसे संक्रमण का जोखिम ज़्यादा होता है। कच्चे दूध के कारण टीबी होने का खतरा भी जुड़ा हुआ है।
कच्ची सब्ज़ियां जो संदूषित हो सकती हैं। जो सब्ज़ियां ज़मीन के पास उगती हैं जैसे लैटस और पालक या जो प्रोसेसिंग प्लांट से गुज़रती हैं जैसे स्प्राउट, जीवाणुओं के संपर्क में आ सकती हैं। कभी-कभी घर पर इन्हें धोने से सभी जीवाणु नष्ट नहीं होते, इसलिए इन्हें पकाकर खाना ही सुरक्षित समझा जाता है।
अपाश्चुरीकृत कमर्शियली बिक्री वाले फलों के रस। अपाश्चुरीकृत फों के रस जो सीलबंद एयरटाइट डिब्बों में बेचे जाते हैं, हो सकता है कि वे जीवाणुओं से संदूषित हों।
प्रीमेड भोजन, सलाद और बचा-खुचा भोजन। कॉफी शॉप या कैंटीन में काउंटर पर रखें सैंडविच और समोसे, प्रोसेस्ड मीट उत्पाद और घर पर बना भेाजन जो कमरे के तापमान में रखा छोड़ा गया हो, इन सभी में जीवाणुओं के पनपने की आशंका रहती है। अगर आपके पास इन्हें खाने के सिवा कोई विकल्प न हो तो इपले इन्हें कम से कम 165 डिग्री फैरेनहाइट (75 डि से) पर गर्म कर लें।
मछली। कई मछलियों में मर्करी का स्तर ज़्यादा होता है, जो वयस्कों के साथ ही गर्भस्थ शिशु देनों के लिए विषैला है। दूसरी ओर, मछली खाने से आपके शिशु को लाभ हो सकता है और कुछ मछलियां कथित ओमेगा 3 फैटी एसिड का अच्छा स्रोत हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। इसलिए हफ्ते में 340 ग्राम इन मछलियों के सेवन की सलाह दी जाती है: श्रिंप, सैलमन, पॉलक, कैटफिश, कैन्ड लाइट ट्यूना, पैंगेसियस, टिलैपिया, कॉड, क्लैम्स और क्रैब। सोर्डफिश, शार्क, किंग मैकेरल, टाइल फिश गोल्डन टाइलफिश से पूरी तरह दूर रहें।
और शेष सब। हर महिला अलग है और व्यक्तिगत निर्भर करता है कि शकर की मात्रा, कुछ खास विटामिन या आयरन का सेवन अपने डॉक्टर की सलाह के आधार पर ही करें। सभी के लिए व्यक्तिगत सलाहें किसी गाइड में नहीं दी जा सकती इसलिए अपने डॉक्टर की सलाह लें और अपनी चिंताएं उनके साथ साझा करें।
कहा जाता है, अगर आपका कोई रिश्तेदार या विश्वसनीय स्रोत यह सुझाव दे कि पपीता, अनानास, पैप्रिका या किसी और तरह के भोजन का सेवन न करें, तो बात मानने में कोई बुराई नहीं है। यह आप पर निर्भर है। यह सुनिश्चित करें कि आप वह ज़रूरी पोषण किसी और भोजन से प्राप्त कर रहे हैं।
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