उत्पीड़न से कैसे निपटें


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हाल में सेंट्रल बोर्ड ऑफ एजुकेशन (सीबीएसई) ने स्कूलों में डराये-धमकाये जाने (उत्पीड़न) की घटनाओं से निपटने के लिए कदम उइाये हैं और इनसे निपटने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों में सायबर बुलइंग को भी शामिल किया गया है। यह उत्पीड़न का प्रचलित माध्यम बन गया है क्योंकि सोशल मीडिया और अन्य तकनीकी उपकरणों जैसे मोबाइल फोन और लैपटॉप आदि के ज़रिये कई बार सूचनाओं पर नियंत्रण और नज़र रख पाना संभव नहीं होता।

टाइम्स ऑफ इंडिया में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. राजीव पलसोडकर के हवाले से लिखा गया है कि “मैं मानता हूं कि स्कूलों में डराना-धमकाना, उत्पीड़न होता रहा है। यह सामान्यतया शारीरिक और मौखिक रूप से होता था। लेकिन, अब, जबकि समय बदला है और कम्युनिकेशन के माध्यम बदले हैं, ऐसे में सायबर बुलइंग के मामले पिछले कुछ सालों से आ रहे हैं।”

यह एक गंभीर मसला है, क्योंकि इससे बच्चों के कोमल मन पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। इसको सावधानी और कोमलता से डील करने की ज़रूरत होती है क्योंकि ऐसे मामलों में पीड़ित बचता-छुपता है और अपना दुख नहीं बांटता। डॉ. राजीव आगे कहते हैं कि “बुलइंग आत्मविश्वास पर चोट करती है जिससे बच्चे के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है जो लंबे समय तक बना रहता है।”

इस तरह के पीड़ित अपने उत्पीड़न की तकलीफ साझा नहीं करते क्योंकि उन्हें डर होता है कि उन्हें दोबारा पीड़ित किया जाएगा या फिर उन्हें सही सहायता नहीं मिलेगी। डॉ. राजीव कहते हैं “कई बार ऐसे पीड़ित बच्चे उलझन में रहते हैं कि वे मदद के लिए किसके पास जाएं। उन्हें मेरी यही सलाह है कि अपनी पीड़ा वे अपने करीबी और प्रिय व्यक्ति को बताएं। चुपचाप रहना इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि यह अधिक तकलीफदेह है। हर किसी को जीवन में कभी न कभी किसी की मदद लेना पड़ती है, इसमें शरमाने की कोई बात नहीं है।”

वह आगे अभिभावकों को सलाह देते हैं कि बच्चों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखें और उनकी समस्याओं को ध्यान से सुनें, न कि पूरी बात सुने बिना ही नकार दें। “अभिभावकों को बच्चों के साथ ज़्यादा समय बिताना चाहिए। सीमित परिवारों और व्यस्त जीवन के चलते परिवार के सदस्य एक-दूसरे के साथ कम बातचीत कर पाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। और अगर अभिभावक बच्चे में कोई रहस्यपूर्ण या तीव्र बदलाव देखते हैं तो उन्हें सतर्क हो जाना चाहिए। अगर बच्चा दोस्तों से कतराये, स्कूल न जाने की कोशिश करे, अकेले रहना पसंद करे तो जल्द से जल्द से अभिभावकों को कारण पता करना चाहिए।”

गंभीर मामलों में, काउंसिलिंग से भी मदद मिलती है। काउंसिलिंग से बच्चे को उत्पीड़न के बाद पैदा हुए तनाव और डर के कारण खोये हुए आत्मसम्मान और विश्वास को हासिल करने में सुविधा हो सकती है। डॉ. राजीव निष्कर्षतः कहते हैं कि “पीड़ित और बुलइंग करने वाले, दोनों के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश की जाना चाहिए। मनोचिकित्सकों, मनोविज्ञानियों, शिक्षकों, अभिभावकों को मिलकर एक टीम की तरह इस दिशा में प्रयास करने चाहिए।”

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