वायु प्रदूषण से छोटे बच्चों के फेफड़े खराब होते हैं


Air pollution destroying kids' lungs

Photo: Shutterstock

भारत में अनेकों मिलियन बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के कारण बुरे प्रभाव पड रहे हैं तथा विषाक्त वायु के परिणामस्वरूप उनके फेफड़े प्रदूषित हो रहे हैं ।

बच्चे चूकिं अधिक समय तक घर से बाहर रहते हैं तथा उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित न होने के कारण वायु

प्रदूषण के दुष्परिणाम वयस्कों की तुलना में बच्चों पर ज्यादा होते हैं । अध्ययनों से यह प्रमाणित हुआ है कि अत्याधिक वायु

प्रदूषण के विषाक्त प्रभाव एवं वातावरण से उत्पन्न होने वाले टॉक्सिन्स के प्रति  शरीर के विकासशील अंग काफी संवेदनशील होते हैं जिससे वयस्कों की तुलना में बच्चों के अंग इन प्रदूषकों को जल्दी अंगीकार कर लेते हैं तथा ये काफी लम्बे समय तक उनके शरीर में बने रहते हैं ।

एक नए अध्ययन से यह पाया गया है कि प्रत्येक 10 बच्चों में से 4 बच्चे दिल्ली के वायु प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं । वास्तव में भारत के अन्य मैट्रो शहरों के बच्चों से यदि तुलना की जाए तो राजधानी में रहने वाले बच्चों में कमजोर फेफड़ों एवं अंगों के विकास से संबंधित समस्याएं अधिक पाई गई हैं ।

विश्व स्वास्थ्य संघ ने यह पाया गया है कि भारत में श्वास संबंधी समस्याओं के कारण मृत्यु दर सबसे अधिक है जो वर्ष 2012 में प्रति 100,000 में से 159 पाई गई है तथा यह इटली की तुलना में 10 गुणा, ब्रिटेन की तुलना में 5 गुणा तथा चीन की तुलना में दो गुणा है । अध्ययनकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी संकेत मिले हैं कि स्कूल जाने वाले दिल्ली के 4.4 मिलियन बच्चों में से आधे बच्चों के फेफड़े कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाएगें ।

इससे अभिप्राय यह है कि बच्चे टॉक्सिक रसायनों तथा विषाक्त कणों को ग्रहण करने के लिए विवश हैं । वायु प्रदूषण बढ़ जाने के कारण आजकल श्वास संबंधी बिमारियां, चमड़ी एवं आंखों की एलर्जी, कार्डिक अरेस्ट, स्मरणशक्ति खोना, निराशा (डिप्रेशन) तथा फेफड़े खराब होने की घटनाएं कहीं अधिक घटित हो रही हैं ।

प्रदूषण के प्रभाव :

प्रदूषण युक्त वातावरण में सांस लेने के कारण बच्चों में अस्थमा तथा श्वास संबंधी अन्य बिमारियों का जोखिम अधिक बना रहता है ।

वैज्ञानिक प्रमाणों से यह सिद्ध हो चुका है कि  6 से 7 घंटों तक ग्राउंड ओजोन से संपर्क में रहने के कारण स्वस्थ व्यक्तियों के फेफड़ों की कार्यक्षमता कमजोर होने लगती है तथा वे श्‍वास संबंधी दाह अथवा जलन (रेस्प्रिेटरी इनफ्लेमेशन) जैसी समस्याओं से पीडि़त हो जाते  हैं ।

वायु प्रदूषण में कैंसर जनक तत्व अधिक होते हैं तथा किसी प्रदूषित क्षेत्र में रहने से कैंसर का जोखिम कहीं अधिक बढ़ जाता है ।

सामान्यत: नगर निवासियों में कफ तथा सांस की घरघराहट के लक्षण अधिक पाए जाते हैं ।

रोगरोधक क्षमता ( immune system) अंतःस्त्रावी (endocrine) तथा प्रजनन प्रणाली नष्ट हो जाती है ।

किसी भी प्रकार के वायु कणों के उच्च स्तरीय प्रदूषण का संबंध हृदय संबंधी समस्याओं की अत्याधिक घटनाओं से होता हैं ।

वातावरण में जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) के प्रज्जवलन तथा कार्बन डायआक्साइड उत्पन्न होने के परिणामस्वरूप धरती का तापमान बढ़ रहा है ।

वायु को प्रदूषित करने वाले टॉक्सिक रसायनों से पेड़ पौधे तथा जल के स्रोत भी प्रभावित होते जा रहे हैं । पशुओं द्वारा इनकी  दूषित  पत्तियों एवं जल का सेवन किया जाता है । इस प्रकार खाद्य पदार्थों  के जरिए यह जहर हमारे शरीर में पहुंच रहा है ।

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