बच्चों को कैसे निशाना बनाती हैं फूड कंपनियां


बच्चों को कैसे निशाना बनाती हैं फूड कंपनियांअपने उत्पादों के प्रति बच्चों को लुभाने के लिए फूड कंपनियां कई तरीके अपनाती हैं। गौर से देखने पर पता चलता है कि ऐसे उत्पादों में ज़्यादातर जंक फूड या बच्चों के लिए कम पोषण वाले पदार्थ शामिल हैं। ऐसे पदार्थों के सेवन से वयस्क होने तक मोटापे, दिल के रोगों, डायबिटीज़ और शीघ्र मृत्यु की आशंका बढ़ती है।
बच्चों के लिए बनने वाले खाद्य पदार्थों का एक बहुत बड़ा व्यापार है। इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिसिन की 2005 रिपोर्ट के अनुसार, यूएस सरकार द्वारा एक स्वतंत्र रूप से सक्रिय संस्था को फंड किया गया, यूएस में 10 साल की अवधि में चार फूड कंपनियों ने बच्चों को ध्यान में रखकर 541 फूड प्रोडक्ट बनाये। केवल फूड कंपनियां ही नहीं, खिलौने और सिगरेट बनाने वाली कंपनियां भी बच्चों के खाद्य पदार्थें को निशाना बनाती हैं। आईओएम ने पाया कि बच्चों को निशाना बनाते हुए बनाये जाने वाले फूड उत्पादों में कैलरी ज़्यादा होती हैं, शकर या वसा के ज़रिये और इनमें पोषण कम होता है।
अपने अत्पादों को बढ़ावा देने के लिए, फूड कंपनियां ऐसे विज्ञापन करती हैं जो बच्चों को लुभाते हैं, बच्चों की कम बुद्धि का लाभ उठाते हुए ये कंपनियां अन्य मार्केटिंग तरकीबें लड़ाती हैं जिनसे अभिभावकों को बच्चों को आकर्षित होने से रोकने में परेशानी होती है। इस तरह के फूड उत्पदों पर किये गये पिछले अध्ययनों में पाया गया था कि आगे के सालों में इनसे मोटापे की शिकायतें बढ़ जाती हैं। अनैतिक फूड विज्ञापन के कारण आईओएम की रिपोर्ट का दावा है कि 1980 की तुलना में बच्चों में मोटापे की दर तीन गुना हो गई है।
मोटापे संबंधी विभाग में अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स के स्टीपन पॉंट, जो दो बच्चों के पिता भी हैं, कहते हैं, “अगर ऐसे विज्ञापन कम हों, तो यह मेरे लिए ज़्यादा आरामदायक होगा और एक अभिभावक होने के नाते मैं अपने बच्चों को बरगलाये जाने को लेकर कम गुस्सा होउंगा। सोचिए, अगर कोई आपके बच्चे को बरगला रहा है तो आप क्या करेंगे। कुछ विज्ञापनों के ज़रिये कुछ कंपनियां ऐसी ही हरकतें कर रही हैं।“ ऐसे विज्ञापनों और सेहत पर होने वाले दुष्परिणामों के बारे में कुछ बदलाव दिखे हैं। कई समूहों के दबाव के कारण, डिज़्नी ने अपने टीवी स्टेशनों पर से जंक फूड संबंधी विज्ञापन बंद किये। यूएस के कुछ राज्यों में बचपन के मोटापे को लेकर ओवरऑल आंकड़ों में जो हल्की सी गिरावट दिखी है उसका कारण पूरी तरह से विज्ञापनों में बदलाव को नहीं माना जा सकता। पॉंट का कहना है, “मोटापे की समस्या का एक कारण नहीं है और एक दवा भी नहीं है। लेकिन, इस समस्या का एक बड़ा कारण बरगलाने वाले विज्ञापन ज़रूर हैं।“
भारतीय टीवी चैनलों पर फूड विज्ञापन

भारत में अक्टूबर 2012 में हुए एक अध्ययन में वयस्कों और बच्चों को निशाना बनाने वाले फूड विज्ञापनों की तुलना की गई। जिन चैनलों पर बच्चों के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं, जिनमें डिज़्नी भी शामिल है, उन पर तकरीबन आधे विज्ञान चॉकलेट और मीठे खाद्य पदार्थों के पाये गये जबकि सामान्य मनोरंजन चैनलों पर तकरीबन 20 फीसदी ही। अगर हम चार समूहों में देखें तो इन आंकड़ों में भारी विरोधाभास है: बिस्किट/केक, चॉकलेट/अन्य मीठे पदार्थ, डेयरी और अनाज बेस्ड उत्पाद। सामान्य मनोरंजन चैनलों पर 30 फीसदी की तुला में बच्चों के कार्यक्रमों वाले चैनलों पर चॉकलेट और मीठे खाद्य पदार्थों के विज्ञापन करीब 74 फीसदी हैं। दूसरी ओर, सामान्य चैनलों पर अनाज बेस्ड उत्पादों के विज्ञापनों का हिस्सा 35 फीसदी है जबकि बच्चों वाले चैनलों पर केवल 5 फीसदी।
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि जब निशाना वयस्क समूह होता है तब कंपनियां सेहत को आधार बनाकर विज्ञापन करती हैं जबकि बच्चों के मामलों में सेहत के लिए नुकसानदायक उत्पादों का विज्ञापन किया जाता है। अभिभावकों को समझदारी के साथ बच्चों को समझाना चाहिए कि कैसे उन्हें निशाना बनाया जाता है।

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